🌸 कोंकण की यात्रा सम्पन्न कर वनमार्ग से पूणे की ओर गतिमान हुए ज्योतिचरण 🌸
-आरोह-अवरोहयुक्त मार्ग पर 10 कि.मी. का विहार कर महातपस्वी पहुंचे निजामपुर
-ग.रा. मेथा माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय पूज्यचरणों से हुआ पावन
-आत्मनिग्रह के लिए अच्छे ज्ञान और आचार का होना आवश्यक : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
-विद्यालय के अध्यक्ष, प्राचार्य व शिक्षकों ने आचार्यश्री का किया भावभीना स्वागत
14.03.2024, गुरुवार, निजामपुर, रायगड (महाराष्ट्र) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी जन-जन को सन्मार्ग दिखाने के लिए वर्तमान समय में महाराष्ट्र के रायगड जिले में गतिमान हैं। वह रायगड जिला जो छत्रपति शिवाजी महाराज के समय उनके हिन्दवी साम्राज्य की राजधानी के रूप में भी जाना जाता था। उस क्षेत्र में आने वाले कोंकण क्षेत्र के अनेक गांवों को अपने सुपावन चरणों से ज्योतित कर, आध्यात्मिकता की गंगा से सिंचन प्रदान करने के उपरान्त अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना संग गुरुवार को माणगांव से पूणे की ओर जाने वाले मार्ग पर गतिमान हुए। ऐसे में कोंकण क्षेत्रवासी अपने आराध्य के श्रीचरणों में अपनी कृतज्ञता ज्ञापित कर रहे थे। हालांकि वे भी अपने सुगुरु के चरणों का अनुगमन करते हुए विहार सेवा में उपस्थित भी रहे। इतने दिनों से गुरुचरणों का दास बना राष्ट्रीय राजमार्ग-66 भी आज पूज्यचरणों से विदा हुआ। आज से आचार्यश्री पुनः एकल मार्ग पर गतिमान हुए। पहाड़ी क्षेत्र का यह मार्ग आरोह-अवरोहयुक्त और सर्पाकार भी था। मार्ग के दोनों ओर दूर-दूर तक वृक्षों, झाड़ियों व वनस्पतियों की उपस्थिति जंगल होने का प्रमाण प्रस्तुत कर रहे थे। ऐसे मार्ग पर सूर्योदय का समय प्रकृतिप्रेमियों को आकर्षित करने वाला था। शीतल बयार वातावरण को अनुकूल बनाए हुए थी। ऐसे मार्ग पर लगभग दस किलोमीटर से अधिक का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ ग.रा. मेथा माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि जीवन में दुःख भी आते हैं। बीमारी, मृत्यु, जन्म और बुढ़ापा दुःख है। आदमी दुःखों से छुटकारा पाना चाहता है तथा सुखी जीवन जीना चाहता है। दुनिया में कितने-कितने ऐसे साधक भी हुए हैं, जिन्होंने एकांत सुख अर्थात् मोक्षश्री को प्राप्त कर लिया है। आदमी जीवन में ऐसा क्या करे कि उसका वर्तमान जीवन भी अच्छा हो और आगे वाला जीवन भी अच्छा बन सके। आत्मा एक शाश्वत तत्त्व है और शरीर नश्वर है। आत्मा और शरीर का योग ही जीवन है। कोई आदमी बड़ा हो या छोटा सभी जीवन जीते हैं और एक दिन अवसान को प्राप्त हो जाते हैं। मृत्यु के घर में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। मृत्यु है तो जन्म की भी बात होती है। इसलिए पुनर्जन्मवाद का सिद्धांत भी है। कर्मफल के सिद्धांत के अनुसार आदमी जैसा कर्म करता है, उसका फल भी उसे वैसा ही प्राप्त होता है। बुरा कर्म हो तो उसका फल भी बुरा होता है और भला कार्य है तो परिणाम भी भला ही होता है। इसलिए आदमी को बुरे कार्यों व पापों से बचने के लिए संयमित जीवन जीने के लिए आत्मानुशासन करने की आवश्यकता होती है। दुनिया में कितने-कितने विद्या संस्थान शिक्षा प्रदान करने में लगे हुए हैं। इन विद्या संस्थानों के विभिन्न विषय भी पढ़ाए जाते हैं। विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों के साथ-साथ धार्मिक-आध्यात्मिक ज्ञान व अच्छे संस्कारों की शिक्षा भी प्रदान करने का प्रयास होना चाहिए। इससे बच्चों में स्वयं पर अनुशासन रखने की भावना का विकास हो सकता है। हिंसा, चोरी, झूठ, बेइमानी से बचने का प्रयास हो। शिक्षा के साथ आचार भी अच्छा हो तो सम्पूर्णता की बात हो सकती है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त निजामपुर विभाग शिक्षण प्रसारक मण्डल के अध्यक्ष श्री दत्तुशेठ पवार ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी व पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।