🌸 प्रख्यात दार्शनिक संत थे आचार्यश्री महाप्रज्ञ : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-15वें महाप्रयाण दिवस पर आचार्यश्री सहित चारित्रात्माओं ने अर्पित की भावांजलि
-10 कि.मी. का विहार कर आडुल पहुंचे शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
04.05.2024, शनिवार, आडुल, छत्रपति संभाजीनगर (महाराष्ट्र) :भीषण गर्मी, जलती धरती, गर्म हवा भारत के अधिकांश राज्यों के जन-जीवन को प्रभावित कर रही है। वहीं मानव-मानव के कल्याण के लिए एक राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में भारत देश के महाराष्ट्र राज्य में निरंतर गतिमान हैं। दृढ़ संकल्प शक्ति के धनी जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के वर्तमान अधिशास्ता इस भयंकर गर्मी से मानों अप्रभावित हैं और इन दिनों प्रायः प्रातःकाल और सान्ध्यकाल दोनों समय विहार कर रहे हैं। दोनों समय में मिलाकर प्रतिदिन पन्द्रह से बीस किलोमीटर की यात्रा को देखकर व जानकर विहरण क्षेत्र की जनता आस्था से ऐसे महामानव के समक्ष झुकती है तो मधुर मुस्कान के साथ आशीष प्राप्त कर आह्लादित भी होती है। अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ शनिवार को प्रातःकाल अगले गंतव्य आडुल की ओर गतिमान हुए। आज भी सूर्योदय के कुछ समय बाद ही आसमान में चमकते सूर्य की तीव्र किरणों से धरती जलती रही, किन्तु शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आडुल गांव में स्थित जिला परिषद प्राथमिक शाला में पधारे। आचार्यश्री के आगमन से हर्षित जैन समाज के लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया। प्राथमिक शाला परिसर में आयोजित आज के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में तेरापंथ धर्मसंघ के दशमाधिशास्ता, प्रेक्षा प्रणेता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के 15वें महाप्रयाण दिवस का अवसर भी था। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया। तदुपरान्त आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के उत्तराधिकारी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में अनेक प्रकार के बच्चे पैदा होते हैं, किन्तु कोई-कोई बच्चा आगे चलकर महापुरुष बन जाता है। आज आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का 15वां महाप्रयाण दिवस है। आज से चौदह वर्ष पूर्व वैशाख कृष्णा एकादशी को सरदारशहर गोठी परिवार के मकान के एक कमरे में दोपहर में उन्होंने अंतिम श्वास ली थी। महाप्रज्ञ आगम का महत्त्वपूर्ण शब्द है, जिसका प्रयोग आचार्यश्री तुलसी ने किया और अपने सुशिष्य को ‘महाप्रज्ञ’ अलंकरण प्रदान किया था। कुछ ही समय बाद मुनि नथमलजी ‘टमकोर’ को युवाचार्य पद प्रदान करने के उपरान्त उनके ‘महाप्रज्ञ’ अलंकरण को महाप्रज्ञ नाम के रूप में स्थापित कर दिया। वे अपने जीवन के ग्यारहवें वर्ष में पूज्य कालूगणी की सन्निधि में दीक्षा ली। उनके जीवन में सरदारशहर से बहुत जुड़ाव रहा है। उन्हें पूज्य कालूगणी का भी सान्निध्य मिला और उसके बाद आचार्यश्री तुलसी के चरणोपपात में रहे। उनमें संस्कृत भाषा का विशिष्ट विकास हुआ। उनका प्रवचन कितना स्पष्ट था। वे दार्शनिक संत के रूप में प्रसिद्ध हुए। उनकी प्रतिभा और प्रज्ञा विशिष्ट थे। आचार्यश्री तुलसी का अलंकरण मानों सार्थक था। संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी भाषा ज्ञान बहुत विशिष्ट था। साहित्य, ग्रन्थ, गीत आदि का निर्माण भी अद्वितीय था। धर्मसंघ का संचालन, राजनैतिक व धार्मिक कार्यों का संचालन कुशलतापूर्वक करते थे। उनकी जीवनशैली भी व्यवस्थित थी। उनका आयुष्य भी काफी लम्बा रहा। आचार्यश्री तुलसी को राजा मान लिया जाए तो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी उनके महामंत्री के रूप में रहे। आज उनकी वार्षिकी पुण्यतिथि मना रहे हैं। मुझे उनके चरणोपपात में रहने का मुझे सौभाग्य मिला। आचार्यश्री ने उनकी स्मृति में स्वरचित गीत का भी संगान किया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त पूज्य सन्निधि में पहुंची ब्रह्मचारिणीजी ने अपने विचार व्यक्त किए। जैन समाज की ओर से श्री संजय कासलीवाल ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। मुनि अक्षयप्रकाशजी व मुनि सिद्धकुमारजी ने आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के प्रति अपनी भावांजलि अर्पित की।