🌸 धर्म के देव होते हैं साधु : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-आचार्यश्री ने देवताओं के प्रकारों को किया व्याख्यायित
-कालूयशोविलास के आख्यान में आचार्यश्री ने पूज्य कालूगणी के अंतिम निर्णय का किया वर्णन
23.08.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : दुनिया में अनेक प्रकार के प्राणी होते हैं। चार गतियों में एक देव गति भी होती है। देव गति को प्राप्त करने वाले जीव तो देव होते हैं। इसके अलावा भी संसार में अनेेक प्रकार के देव होते हैं। भगवती सूत्र में एक प्रश्न किया गया कि देव कितने प्रकार के होते हैं? भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि पांच प्रकार के देव बताए गए हैं- भव्य-द्रव्य देव, नर देव, धर्म देव, देवाति देव और भाव देव। इन पांच प्रकार के देवों की व्याख्या करते हुए बताया गया कि वह जीव जो अगले जन्म में देव गति में पैदा होने वाला होता है वह भव्य-द्रव्य देव होता है। इसमें कई मनुष्य और तीर्यंच गति के जीव भी हो सकते हैं। इस श्रेणी में साधु और श्रावक भी आते हैं। दूसरे प्रकार के देव नर देव होते हैं। भौतिक जगत में चक्रवर्ती सर्वोच्च होते हैं। तो मानव होते हुए भी देव के समान होते हैं। इसलिए वे नर देव कहे जा सकते हैं। तीसरे प्रकार के देव धर्म देव होते हैं। धर्म की दृष्टि से जो पूजनीय होते हैं, वे धर्मदेव कहलाते हैं। धर्म की दृष्टि से देखा जाए तो साधु आम जन के लिए पूजनीय होते हैं तो साधु धर्म देव होते हैं। चौथे प्रकार के देव देवातिदेव कहे जाते हैं। अर्हत् भगवान जो सर्वज्ञ होते हैं, तीर्थंकर जो केवलज्ञानी होते हैं। भूत, भविष्य और वर्तमान को जानने वाले होते हैं, वे देवातिदेव होते हैं। पांचवे प्रकार के देव भाव होते हैं। वह जीव तो आयुष्य पूर्ण कर देव गति में पैदा होते हैं, वे भाव देव होते हैं। इस प्रकार देव के इस विभाग में मनुष्य, तीर्यंच, देव सभी समाहित हो जाते हैं। देव होना भी बड़े सौभाग्य की बात होती है। कई मनुष्य ऐसे भी होते हैं, जो एक जन्म के बाद ही देव गति को प्राप्त हो जाते हैं। भगवान शांतिनाथ की आत्मा ने एक ही जन्म में भौतिकता के शिखर पुरुष चक्रवर्ती भी बने और साधु दीक्षा लेकर अध्यात्म जगत के शिखर पुरुष तीर्थंकर भी बन गए। उक्त देवों के प्रकार की व्याख्या जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को तीर्थंकर समवसरण में की। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने परम पूज्य कालूगणी के गंगापुर प्रवास के दौरान व्याधियुक्त शरीर ने जब जवाब देना प्रारम्भ किया तो आगे की व्यवस्था के लिए मुनि मगन से वार्ता की एक दिन मुनि तुलसी को अपने निकट बुलाकर उन्हें संघ का दायित्व सौंपने की बात बताते हैं। इन प्रसंगों को आचार्यश्री ने सरसशैली में प्रस्तुत किया। उत्तरज्झयणाणि के नवीन संस्करण के साथ आगम मंथन प्रतियोगिता की पुस्तिका पूज्यप्रवर के समक्ष जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा प्रस्तुत की गई। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया। श्री तुलसी जैन ‘तुषरा’ ने अपनी पुस्तक ‘अनन्य प्रयोग प्रेरक लघु कथाएं’ गुरु चरणों में लोकार्पित की। इस संदर्भ में श्रीमती सुनीता जैन ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने इस पुस्तक के संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया।