Surendra munot, Associate editor all india
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात),जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ ग्यारहवें अनुशास्ता, महातपस्वी, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में गुजरात राज्य के अहमदाबाद के कोबा क्षेत्र में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में वर्ष 2025 का चतुर्मास सुसम्पन्न कर रहे हैं। यह चतुर्मास गुजरात की धरती पर लगातार दूसरा चतुर्मास है। शुक्रवार को पूरा देश अपनी आजादी की 79वीं वर्षगांठ के रंग में रंगा हुआ और आचार्यश्री का चतुर्मास स्थल भी आजादी के रंग में रंगा हुआ था। प्रातःकाल चतुर्मास स्थल परिसर में झंडारोहण का आयोजन किया गया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री अरविंद संचेती आदि के साथ महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने ध्वजारोहण किया। आचार्यश्री ने समुपस्थित लोगों व बालक-बालिकाओं को मंगल प्रेरणा प्रदान की।शुक्रवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय ‘तेरापंथ प्रतिनिधि सम्मेलन’ का अंतिम दिवस भी था। प्रतिनिधि आज भी आचार्यश्री की अमृतवाणी का रसपान करने के लिए पूज्य सन्निधि में उपस्थित थे। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता व संभागी प्रतिनिधियों को आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि प्राणी सुख भी भोगता है और दुःख का अनुभव भी करता है। जो भी सुख-दुःख होता है, सबका अपना-अपना होता है। पुण्य-पाप भी सबके अपने-अपने होते हैं। अपना किया हुए कर्म प्राणी को खुद भोगना होता है। दूसरे उस कर्म को सहभागी बनकर नहीं भोग सकते। सहयोग मौके पर कर सकते हैं, किन्तु कर्म फल तो स्वयं को ही भोगना होता है। कोई किसी का गलत करता है, वह सही भी हो सकता है, स्थूल स्थिति में ठीक कह सकते हैं, किन्तु निश्चय में जाएं तो कोई दूसरा निमित्त भले बन जाए, आदमी के कर्म ही उसे दुःख अथवा तकलीफ देते हैं। इसलिए शास्त्र में कहा गया है कि सुख और दुःख सबका अपना-अपना होता है, इस बात को जानने के बाद आदमी को स्वयं को पापकारी प्रवृत्तियों से बचाने और प्रमाद से बचने का प्रयास करना चाहिए।आदमी जो भी कार्य करता है, उसके सभी कार्यों का मानों लेखा-जोखा रहता है और उसका फल उस प्राणी को भोगना होता है। भगवान महावीर बनने वाली आत्मा के पूर्व भवों को देखा जाए तो उनकी आत्मा ने अपने किए हुए कर्मों का फल भोगना पड़ा। इसलिए कोई भी आत्मा हो, उसके द्वारा किए गए कर्म भोगना ही होता है। आदमी की आत्मा कर्म बंधनों से मुक्त हो जाए, सिद्धत्व को प्राप्त हो जाए तो उसे मुक्ति मिल जाती है।आदमी को अपने वर्तमान जीवन में अपने कषायों के प्रतनु बनाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के भीतर मोहनीय कर्म के परिवार के सदस्यों से प्राणी की आत्मा जकड़ी हुई है। इसमें क्रोध है, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, ईर्ष्या आदि-आदि। आदमी इन मोहनीय कर्मों के कारण आदमी हिंसा में प्रवृत्त होता है। इनके कारण आदमी कभी हिंसा, कभी चोरी, कभी झूठ बोलता है, कभी हत्या तक भी कर लेता है। मानव जन्म मिलना और फिर धार्मिक संस्कार प्राप्त हो जाए तो बहुत बड़ी बात होती है। मानव जन्म प्राप्त करने के बाद यदि कोई पापकारी प्रवृत्तियों मंे रहता है तो वह अधोगति में भी जा सकता है तथा जो मानव धार्मिक संस्कारों से भावित हो जाए तो आत्मकल्याण की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण बात हो सकती है।आचार्यश्री ने स्वतंत्रता दिवस के संदर्भ में समुपस्थित जनता को पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि आज भारत का स्वतंत्रता दिवस है। 15 अगस्त का यह दिवस भारत के लिए गौरवशाली दिन है। आज पूरे देश में देशभक्ति का माहौल है। देश को आजादी मिलना तो बहुत बड़ी बात है। भारत जैसे देश में कितने-कितने संत, ऋषि-महर्षि हुए हैं। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के आचार्यकाल में भारत को आजादी मिली थी। उन्होंने अणुव्रत आन्दोलन भी चलाया था। आजादी के साथ देश में नैतिकता, ईमानदारी, अहिंसा की भावना रहे। सांप्रदायिक सहिष्णुता भी रहे। स्वतंत्र होना अच्छी बात, किन्तु स्वच्छंद नहीं होना चाहिए। लाकतांत्रिक प्रणाली से चलने वाला भारत देश है। जहां कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका और प्रेस भी है। लोकतंत्र में भी अनुशासन की आवश्यकता होती है। देश को अच्छा रहने के लिए अनुशासन की आवश्यकता होती है। भारत का संविधान है, जिसके अनुसार देश चल रहा है। आचार, विचार, संस्कार अच्छे रहें। अनेकता में भी एकता का भाव होना चाहिए। राजनीति में सैद्धांतिक मूल्य बने रहें।मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। तदुपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने समुपस्थित संभागी प्रतिनिधियों व श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने ‘आचार्यश्री महाश्रमण इन्टरनेशनल स्कूल’ आदि के संदर्भ में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने मंगल आशीष प्रदान करते हुए कहा कि योगक्षेम वर्ष के दौरान महासभा के पूर्व अध्यक्ष व प्रधान न्यासियों चिंतन सम्मेलन व संगोष्ठी आदि के संदर्भ में प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के समक्ष स्कूल के संदर्भ में बनी एक डाक्यूमेंट्री दर्शायी गई। अहमदाबाद ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तदुपरान्त तेरापंथ किशोर मण्डल-अहमदाबाद ने भी अपनी प्रस्तुति दी।