*जैन परंपरा में अवधानकला की समृद्ध धरोहर का अन्वेषण*ऋषिहुड विश्वविद्यालय, हरियाणा के सेंटर फॉर ह्यूमन साइंसेज के तत्वावधान में प्रोफेसर संपदानंद मिश्रा के कुशल मार्गदर्शन में अवधानकला की विविध परंपराओं का अन्वेषण और दस्तावेजीकरण करने का एक महत्वाकांक्षी परियोजना आरंभ की गई है। इस परियोजना के अंतर्गत, विभिन्न विद्वानों द्वारा इस प्राचीन प्रथा के विभिन्न पहलुओं पर कई पुस्तकें तैयार की गई हैं। इस श्रृंखला की एक प्रमुख पुस्तक है *”जैन परंपरा में अवधान,”* जिसका शोध और लेखन सुरभि भगत द्वारा किया गया है।यह व्यापक कार्य जैन परंपरा में विद्यमान विभिन्न जैन अवधानी और जटिल अवधान प्रक्रियाओं की गहन पड़ताल करता है। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) विभाग द्वारा प्रायोजित इस परियोजना का उद्देश्य भारत की समृद्ध बौद्धिक धरोहर को उजागर करना है।इस परियोजना के अंतर्गत, प्रोफेसर संपदानंद मिश्रा, सुरभि भगत, और नीलाभ शर्मा ने तेरापंथ परंपरा के जैन अवधानियों से मुलाकात की। इस दौरान, उन्हें आचार्य महाश्रमण जी, साध्वी प्रमुखा श्री जी, मुनि कुमार श्रमण जी, और मुनि जिनेश जी, समनी अमलप्रज्ञा जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस यात्रा के दौरान, टीम ने अवधानकला के विभिन्न पहलुओं और ऋषिहुड विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर ह्यूमन साइंसेज में चल रहे कार्यों पर गहन चर्चा की।इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण परिणाम जैन भारती विश्वविद्यालय के साथ सहयोग का प्रारंभिक प्रस्ताव था। यह प्रस्ताव प्रोफेसर संपदानंद मिश्रा द्वारा प्रस्तुत किए गए अवधानम पाठ्यक्रम के कार्यान्वयन पर केंद्रित था। इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य अवधानकला की सूक्ष्म प्रथा को संरक्षित और प्रसारित करना है, और इसे आधुनिक शैक्षिक ढांचे में एकीकृत करना है।चर्चाओं में तेरापंथ परंपरा के अवधानियों के महत्वपूर्ण योगदान को भी उजागर किया गया, जो “जैन परंपरा में अवधान” पुस्तक में प्रमुखता से शामिल किया जाएगा। यह यात्रा विशेष रूप से चातुर्मास के समय हुई, जिससे टीम को सूरत में इस शुभ अवधि में साध्वी प्रमुखा जी और आचार्य श्री का आशीर्वाद प्राप्त करने का दुर्लभ अवसर मिला।