

कहानी
विदाई
बेटी की वैदिक विधि से शादी होना अनायास ही तय हुआ।कोर्ट मैरिज तो हो चुकी थी।विदेश जाने के लिए आवश्यक नियमों की पूर्ति भी संभवतः पूर्ण हो चुकी थी।मन में यह निश्चिंतता थी कि दामाद विदेश में है और क़ानूनन शादी होने से बेटी का भी जाना आसान हो चुका है।अमेरिका जाकर वह अपनी मास्टर्स की पढ़ाई कर पायेगी और नवदम्पति अपना वैवाहिक जीवन भरपूर जियेंगे।कालेज में दाख़िला मिला और नए सेशन के हिसाब से एक अगस्त की टिकट बन गयी।मैं और मेरे पति भी संतुष्टि भरी ख़ुशी से बेटी की जाने की तैयारी में तरह-तरह की योजनाएँ बनाते जा रहे थे।हमारे मन के किसी कोने में यह भी इच्छा बसी हुई थी कि जाने से पहले बेटी का पाणिग्रहण संस्कार हो जाए और वह अपने दाम्पत्य जीवन की मंगलमय शुरुआत करे।
एक दिन अचानक समधीजी का फ़ोन आया कि जुलाई महीने में बेटे (मेरे दामाद)की हफ़्ते भर की छुट्टी है,क्यों न उस वक्त शादी का मुहूर्त दिखाकर वैदिक रीति से शादी कर दी जाये और हम भी बच्चों की शादी के संजोए अरमानों को पूरा कर पाएँ और बच्चों की भी वैवाहिक सुनहरी यादें आजीवन निर्मित हो सक़े।शादी एक ऐसा महान अनुष्ठान है जो दो जीवन को एक बनाता है।विश्वास,प्रेम,समर्पण,सम्मान और हर परिस्थिति को परस्पर साँझा करने का कर्तव्य बोध दिलाता है।दो जीवन के साथ-साथ दो परिवारों का भी गहरा रिश्ता बनता है और जीवन भर वह अटूट बंधन रिश्तों की मज़बूती की नींव डालता है।
हम सब अचानक बने संयोग पर बेहद प्रसन्न थे।शादी की सारी तैयारी तीव्र गति से फ़ुल प्लानिंग के साथ होने लगी।किसी भी कार्य को दक्षता से सम्पन्न करने के लिए दूरदर्शिता और टाइम मेनेजमेंट का होना सबसे ज़रूरी है।बीस दिन का छोटा सा समय लेकिन गुणवत्ता से उस समय को नापा जाए तो छोटा पिरियड भी बड़े से बड़े कार्य को संपादित करने में पूर्ण होता है।छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी तैयारी को बड़ी ही सूझबूझ और कुशलता से करना शुरू हो गया।मेहमानों और रिश्तेदारों को शादी की इत्तला और निमंत्रण एक साथ दिए गए जो उन्हें हैरान करने वाले थे,साथ ही उनके शादी में आने की कॉन्फ़र्मेशन की इत्तला भी चाही थी।
ऐसे आनन-फ़ानन में शादी सबके लिए ख़ुशी भरा विस्मय था।लेकिन वर्षों का स्नेह,अपनापन और विश्वास का प्रतिफल था कि शादी में सारे अपनों ने अपनी मौजूदगी से बच्चों के नव जीवन को भरपूर आशीर्वाद और स्नेह से सराबोर किया।हमारे लिए यह अपनों की आत्मीयता का सबसे बड़ा उपहार था।ईश्वर को कोटिशः नमन और धन्यवाद कि पुण्य दैविय शक्तियों की दिव्यता से सारे कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न हुए।चारों ओर मंगल कामना और बधाइयाँ भरे आशीर्वाद की बौछार हो रही थी।
एक -एक करके सारी रस्में सम्पन्न हो रही थी।और अब वह क्षण आ गया था जो जीवन को सम्पूर्णता और परिपक्वता की ओर ले जाता है।जीवन जहां से शुरू होता है,वह कदम दर कदम बढ़ते-बढ़ते पूर्णता की ओर जाता है।संसार की रीत चली आ रही है,हर लड़की के जीवन में शादी के बाद विदाई की घड़ी आती है।मन में यह भारीपन रहता है कि बेटी अपना घर छोड़कर हमेशा के लिए विदा हो रही है।उसका पल-पल का साथ अब नहीं मिलेगा,मन इस सोच से टीस उठता है।मेरे पति की आँखें नम थी और मेरा दिल एक माँ होने के नाते इस टीस से भरा हुआ था लेकिन मन में यह सुकून और ख़ुशी थी कि हमारी बेटी ने उन सारे ख़ुशी के पलों का आनंद उठाया जो अनायास ही एक ‘प्लेजेंट सरप्राइज़’की तरह चल कर आ गए थे।एक माँ का मन भी इसी ख़ुशी से अभिभूत था कि उसकी बच्ची जिसे हमेशा शादी की शान-शौक़त और रस्में-रिवाज का चाव था,वह पूरा हुआ।मेरा मन इस ख़ुशी और सुकून में इतना डूबा था कि उसके सामने बेटी की विदाई की टीस दब सी गई थी।
एक अगस्त का दिन भी आया। पूर्व निर्धारित प्रोग्राम के तहत उसने ‘शिकागो’के लिए अपने नए जीवन की ऊँची उड़ान भरी।लेकिन आज एक माँ का दिल जैसे रीता सा हो गया था।अंत:स्राव जैसे फूट पड़ा।मेरे आँसू जैसे थमने का नाम नहीं ले रहे थे।कल जिसे मैंने जन्म दिया,आज वह मुझे छोड़कर इतनी दूर परदेस जा रही थी।अंदर से अजीब सा ख़ालीपन महसूस हो रहा था ।यह कोई पहली बार नहीं था कि वह मुझसे दूर जा रही थी लेकिन आज वह विदा हो रही थी।उसकी विदाई का यह अहसास मुझे भरपूर कचोट रहा था। मीनाक्षी छाजेड़ कोलकाता टोलीगंज 9432206887




