


व्रत से व्यक्ति सुख शांति को प्राप्त होता है – मुनिश्री जिनेश कुमारजी
साउथ कोलकाता
तेरापंथ भवन में सभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री जिनेश कुमारजी ने कहा – जैन धर्म में अनुयायियों की तीन श्रेणियां निर्दिष्ट है- सुलभ बोधि सम्यक् दृष्टि व्रती । जो श्रावक होगा वह निश्चित सम्यक् दृष्टि होगा मिथ्या दृष्टि के व्रत नहीं होता है । बारह व्रत एक जैन श्रावक की आचार संहिता है। उसमें वर्तमान युग की अनेक समस्याओं के समाधान सन्निहित है ।व्रत स्वीकार करने से भव परंपरा कम हो जाती है। व्रत से व्यक्ति सुख व संयम व शांति का जीवन जीता है। 12 व्रतो में पांच अणुव्रत है जबकि सात शिक्षा व्रत है। शिक्षा व्रत में एक व्रत अनर्थ दंड यानी अनावश्यक प्रवृत्ति न हो। अनर्थ दंड के चार प्रकार बतलाए गए – अपध्यानाचरित प्रमादाचरित, हिंस्र प्रदान पाप कर्मोपदेश । अनिष्ट ध्यान, बुराध्यान। यह अप ध्यान मनुष्य में भी होता है। जो ईष्र्यालु होते है, दूसरों की प्रगति की सह नहीं पाते, वे निरंतर अपध्यान में रहते हैं । व्यक्ति के भीतर प्रमोद भावना होनी चाहिए। मेरा भाई कितना विकास कर रहा है। मेरे लिए गर्व की बात है। शिक्षा व्रतों में एक व्रत सामायिक है। धार्मिक साधना पद्धति का मूल आधार है सामायिक। उपासना के क्षेत्र में इससे बड़ा कोई ‘व्रत नहीं है। सामायिक की साधना आत्म प्रकाश की साधना है। व्यक्ति निष्काम भाव से परमार्थ भाव से शुद्ध साधु को दान देता तो बहुत बड़ी कर्म निर्जरा को प्राप्त होता है। भारतीय संस्कृति में दान का मूल्य है। दान में यश ख्याति आदि का भाव न होना चाहिए। मुनिश्री कुणाल कुमारजी ने गीत का संगान किया।




