



स्मृति कार्यशाला का आयोजन हुआ
जीवन की सफलता का महत्वपूर्ण सूत्र है – स्मृति विकास मुनिश्री जिनेश कुमार जी
साउथ कोलकाता
आचार्यश्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में तथा तेरापंथ सभा के तत्वावधान में स्मृति कार्यशाला का आयोजन तेरापंथ भवन में हुआ। इस अवसर पर मुनिश्री जिनेश कुमारजी ने कहा- जैन धर्म अध्यात्म प्रधान धर्म है। आत्म साधना के चार भेद बताए है – सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन सम्यग् चारित्र सम्यग् तप है। ज्ञान आत्मा का नैसर्गिक गुण है। ज्ञान से बढ़कर कोई पवित्र वस्तु नहीं है ज्ञान बंधु है। ज्ञान की प्राप्त के लिए सतत् पुरुषार्थ करना चाहिए। एकाग्रता, नियमितता, निर्विकारता अध्ययन के लिए जरूरी है। जितना जितना ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होगा उतना उतना ज्ञान बढ़ेगा। क्रोधी, अहंकारी, प्रमादी, रोगी, आलसी अट्टहास करने वाले ज्ञान को प्राप्त नहीं होते है। मुनिश्री न
ने आगे कहा जिस प्रकार विश्व की आबादी तेजी के साथ बढ रही है। उसी प्रकार तेजी के साथ व्यक्ति की स्मृति घट रही है स्मृति घटने से अनेक प्रकार की मनोकायिक आदि बीमारियां हो सकती है। कफ अधिकता, क्रोध तनाव निषेधात्मक भाव, मन की चंचलता अधिक नींद, मन की अधीरता, । दिमाग की अधिक थकान, उतावलेपन और अधीरता व वासी भोजन आदि से स्मृति घटती है संकल्प, ध्यान, योगासना, दीर्घश्वास, महाप्राण ध्वनि, ज्ञान केन्द्र पर पीलेरंग का ध्यान ज्ञानमुद्रा सकारात्मक सोच, संतुलित जीवन शैली, संयम से स्मृति बढती है मुनिश्री ने आगे कहा लम्बे समय तक लगातार नहीं पढना चाहिए। बीच बीच में कायोत्सर्ग आदि के प्रयोग करने चाहिए। मुनि श्री ने जीवन विज्ञान के प्रयोग कराते हुए स्वस्थ जीवन जीने की प्रेरणा दी। मुनि श्री परमानंदजी ने विचार रखे। मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने गीत का संगान किया। ज्ञानार्थियों को सम्मानित किया गया। उपासक मनीष छलाणी व ज्ञानशाला प्रशिक्षिका राजकुमारी सुराणा ने विचार रखे। साउथ कोलकाता में ज्ञानशाला के 70 लगभग ज्ञानार्थी उपस्थित थे।




