



🌸 ध्यान की साधना से हो वीतरागता की प्राप्ति : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय ज्ञान के क्षेत्र में करता रहे विकास का प्रयास : शांतिदूत
23.11.2023, गुरुवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को भगवती सूत्र आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अध्यात्म की साधना में ध्यान का परम महत्त्व है। शरीर में जो स्थान शीर्ष का होता है, वृक्ष में जो स्थान मूल का होता है, वही स्थान अध्यात्म, साधना में रत साधुओं के लिए ध्यान का होता है। स्वाध्याय और ध्यान का मानों जोड़ा होता है। ध्यान करने के उपरान्त स्वाध्याय और स्वाध्याय करने के उपरान्त ध्यान कर साधना के शिखर तक पहुंचा जा सकता है। स्वाध्याय व ध्यान की साधना से आदमी परमेश्वर की प्राप्ति कर सकता है। साधना का सबसे बड़ा महत्त्व तो वीतरागता की प्राप्ति होती है। ध्यान की साधना से आदमी को वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। शुक्ल ध्यान में क्षांति, मुक्ति, सहिष्णुता, आर्जव-मार्दव का विकास हो तो उसके सामने कोई अरबों की सम्पत्ति लाए तो उसका मूल्य नाकुछ के समान है। साधुता के समक्ष और मोक्ष की प्राप्ति की दिशा में गति करने के सामने किसी भी प्रकार के धन का भला क्या महत्त्व हो सकता है। ध्यान की साधना से चित्त की निर्मल हो, स्थिर हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के दो दिवसीय गुरु सम्बोधि कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। इस संदर्भ में विश्वविद्यालय परिवार से जुड़े कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य व दूरस्थ शिक्षा के निदेशक श्री आनंद प्रकाश त्रिपाठी, जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर श्री बच्छराज दूगड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। केन्द्रीय विश्वविद्यालय-विहार के श्री संजीव शर्मा ने कहा कि मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी को प्रणाम करता हूं। जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय बड़ा भाग्यशाली है कि इसे साक्षात आचार्यश्री का आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त है। यह यूनिवर्सिटी भारतीय पुरातन संस्कृतियों को सुरक्षित करने का भी प्रयास कर रही है। जोधपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति श्री ए.के. मलिक ने कहा कि मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है कि जो मुझे आचार्यश्री के दर्शन, आशीर्वाद और पाथेय के श्रवण का भी अवसर प्राप्त हुआ है। जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के शासनकाल में जैन विश्व भारती का जन्म हुआ था। उनकी कल्पनाओं के कारण यह डिम्ड यूनिवर्सिटी सामने आई। इसके प्रथम अनुशास्ता परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी थे। उनके सुशिष्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी द्वितीय अनुशास्ता बने। विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय में प्राध्यापक व शिष्य सरस्वती की आराधना करते हैं। जैन विश्व भारती ज्ञान के विषय में खूब विकास का प्रयास करती रहे, खूब परोपकार का कार्य करता रहे। आचार्यश्री के मंगल पाथेय के उपरान्त विश्वविद्यालय परिवार द्वारा वार्षिक प्रतिवेदन, तुलसी प्रज्ञा का नवीन अंक व संवाहिनी पत्रिका आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की गई। डॉ. धृति जैन ने अपनी पुस्तक भारतीय लोकतंत्र एवं राजनीति व कन्फिट रिज्योलुशन एवं पीस टेक्नोलॉजी पुस्तक आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की व इस संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया।






