🌸 सद्गुणों के विकास से दुर्लभ मानव जीवन हो सकता है सार्थक : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-वाशी में गुरुमुख से प्रवाहित होने वाली अमृतवाणी का पान कर रही श्रद्धालु जनता
-मानव जीवन को सफल बनाने के सूत्रों को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
-गुरु सन्निधि में पहुंचे विभिन्न राज्यों के विजेता प्रतिभागियों ने दी अपनी प्रस्तुति
13.02.2024, मंगलवार, वाशी, नवी मुम्बई (महाराष्ट्र) : वर्तमान में हम सभी को मानव जीवन प्राप्त है। मानव जीवन को दुर्लभ बताया गया है। चौरासी लाख जीव योनियों में सौभाग्य से मनुष्य जन्म प्राप्त होता है। यह दुर्लभ मानव जीवन वर्तमान में सौभाग्य से प्राप्त है। मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी होता है, जिसमें केवलज्ञान प्राप्त करने की भी अर्हता होती है। भले सभी मानव केवलज्ञानी न भी बनें, किन्तु केवलज्ञान प्राप्त करने की अर्हता मानव को ही प्राप्त है। उच्च कोटि की साधना मानव ही कर सकता है। इस दुनिया में कितने-कितने महापुरुष आए, रहे और फिर चले गए। इस संसार में सभी राही मात्र हैं। कुछ समय के लिए स्थायीत्व की बात भले हो जाए, किन्तु पूर्णतया स्थाई कोई नहीं होता। यह इस दुनिया की गतिमत्ता है और यह सदैव बनी रहती है। मानव जीवन अनिश्चित है। मृत्यु तो परम सत्य है, किन्तु किसी मृत्यु कब आनी है, यह प्रायः अनिश्चित होता है। इसलिए इस अनिश्चित मानव जीवन को कैसे सार्थक बनाया जाए, जीवन को कैसे जीया जाए, इस पर ध्यान देने का प्रयास होना चाहिए। वर्तमान जीवन में किसी के पास पूरी भौतिक अनुकूलता है। परिवार के सदस्य अनुकूल हों, समाज में भी प्रतिष्ठा हो, पैसा, मकान, आदि-आदि सभी प्रकार की भौतिक अनुकूलता उपलब्ध हो तो मानना चाहिए कि पूर्व अर्जित पुण्य का भोग किया जा रहा है। भोग से पूर्वार्जित पुण्य तो क्षय हो रहे हैं, तो आगे के लिए भी पुण्य का अर्जन हो, ताकि आगे का जीवन भी अच्छा बन सके, इसका भी प्रयास करना चाहिए। मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिए परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन आरम्भ किया था। अणुव्रत आन्दोलन में ईमानदारी की बात बताई गई है। आदमी को अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए ईमानदारी का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। जो वस्तु दूसरे की हो, उस पर जब तक अपना अधिकार न हो, तब तक उसे लेने अथवा हड़पने का प्रयास नहीं करना चाहिए। विद्यार्थी पढ़ाई करते हैं, उन्हें अंक प्राप्त करना होता है तो विद्यार्थी अंक पूर्ण ईमानदारी से प्राप्त करने का प्रयास करें। किसी प्रकार की चोरी, छल आदि का प्रयोग न हो। गृहस्थ भी अपने जीवन में ईमानदारी हो। जीवन व्यवहार और लेन-देन में ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। यह मानव जीवन को सार्थक बनाने का प्रथम आयाम है। मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिए आदमी को अपने जीवन में सभी के प्रति मैत्री व सद्भाव का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। तीसरी बात आदमी के जीवन में संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने खान-पान, रहन-सहन में सादगी रखने का प्रयास करना चाहिए। जीवन नशामुक्त हो। ड्रग्स आदि किसी भी प्रकार के नशे से बचने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में सादगी हो, विचार ऊंचे हों और आचार अच्छा हो। यह मानव जीवन का शृंगार है। इनके माध्यम से मानव जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। जीवन में सद्गुणों का विकास हो, संयम-सादगी युक्त जीवन हो, मर्यादा-व्यवस्थओं की अनुपालन के सम्मान और जागरूकता हो, अनुशासित जीवन हो तो मानव जीवन सार्थक हो सकता है। उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को वाशी प्रवास के तीसरे दिन मर्यादा समवसरण में उपस्थित जनता को प्रदान की। मंगल प्रवचन के उपरान्त वाशीवासियों की ओर से आज भी स्वागत का कार्यक्रम रहा। इस संदर्भ में मुम्बई प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री महेश बाफना, श्रीमती सुशीला सिंघवी, अणुव्रत समिति-मुम्बई के पूर्व मंत्री श्री चेतन कोठारी व श्री सोहनलाल कोठारी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने स्वागत गीत का संगान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम-मुम्बई के सदस्यों ने भी अपनी प्रस्तुति दी। आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के तत्त्वावधान में ‘अणुव्रत क्रिएटिविटी कॉन्टेस्ट-2023’ के 18 राज्यों के चुने हुए प्रतिभागी भी उपस्थित थे। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने इस संदर्भ में अपनी अवगति प्रस्तुत की। देश के विभिन्न राज्यों से आए प्रतिभागियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी प्रस्तुतियां दीं। प्रतिभागियों को आचार्यश्री के समक्ष पुरस्कृत किया गया।