






🌸 धार्मिक संस्कार, अहिंसा, संयम और समन्वय से भावित रहे जीवन : महातपस्वी महाश्रमण 🌸
-महातपस्वी की मंगल सन्निधि में ‘बेटी तेरापंथ की’ का प्रथम सम्मेलन
-देश-विदेश से 500 से अधिक बेटियां परिवार तथा पतियों के साथ पहुंची गुरु सन्निधि में
-इन्द्रियों का सदुपयोग करने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
19.08.2023, शनिवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : मायानगरी मुम्बई में वर्ष 2023 का चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में यों तो अनेकानेक आयोजन प्रतिदिन समायोजित हो रहे हैं, किन्तु शनिवार को महातपस्वी की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में ‘बेटी तेरापंथ की’ का प्रथम सम्मेलन आयोजित हुआ। स्नेह, संस्कार और समन्वय के इस अनूठे सम्मेलन से मानों पूरे परिसर में स्नेह, संस्कार और समन्वय की त्रिवेणी को प्रवाहित कर दिया। इस प्रथम सम्मेलन में भाग लेने के लिए देश-विदेश से 500 से भी अधिक बेटियां सोत्साहित संभागी बनीं। इतना हीं सैंकड़ों बेटियां अपने पति व बच्चों आदि के साथ तो अनेक बेटियां पूरे परिवार के साथ इस सम्मेलन में संभागी बनीं। बेटियां अपने आध्यात्मिक मायके आकर मानों भावविभोर बनी हुईं थी। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आयोजित इस सम्मेलन के शुभारम्भ में महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता संग बेटियों को मंगल आशीष प्रदान की। वहीं बेटियों ने इस दौरान वक्तव्यों और परिसंवादों के माध्यम से ऐसी प्रस्तुति दी कि पूरा वातावरण स्नेह भावों से आप्लावित बन गया। शनिवार को तीर्थंकर समवसरण में अन्य श्रद्धालुओं के साथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित ‘बेटी तेरापंथ की’ के प्रथम सम्मेलन में संभागी बनी सैंकड़ों बेटियां और दामाद भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इसलिए विशाल प्रवचन पूरी तरह जनाकीर्ण बना हुआ था। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने नित्य के मंगल प्रवचन में भगवती सूत्र के आधार पर पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन में पांचों इन्द्रियों का प्राप्त होना एक उपलब्धि होती है। कितने-कितने जीवों को तो पांच इन्द्रियां ही नहीं प्राप्त होतीं। कुछ मनुष्य आदि जीव जो पंचेन्द्रिय तो होते हैं, परन्तु उनमें कुछ कमी भी पाई जा सकती है। जैसे कोई सुन नहीं सकता, कोई प्रज्ञाचक्षु हो जाए आदि-आदि रूप में, किन्तु जिसे पांचों इन्द्रियों की शक्तियां अच्छे रूप में प्राप्त है, मानों वह अच्छी बात है। भगवती सूत्र में इन इन्द्रियों से संबंधित बात बताई कि इन्द्रियों का प्रयोग यदि आसक्ति के वशीभूत होकर किया जाए तो सघन कर्म का बंध होता है, इसलिए आदमी को इन्द्रियों के प्रयोग में जागरूकता रखने का प्रयास करना चाहिए। इन्द्रियों का सदुपयोग करने का प्रयास होना चाहिए। इन्द्रियां ज्ञान का माध्यम बनती हैं तो राग व द्वेष के कारण पाप कर्म का बंध कराने वाली भी हो सकती हैं। आदमी को अपने इन्द्रियों के प्रयोग में संयम और जागरूकता रखने का प्रयास करना चाहिए। कानों से आर्षवाणी, शास्त्रवाणी और कल्याणीवाणी के श्रवण का प्रयास हो। नेत्रों से गुरुदर्शन, आगम, शास्त्र, साहित्य आदि के अध्ययन के रूप में उपयोग, जिह्वा से भक्ति गीतों, मंत्रों आदि का जप अथवा संगान आदि के रूप में हो तो अच्छा लाभ हो सकता है। आचार्यश्री ने कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को भी आगे बढ़ाया। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘बेटी तेरापंथ की’ के संभागियों को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि यह सम्मेलन संस्कार और शिक्षा को पुष्ट बनाने वाला है। यह जीवन की महत्त्वपूर्ण निधि हो सकती है। पुरानी स्मृतियों को ताजा करने के साथ-साथ अच्छे धार्मिक संस्कार, अहिंसा, संयम, शांति, समन्वय आदि रहे तो जीवन अपने सुखी रह सकता है। परिवार और बच्चों में अच्छे संस्कार देने का प्रयास होना चाहिए। बेटियों का तो मां-बाप के पास आना ही विशेष बात होती है तो बेटियां और अन्य भी इससे अच्छी प्रेरणा, अच्छे धार्मिक संस्कार आदि को आत्मसात करने का प्रयास करें। इस सम्मेलन के संदर्भ में ‘बेटी तेरापंथ की’ की संयोजिका श्रीमती कुमुद कच्छारा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। सहसंयोजिका श्रीमती वन्दना बरड़िया से बेटियों से परिसंवाद किया तो बेटियों के भावपूर्ण संवाद से पूरे माहौल को स्नेहिल बना दिया। महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने भी इस संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी। मुम्बई से संबंधित बेटियों ने गीत का संगान किया। श्रीमती खुशबू चण्डालिया ने 50 व श्रीमती टिना बैंगानी ने 50 की तपस्या के साथ अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान गुरुमुख से स्वीकार किया।




