सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में वर्ष 2025 का मंगल चतुर्मास कर रहे हैं। वर्तमान में आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आयोजन हो रहा है। शुक्रवार को इस आयोजन का तीसरा दिन था जो सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के रूप में आयोजित था।शुक्रवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में आयोजित प्रातःकालीन मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम के दौरान मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालु जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि मानव जीवन में आवर्त का निरीक्षण कर शास्त्रज्ञ ज्ञानीपुरुष उससे विरत हो जाए। मानव जीवन में चक्कर आने की समस्या आ जाए तो कुछ कठिनाई पैदा हो सकती है। इसे शारीरिक आवर्त मान लें। मानव के मन में भी कई बार उथल-पुथल हो जाती है।मन में मलीनता और चंचलता का होना समस्या को पैदा करने वाली और कष्ट देने वाली हो सकती है। मन में राग, द्वेष, घृणा, ईर्ष्या ऐसे असत् भाव उत्पन्न होते हैं तो उनसे कष्ट भी पैदा हो सकता है। विचारों का प्रवाह बहुत चलता है। विचारों का प्रवाह चलता है तो जप और प्रतिक्रमण भी बाधित हो सकता है, स्वाध्याय बाधित हो सकता है। इसके साथ राग-द्वेष भी जुड़े हो सकते हैं। जिन विचारों के साथ राग-द्वेष की भावना जुड़ गई, वे विचार ज्यादा कष्टदायी बन सकते हैं। इसलिए कहा गया है कि मन की मलीनता और मन की चंचलता पर नियंत्रण हो जाए। मन निर्मलता और एकाग्रता को प्राप्त कर ले तो मन निर्मल बन जाता है। मन की निर्मलता और एकाग्रता सध हो जाए तो मन सुमन बन सकता है।दुःख शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों मंे हो सकता है। बीमारी शारीरिक दुःख और शोक मानसिक दुःख होता है। जीवन मंे शारीरिक कठिनाइयां भी आ सकती हैं तो मानसिक पीड़ा भी आ सकती है। व्याधि, आधि और उपाधि से मुक्ति के लिए आदमी को आवर्त से बचने का प्रयास करना चाहिए। साधना लगा हुआ आदमी भी इससे मुक्त हो सकता है। आचार्यश्री भिक्षु के जन्म का तीन सौवां वर्ष चल रहा है। इस वर्ष के अंतर्गत ही परम वंदनीय आचार्यश्री तुलसी के दीक्षा के सौ वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं। आने वाली पौष कृष्णा पंचमी को आचार्यश्री तुलसी के दीक्षा के सौ वर्ष पूर्ण होने वाले हैं। इस पर भी ध्यान देना चाहिए।आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने समुपस्थित जनता को उद्बोधित किया। सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के संदर्भ में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का तीसरा दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के रूप में आयोजित है। अणुव्रत का एक संदेश है-मैत्री। सबके साथ मैत्री हो, सभी प्राणियों के साथ मैत्री हो। दुनिया में अलग-अलग धार्मिक संप्रदाय हैं। जैन शासन में अनेक संप्रदाय हैं। अलग-अलग संप्रदायों में भी सांप्रदायिक सहिष्णुता रखने का प्रयास करना चाहिए। हम सभी को दूसरों के प्रति यथायोग्य सहयोग करने का प्रयास करना चाहिए।मुनि मदनकुमारजी ने जानकारी दी। श्रीमती सौम्या लुंकड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। छत्तीसगढ़-रायपुर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी। चेन्नई तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री अशोक खतंग ने अपनी अभिव्यक्ति दी। चेन्नई ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भी अपनी प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।