*🌸 पापों से विमुखता और श्रुत की अराधना में हो सम्मुखता : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸 **
*-बदला मौसम का मिजाज, विलम्ब से विहार, अल्प समय में ही आचार्यश्री ने किया दूसरा विहार **
*- 17 कि.मी. का प्रलंब विहार कर महातपस्वी पहुंचे शहापूर गांव **
*- मुख्यमुनि महावीर के जन्मदिवस पर आचार्यश्री ने प्रदान किया पावन आशीर्वाद **
*11.06.2024, मंगलवार, शहापूर, जलगांव (महाराष्ट्र) : **
भारत में मानसून सक्रिय होने से पूर्व ही महाराष्ट्र राज्य में मौसम का मिजाज बदल गया है। गत कई दिनों से यदा-कदा होने वाली बरसात ने सोमवार की देर रात पुनः अपना रंग जमाया और तेज कड़क के साथ तीव्र बरसात प्रारम्भ हुई। धीरे-धीरे बरसात मंद होती चली गई, किन्तु रिमझिम बरसात मंगलवार को प्रातः तक जारी रही। इस कारण जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के विहार में कुछ विलम्ब भी हुआ। कुछ समय पश्चात जैसे ही बरसात थमने की सूचना मिली, जनकल्याण के लिए मानवता के मसीहा महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गतिमान हुए। बरसात के कारण मौसम में शीतलता व्याप्त थी, जो यात्रा में अनुकूलता प्रदान कर रही थी। जन-जन को आशीष से आच्छादित करते हुए आचार्यश्री गंतव्य की ओर गतिमान थे।
मार्ग के दोनों ओर खेतों में किसान फसलों को उगाने की तैयारी में जुटे हुए थे। लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर शेंगोले में स्थित प्राथमिक आश्रमशाला में पधारे। बरसात के कारण इस स्थान में कीचड़ की स्थिति बनी हुई थी, तथा स्थान भी अत्यल्प नजर आ रहा था। कुछ ही समय के चिंतन के पश्चात आचार्यश्री ने यहां से प्रस्थान करने का निर्णय कर लिया तथा निर्णयानुसार महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रातराश के उपरान्त लगभग ग्यारह बजे पुनः वहां से गतिमान हुए। लगभग तीन किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी शहापूर में स्थित नारायण आनंदा बोरसे विद्यालय में पधारे।
इस प्रकार दो विहार होने के कारण दोपहर के बारह बज चुके थे, किन्तु जन-जन के कल्याण के समर्पित युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अल्प समय में ही प्रवचन के लिए भी पधार गए। उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी अपने गुणों से अच्छा, भला व साधु बनता है तो अपने अवगुणों से बुरा और असाधु होता है। कभी एक ही आदमी में अच्छाईयां और बुराईयां दोनों देखने को मिल सकती हैं। आदमी को अपने जीवन में अपने व्यक्तित्व का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे कपड़े और अच्छे गहने तो भले कुछ क्षण के लिए व्यक्तित्व को बना सकें, किन्तु आदमी का ज्ञान, विचार, आचार अच्छा होता है तो वह व्यक्तित्व सर्वत्र प्रशंसनीय व महत्त्वपूर्ण होता है।
आज ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी है। इसे श्रुत पंचमी भी कहा जाता है और मुख्यमुनि का जन्मदिन भी है। फलसूण्ड जैसे छोटे गांव में जन्मे और आज हमारे धर्मसंघ में मुख्यमुनि के पद पर हैं। आदमी कहीं से भी हो उसकी आत्मा, भाग्य व उसके पुरुषार्थ का महत्त्व होता है। मुख्यमुनि ने संघ की पढ़ाई में मुझसे ही ‘श्रेष्ठ श्रुताराधक’ की डिग्री भी प्राप्त की है। वे वर्तमान में बहुश्रुत परिषद के संयोजक भी हैं तो इस प्रकार श्रुत पंचमी भी है, सर्वश्रेष्ठ श्रुताराधक की डिग्री भी प्राप्त है और बहुश्रुत परिषद के संयोजक भी हैं। इसलिए मुख्यमुनि के जीवन में श्रुत का खूब अच्छा विकास हो। पापों से विमुखता हो और श्रुत की आराधना में सम्मुखता हो। खूब अच्छा विकास करें। सेवा व सहयोग में तत्पर रहें। प्रतिभा और प्रज्ञा निखरती रहे। खूब साधना और ज्ञान का विकास होता रहे। अपने सुगुरु के मुख से आशीष प्राप्त कर मुख्यमुनि श्रीचरणों में नतमस्तक थे। यह दृश्य श्रद्धालुओं को आह्लादित करने वाला था।
आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय डॉ. राजेन्द्र लोढ़ा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।