



कालूगणी महाप्रयाण दिवस मनाया
कालूगणी निस्पृह व पुन्यशाली व्यक्तित्व के धनी थे – मुनिश्री जिनेश कुमारजी
साउथ कोलकाता
आचार्य श्री महाश्रमण के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में तथा तेरापंथ सभा के तत्वावधान में आचार्य श्री कालूगणी की पुन्यतिथि तेरापंथ भवन में मनाई गई। इस अवसर पर मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने कहा. आचार्य श्री कालूगणी तेरापंथ धर्म संघ के अष्टम् अधिशास्ता व डालगणी के सक्षम पट्टधर थे। उनका बहुआयामी व्यक्तित्व था। वे ‘ज्ञानी, व्याख्यानी, कुशल प्रशासक, निस्पृह साधक, सिद्धान्त वादी, आचार कुशल, विनीत, पापभीरू आत्मार्थी दयाल थे। उनका जन्म राजस्थान के छापुर शहर में हुआ। उनके पिता का नाम मूलचंद जी कोठारी व मातुश्री साध्वी छोगाजी था। केवल दस वर्ष की उम्र में पंचम् आचार्य मघवागणी के कर कमलों से संयम धन प्राप्त किया था। जैन आगमों का तल – स्पर्शी अध्ययन किया। आचार्य श्री बनने के बाद संस्कृत व्याकरण का भी अध्ययन किया वे प्रभावशाली व असीम पुण्यशाली आचार्य थे। उनके शासन काल में बालक बालिकाओं की बहुत दीक्षाएं हुई। उनके द्वारा दीक्षित दो मुनि तुलसी राम जी मुनि नथमल जी तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य बने। मुनिश्री ने आगे कहा आचार्य श्री कालूगणी ने साधु-साध्वियां को देशाटन का भी कराया जिसमें धर्म संघ की अत्यधिक प्रभावना हुई। वे जनजन के रखवारे थे उनकी सन्निधि में आत्म तोष मिलता है। निर्भीक चेतना के धनी थे। वे सिद्धान्त के साथ कभी समझोता नही करते थे। वे अनुशासन प्रिय थे। भाद्रव सुदी षष्ठी के दिन राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के गंगापुर में अनशन में महाप्रयाण हुआ। मानो भरत क्षेत्र का सितारा अस्त हो गया। मुनिश्री परमानंदजी ने विचार रखें। मुनिश्री कुणाल कुमारजी ने गीत की प्रस्तुति दी। तेरापंथ सभा के अध्यक्ष विनोद चोरडिया ने विचार रखे मुनिश्री परमानंद जी ने संचालन किया।












