



उपासक बंधु संयम, समता, सादगी का विकास करे मुनिश्री जिनेश कुमार जी
साउथ कोलकाता
साधना का महत्वपूर्ण सूत्र है – जागरुकता। जागरुकता हटी दुर्घटना घटी” जो सोता है वह खोता है जो जागता व पाता है। व्यक्ति हर प्रवृत्ति में जागरुकता का विकास करे। जागरूकता के विकास का एक महत्त्व पूर्ण सूत्र है- उपासना व्यक्ति के जीवन में आचरण के साथ उपासना का अपना महत्व है। जो संत संतियो की सेवा करता है।वह श्रमणोपासक कहलाता है। जो आत्मा में स्थित होता है वह भी उपासक होता है। जो श्रमणों की सेवा करता है व सिद्धि तक की यात्रा कर सकता है। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमारजी ने तेरापंथ भवन में उपासकों के मध्य कहे। उन्होंने आगे कहा-तेरापंथ धर्मसंघ में अनेक गति विधियां संचालित है। उनमें महत्त्व पूर्ण गतिविधि है उपासक श्रेणी। श्रावक समाज के लिए इसकी उपयोगिता असंदिग्ध प्रतीत हो रही है। जहां साधु साध्वियां नहीं पधार सकते है, वहां उपासक पर्युषण पर्व में धर्म की आराधना कराते हैं। उपासक बंधु संयम, सादगी, समता का विकास करें। परिषद को देखकर प्रवचन करे’ देव गुरु, धर्म के प्रति आस्था रखे। तत्त्वज्ञान इतिहास परंपरा का विशेष ज्ञान करें। इस अवसर पर मुनिश्री परमानंदजी ने विचार रखे। मुनिश्री कुणाल कुमारजी ने सुमधुर गीत का संगान किया। उपासक श्रेणी ने मंगल गीत का संगान किया। उपासक महावीर दुगड़ ने उपासक श्रेणी की उपयोगिता पर प्रकाश डाला।बाद में मुनि श्री की सान्निधि में उपासक की संगोष्ठी आयोजित हुई। उपासिका हिम्मत चोरड़िया ने अपनी पुस्तक भेंट करते हुए विचार रखे।






