
अन्तरात्मा की पुकार
पराये रंग रूह पर कुछ यूं तासीर हो गए,
मन सायों के स्पर्श से तिरोहित,
संस्कार कुछ धूमिल से हो गए,
आकर्षणों के करीब हुई यूं, मानो उसी में विलीन हो गई,
कुछ पलों को भूलभुलैया में गाफिल अचेत हो गई,
जीवन ने नया मोड़ लिया है,
अंतरात्मा को झकझोर दिया है,
जागृति का द्वार खोल दिया है,
शक्ति अपरिमित हूं मैं,
मैं ही अपनी अनंत ऊर्जा हूं, दीप्ति हूं मैं अपनी ही,
दिव्य असीम का अंश हूं,
यह आभास हुआ है,
ठहरना मेरा आधार नहीं, इस पल में प्यार से बहना मेरा संस्कार है,
कर अपने अंतर की रश्मियों से स्वयं को ज्योतिर्मय,
चल पड़ी हूं इस नयी राह पर,
और यूं मैं स्वयं ही स्वयं को समर्पित हो गई।
रश्मि सुराणा
कोलकाता






