(((( ठकुरानी का अमृत वरदान ))))
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किशोरी जू अपनी सभी सखियों के यहाँ बारी-बारी खेलने जाती थी।
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तुंगविधा ने अपने गाँव मैं गुड्डे-गुड़िया का विवाह कराया। राधा रानी और ललिता जू अपने अपने गुड्डा और गुड़िया को लेकर डवारा गाँव, जो कि तुंगविधा जी का गाँव है, वहाँ पहुँची।
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कीरत मैया भी लाडली जू के संग गयी।
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किशोरी जू ने बारात के लिये मिट्टी के पकवान बनाये और फिर सब विवाह की रस्मे कराने लगी।
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इतने मैं वहाँ दुर्वासा ऋषि आ पहुँचे, इनके संग इनके दस हजार शिष्यों की मण्डली भी साथ चलती थी।
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छोटी-छोटी ब्रजगोपीयो को खेलता देख बाबा बोले: लाली, हमें बरसाने को मार्ग बताओगी।
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ललिता जू बोली बाबा जी बरसाने जायके काह करेगो…
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दुर्वाषा जी बोले हमें बृषभानू जी के यहां जानो है। हमारो पूरो शिष्य परिकर हमारे संग है, भूख लगी है बहुत जोर की..
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ललिता जू घबरा गयी, सीधी कीरत मैया के पास पहुँची!
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मैया, ओ मैया.. एक बाबा जी आयो है, अपने दस हजार शिष्यन के संग.. और बरसाने को मार्ग पूछ रह्यो है, बाबा सौ मिलनो है.. सबकू भोजन करनो है।
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कीरत मैया समझ गयी की ये जरूर दुर्वासा ऋषि है, आज तो यह निश्चित श्राप दे देंगे, क्योंकि मैं यहाँ हूँ और बाबा भी बरसाने ते बाहर हैं..!!
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मैया बोली मोये दिखाय के ला कौन सो बाबा जी है..
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मैया नोवारी चोवारी पर पहुँची, जहाँ किशोरी जू सब सखियों के संग मिलके खेल रही थी। मैया ने देखा कि लाडली जू दुर्वासा ऋषि से बात कर रही हैं।
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बाबा तुम्हे हमारे बाबा सौ मिलनो है का..!!
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बेटी तू बृषभानू जी की पुत्री है क्या.. हाँ बाबा, मैं बृषभानू जू की बेटी राधा हूँ।
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दुर्वासा किशोरी जू के दर्शन कर जड़ हो गये लाडली जू ने हिलाया बाबा सो गयो का हमारे बाबा सौ का काम है आपकू..
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दुर्वाषा जी बोले बेटी मोये और मेरे शिष्यों को भूख लगी है, राजा बृषभानू ही हमें भोजन करा सकते हैं।
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अच्छो इतनी सी बात है, बाबा तू नहाय के आ प्रसाद तैयार मिलेगो…
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बाबा नहाने चले गये कीरत मैया ओट से निकली, अरी.. राधा तेने जे का व्यथा बोय दयी।
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लाली ई तो बडो क्रोधी बाबा जी है, नेक-नेक बात पे क्रोधित हे जाय और श्राप दे दे, अब तू इतने लोगन कू भोजन कैसे तैयार करेगी..!!
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किशोरी जू सब सखियों से बोली चलो री सब माटी इकट्टी करो ओर माटी गुलाय के मोये दो, सब सखियाँ मिट्टी गलाने लगी।
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किशोरी जू ने मिट्टी की पूडी, मिट्टी की सब्जी, मिट्टी की मिठाई तैयार कर दी।
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दुर्वासा आये मिट्टी की वस्तु देख बड़े ही क्रोधित हुऐ।
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अरी छोरी, तू हमसे मजाक कर रही है, ये क्या मिट्टी की सामग्री बनाई है..
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प्रिया जू बोली बाबा जी कायकू हल्ला कर रह्यो है, काह खावेगो ईमरती.. ले मिट्टी की इमरती रख दी सामने..
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दुर्वासा ने जैसे ही मुँह मे मिट्टी की इमरती डाली, दुनिया के स्वाद भूल गये..
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और काह खावेगो रसगुल्ला ले आह हा..
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उस मिट्टी के रसगुल्ला के स्वाद के आगे सब रस फीके बाबा और सभी शिष्यों ने ऐसा भोजन जीवन मैं पहली बार किया और आशीर्वाद दिया..
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किशोरी जू को कि जो बृषभानू नन्दनी के हाथ की रसोई पायेगा, वो त्रिलोक विजयी हो जायेगा..!!
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यशोदा मैया को जब यह बात पता चली तो यशोदा मैया ने ठाकुर जी के लिये किशोरी जू के हाथो से रसोई बनवाई..
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तो महाराज ये ठाकुर तो बल भी हमारी किशोरी जू की कृपा का ही लिये फिरते हैं और नाम अपना करते हैं..!!
((((((( जय जय श्री राधे )))))))~~~~~