🌸 *महातपस्वी महाश्रमण के चरणों की धूल से धन्य हुई धुळे (धुलिया) की धरा* 🌸
*-भव्य स्वागत जुलूस में उमड़ा जनसमुदाय, दर्शन को लालायित दिखे श्रद्धालु*
*-स्वागत जुलूस के दौरान जैन धर्म की दो धाराओं का भी मधुर मिलन*
*-विद्या वार्धिनी आर्टस्, कॉमर्स एण्ड साइंस कॉलेज में पधारे युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण*
*-योग की साधना है परम कल्याणकारी : महायोगी महाश्रमण*
*-धुलियावासियों ने दी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति, प्राप्त किया पावन आशीर्वाद*
*26.06.2024, बुधवार, धुळे (महाराष्ट्र) :*
जन-जन का कल्याण करने के लिए पृथ्वी की परिधि से सवा गुना से अधिक किलोमीटर की पदयात्रा करने वाले, जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश प्रदान करने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के सुपावन चरणों की धूल धुळे (धुलिया) की धरती पर पड़े तो यह धरा मानों धन्य हो गई। जन-जन का कल्याण करने वाले शांतिदूत के स्वागत में धुलिया में जन-जन उमड़ आया था। भव्य स्वागत जुलूस में न केवल तेरापंथी अथवा अन्य जैन समाज के लोग, अपितु अन्य जैनेतर समाज के लोग भी सोत्साह उपस्थित थे। सद्भावना की इस बहती बयार के मध्य आचार्यश्री की अगवानी को मूर्तिपूजक आम्नाय के आचार्य पद्मभूषण श्रीमद् विजयरत्नसूरीश्वरजी भी उपस्थित हुए। जैन शासन के दो धाराओं का मधुर मिलन सभी को प्रसन्नता की अनुभूति करा रहा था। बुलंद जयघोष से गूंजता वातावरण महाश्रमणमय बन रहा था। सभी पर अपने दोनों करकमलों से आशीषवृष्टि करते हुए स्वागत जुलूस के साथ युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी धुलिया में स्थित विद्या वर्धिनी आर्टस्, कॉमर्स एण्ड साइन्स कॉलेज में पधारे। जहां इस महाविद्यालय के चेयरमेन सहित अन्य लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।
इसके पूर्व बुधवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में मानवता के मसीहा महाश्रमणजी ने फागणे से मंगल प्रस्थान किया। धुळे के उत्साही श्रद्धालु फागणे से ही अपने आराध्य के चरणों का अनुगमन करने लगे। जैसे-जैसे आचार्यश्री धुळे के निकट होते जा रहे थे, श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। धुळेवासियों की बीस वर्षों से अधिक की प्रतीक्षा मानों आज फलीभूत होने जा रही थी। राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन पदरज धुळे जिला मुख्यालय पर पड़े तो समूचा वातावरण जयघोषण से गुंजायमान हो उठा।
विद्या वर्धिनी महाविद्यालय परिसर में बने महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि तीन शब्द बताए गए हैं- भोग, रोग और योग। अध्यात्म और धर्म की सम्पूर्ण साधना योग कहलाती है। अष्टांग योग की बात बताई गई है। यम नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याख्यान, ध्यान आदि के साथ सम्यक् ज्ञान, दर्शन व चारित्र की आराधना भी योग है। मानव जीवन में योग की साधना परम कल्याणकारी होती है। अध्यात्म की जो उत्कृष्ट साधना मानव जीवन में हो सकती है, वह किसी अन्य जीवन में नहीं हो सकती। इसलिए सौभाग्य से प्राप्त इस मानव जीवन का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी भोग में ही रत रहे तो शरीर रोगग्रस्त भी हो सकता है। कभी पूर्व कर्मो के परिणाम स्वरूप भी रोग हो सकते हैं। भोगी आत्मा संसार में भ्रमण करती रहती है और योगी इस संसार से मुक्त हो सकता है। इसलिए आदमी को धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। भोग से योग की दिशा में गति करने का प्रयास करना चाहिए। पदार्थों के उपभोग में संयम हो। आदमी अपने आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति तो कर सकता है, किन्तु इच्छाओं की पूर्ति संभव नहीं हो सकती। इसलिए आदमी भोग और रोग से बचते हुए योग की साधना के द्वारा अपने जीवन को सार्थक और सुफल बनाने का प्रयास करे।
आचार्यश्री ने धुळे (धुलिया) वासियों को पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि यहां की जनता में अच्छी धार्मिक चेतना बनी रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी उपस्थित जनता को प्रतिबोधित किया।
संसारपक्ष में धुलिया से संबद्ध साध्वी सुयशप्रभाजी व साध्वी सौरभयशाजी ने संयुक्त रूप से अपने आराध्य के चरणों की अभ्यर्थना की। धुलिया तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री नानक तनेजा, श्री सूरजमल सूर्या, तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती संगीता बैदमूथा व विद्यावर्धिनी महाविद्यालय के चेयरमेन श्री अक्षय छाजेड़ ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। धुलिया तेरापंथ समाज ने पूज्यचरणों में लघुनाटिका को प्रस्तुति दी। दोण्डाइचा के अहिंसा इण्टरनेशल स्कूल के छात्रों ने अणुव्रत गीत का संगान किया तदुपरान्त छात्र मिहिर कुंवर व छात्रा वंशिका शर्मा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। धुलिया की बेटियों ने गीत का संगान किया।