SURENDRA MUNOT
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कंदारी, वडोदरा (गुजरात) ,जनकल्याण के लिए साठ हजार किलोमीटर की पदयात्रा करने के बाद भी जन-जन के मानसिक तम को दूर करने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ निरंतर गतिमान हैं। गुजरात की धरती को अपनी चरणरज से पावन बनाने वाले आचार्यश्री महाश्रमणजी बुधवार को प्रातः देथाण से प्रस्थित हुए। राष्ट्रीय राजमार्ग 48 अभी गुरुचरणों का अनुगामी बना हुआ है। लगभग 13.5 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री कंदारी में स्थित मानव केन्द्र ज्ञान मंदिर में पधारे, जहां विद्यालय के प्रिंसिपल व बच्चों आदि ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। पूर्व में भी सन् 2023 में इसी विद्यालय में गुरुदेव का प्रवास हुआ था। आज पुनः आचार्य श्री का सान्निध्य पाकर सभी में अतिशय हर्षिलास छाया हुआ था।महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालुओं तथा विद्यार्थियों को आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में बताया गया है कि तो अविनीत, उदण्ड होता है, उसे विपत्ति मिलती है और जो विनीत होता है, मृदुतायुक्त और विनयशील होता है, उसे सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। दोनों ही विपरीत परिस्थितियां हैं। प्रश्न हो सकता है कि अविनीत को विपत्ति कैसे प्राप्त होती है? तो समाधान दिया गया कि अविनीत और उदण्ड व्यक्ति की आत्मा, चेतना कलुषित हो जाती है, अपवित्र हो जाती है। आत्मा की दृष्टि से नुक्सान होना भी विपत्ति ही है। व्यवहार की दृष्टि से भी देखें तो उदण्ड को कोई अपने साथ नहीं रखना चाहता, कोई उसे अपना मित्र नहीं बनाना चाहता। कहीं वह काम करे तो उसे भी वहां से हटाया जा सकता है। उदण्ड को माता-पिता से अपने से दूर करने की, विद्यालय से शिक्षक भी हटाने की सोच सकते हैं, कहीं उसे दण्डित भी किया जा सकता है। यह अविनीत के जीवन की विपत्ति प्राप्त होती है।दूसरी ओर जो विनीत होते हैं, उन्हें सभी पसंद करते हैं। लोग उसका मित्र बनना चाहते हैं, शिक्षक भी उसका ध्यान रखते हैं। कहीं वह नौकरी करे तो सेठ भी उससे लगाव रख सकता है। इस प्रकार जो विनीत और विनयशील होता है, उसे संपत्ति प्राप्त हो सकती है। विद्यार्थी जीवन में विद्या, विनय और विवेक का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में विद्या, विनय और विवेक का विकास होता है तो जीवन सुफल बन सकता है।मनुष्य जन्म को सुफल बनाने के लिए परिश्रमपूर्वक ज्ञानार्जन का प्रयास करना चाहिए। बुद्धि हो, विनशीलता और परिश्रमशीलता हो तो जीवन में ज्ञान का बहुत अच्छा विकास हो सकता है। कहा गया है कि विद्या विनय को प्रदान करने वाली होती है। विनय से आदमी पात्र बनता है और पात्र बनने के बाद उससे धन की प्राप्ति होती है, धर्म भी आता है और सुख की प्राप्ति होती है। विद्या के साथ विनय होने से विद्या सुशोभित होती है। विनय का विकास जीवन का एक सद्गुण के समान है। विद्या, विनय के साथ जीवन में विवेक भी होना चाहिए।मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को प्रेरणा प्रदान करते हुए सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो समुपस्थित विद्यार्थियों ने तीनों संकल्पों को स्वीकार किया।मानव केन्द्र ज्ञान मंदिर के प्रिंसिपल श्री महेन्द्र सिंह ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। विद्यार्थियों ने आचार्यश्री के स्वागत में गीत का संगान किया। कई चतुर्मास के बाद गुरुदर्शन करने वाली साध्वी पुण्यप्रभाजी ने अपनी अभिव्यक्ति देते हुए अपनी सहवर्ती साध्वियों के साथ गीत का संगान किया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने सभी साध्वियों को पावन आशीर्वाद प्रदान किया।