




🌸 निर्मल होती है मां की ममता : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-भगवती सूत्र में वर्णित प्रसंगों को आचार्यश्री ने किया व्याख्यायित
-कालूयशोविलास आख्यानमाला का क्रम भी निरंतर जारी
09.08.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : जन-जन के कल्याण के लिए पचपन हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा करने वाले, लोगों को सन्मार्ग दिखाने के लिए निरंतर आर्षवाणी से व्याख्यान देने वाले और जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में निरंतर नवीन इतिहास का सृजन करने वाले, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपने साधु-साध्वियों संग भारत की आर्थिक राजधानी मायानगरी मुम्बई वर्ष 2023 का चतुर्मास कर रहे हैं। पांच महीने के इस चतुर्मास का मुम्बई की जनता पूर्ण लाभ लेने में जुटी हुई है। साथ ही देश से ही नहीं, विदेशों में भी रहने वाले श्रद्धालु आचार्यश्री के दर्शन, सेवा और उपासना का लाभ प्राप्त करने के लिए पहुंच रहे हैं। नन्दनवन परिसर श्रद्धालुओं के आवागमन से निरंतर गुलजार बना हुआ है। आचार्यश्री भी श्रद्धालुओं को दर्शन, सेवा और आशीष से आच्छादित करने के साथ ही प्रतिदिन आगमाधारित अमृतवाणी का अभिसिंचन भी प्रदान कर रहे हैं, जो श्रद्धालुओं के जीवन की दशा व दिशा को बदलने में सहायक सिद्ध हो सकती है। बुधवार को नन्दनवन परिसर में बने भव्य तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र में वर्णित कथा को विस्तार देते हुए कहा कि आज से लगभग 2550 वर्ष पूर्व जब भगवान महावीर इस धरती पर सदेह उपस्थित थे। उस समय वे इस धरा पर विहरण करते और स्थान-स्थान पर उनकी मंगलवाणी के श्रवण का लाभ जनता को मिलता। वे एकबार अपनी यात्रा के दौरान यात्रायित थे तो वे ब्रह्मकुण्ड गांव के पास से गुजर रहे थे। उस गांव में एक ऋषभदत्त नामक ब्राह्मण जो धन-धान्य से सम्पन्न होने के साथ श्रुत सम्पन्न भी थे। वेद, शास्त्र, नियम और सिद्धांतों के अच्छे जानकार थे और साथ में श्रमण व्यवस्था से भी परिचित थे और श्रमणोपाषक भी थे। उनकी भार्या देवानंदा भी एक धर्मवान महिला थीं। उन लोगों को जब भगवान महावीर के उस ओर आने की सूचना मिलती है तो वे लोग दर्शन को जाते हैं। बड़े ही विनम्र भाव से वे भगवान महावीर के दर्शन कर उनकी उपासना बैठ जाते हैं। इस दौरान उपासना में बैठी देवानंदा के आंखों से अश्रुधारा और स्तन से दूध की धारा प्रवाहित होने लगती है। यह देख गौतम ने भगवान महावीर से प्रश्न किया कि ऐसा क्यों हो रहा है। भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि मैं इस धरती पर सर्वप्रथम इनके ही गर्भ में आया था। इसलिए मेरी यह मां और पिता हैं। इनका अपने पुत्र के प्रति ममत्व भाव इतना चरम पर पहुंचा है, जिसके कारण ऐसा हो रहा है। भगवान महावीर प्रवचन देते हैं, जिससे दम्पत्ति बड़े हर्षित होते हैं और साधु-साध्वी के रूप में दीक्षा प्राप्त कर तपस्या, साधना करते सिद्ध, बुद्ध और मुक्त बन गए। इस प्रसंग से यह प्रेरणा ली जा सकती है कि मां का अपने पुत्र के प्रति कितना अगाध प्रेम होता है। मां की ममता बड़ी निर्मल होती है। पुत्र भले ही कितना बड़ा क्यों न हो जाए, कितना बड़ा पद भी क्यों न प्राप्त कर ले, वह अपनी मां के लिए उसका पुत्र ही होता है। स्नेह की भावना का सर्वोत्तम रूप में मां में देखा जा सकता है। उसके पुत्र के प्रति मां की हमेशा ही स्नेह की भावना बनी रहती है। मां तो मां ही होती है। इसलिए भगवान महावीर की मां देवानंदा प्रेम अगाध था। दूसरी बात है कि वह पुत्र भी बड़ा भाग्यशाली होता है कि उसके समक्ष उसके माता-पिता को मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। भगवान महावीर ने अपने माता-पिता का कल्याण किया। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी ने अपनी माता वदनाजी को दीक्षित कर उनके कल्याण का प्रयास किया था। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास आख्यानमाला के क्रम को आगे बढ़ाया। कार्यक्रम में साध्वीवर्याजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया।




