





🌸 तेरापंथ धर्मसंघ के अद्वितीय आचार्य गुरुदेव तुलसी : आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी की 110वीं जन्म जयंती का हुआ आयोजन
-साध्वीप्रमुखाजी व साध्वीवर्याजी ने की आचार्यश्री तुलसी की अभ्यर्थना
-अणुव्रत दिवस के रूप में आयोजित कार्यक्रम में विद्यालयी बच्चों ने दी अपनी प्रस्तुति
15.11.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : मायानगरी मुम्बई का सवाया चतुर्मास अब अपने अंतिम चरण में है, किन्तु श्रद्धालुओं की उपस्थिति और आस्था मानों अभी भी नवीन बनी हुई है। तभी तो नन्दनवन निरंतर श्रद्धालुहओं से गुलजार बना हुआ है। बुधवार अर्थात् कार्तिक शुक्ला द्वितीया को नन्दनवन में मुम्बई का चतुर्मास कर रहे तेरापंथ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता, गणाधिपति, अणुव्रत आन्दोलन के प्रवर्तक आचार्यश्री तुलसी के 110 वें जन्म जयंती का समायोजन अणुव्रत दिवस के रूप में हुआ। मुमुक्षु बाइयों व समणीवृंद ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। समणी अमलप्रज्ञाजी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री तुलसी के न्यातिले श्री सुशील खटेड़ व श्री छत्रसिंह खटेड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री तुलसी के परिजनों द्वारा गीत का संगान किया। तेरापंथ धर्मसंघ की नवीं साध्वीप्रमुखाजी ने नवमाधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी के कर्तृत्वों को व्याख्यायित करते हुए अपनी प्रणति अर्पित की। साध्वीवर्याजी ने भी गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी के प्रति अपनी भावांजलि अर्पित की। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के माध्यम से उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि तप के दो प्रकार बताए गए हैं- बाह्य तप और आभ्यान्तर तप। शरीर की प्रतिकूलता को सहन करना, आसन आदि को साधना भी तप होता है। काय क्लेश के अनेक अंग भी हैं। परम पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी के जीवन में काय क्लेश की साधना भी देखने को मिलती है। मैंने उन्हें उनके जीवन के प्रौढ़ावस्था में देखा था। दीक्षा लेने के बाद तो बहुत निकटता से उनको जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वे कितने आसन, प्राणायाम और व्यायाम की क्रिया करते थे। कायोत्सर्ग भी करते थे। कितना लम्बा विहार, अतिरिक्त श्रम तथा विहार के दौरान भी कभी उपस्थित लोगों को व्याख्यान आदि देते थे। वे तेरापंथ के पहले प्रथम आचार्य थे जो कोलकाता पधारे और उसके तुरन्त बाद शेषकाल में राजस्थान के केलवा में पधार गए। उसके बाद दक्षिण भारत की यात्रा सहित अनेक यात्राएं कीं। उन्हें शारीरिक अनुकूलता भी प्राप्त हुई थी। दीक्षा लेने के बाद उन्होंने स्वयं शिक्षा ग्रहण करने के साथ अन्य कितनों को भी शिक्षित किया। 22 वर्ष की अवस्था में तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य बनने वाले अद्वितीय आचार्य हुए। सबसे लम्बे आचार्यकाल भी उन्हीं कहा रहा तथा तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में पहले आचार्य बने, जिन्होंने अपने पद का विसर्जन भी कर दिया। आज के ही अवसर पर समण श्रेणी का प्रादुर्भाव भी उनकी मंगल सन्निधि में हुआ था और पहली समण श्रेणी की दीक्षा हुई थी। यह उनके शासनकाल की एक उपलब्धि थी। विदेश में रहने वाले लोगों में समण श्रेणी का अच्छा प्रभाव देखा जा सकता है। इस श्रेणी में शिक्षा, ज्ञान आदि का अच्छा विकास होता रहे। अणुव्रत आन्दोलन का आज के दिन ही शुभारम्भ हुआ था। इसका 75वां वर्ष अमृत महोत्सव भी मनाया जा रहा है। अणुव्रत के प्रचार-प्रसार का यथौचित प्रयास होता रहे। आचार्यश्री तुलसी का जन्मदिवस भी अणुव्रत दिवस के रूप में मनाया जाता है। हम सभी गुरुदेव तुलसी की प्रेरणाओं से स्वयं को भावित करने का प्रयास करने और अच्छे पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करते रहें। मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वी उन्नतप्रभाजी द्वारा अंग्रेजी भाषा में अनुदित श्रावक सम्बोध की पुस्तक को जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों के द्वारा लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के तत्त्वाधान में उपस्थित स्कूली बच्चों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर व श्रीमती नीलम जैन ने अपनी अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में कालधर्म को प्राप्त हो चुकीं शासनश्री साध्वी चांदकुमारी (लाडनूं) के न्यातिले श्री महेन्द्र गोलेछा ने अपनी अभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पूरे परिवार को पावन पाथेय व प्रेरणा प्रदान की।