सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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ओलपाड, सूरत (गुजरात),मानवता का शंखनाद करते हुए सद्भावना के संदेश के साथ युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी सूरत शहर को पावन बना अब भुज मर्यादा महोत्सव के लिए गतिमान हो गए है। आचार्य श्री के प्रवास से समूचे सूरत शहर में एक नई आध्यात्मिक जागृति आई है। किन्तु साधु तो मानो मानों नदी की भांति होते है जो सबको तृप्त करते हुए सदा गतिमान रहती है। इसी चरैवेति चरैवेति सूत्र के साथ आचार्य श्री महाश्रमण जी धवल सेना के साथ अंकलेश्वर, भरूच, वडोदरा, बोचासन होते हुए राजकोट की ओर विहार रत हो गए है। एक जनवरी को नववर्ष का कार्यक्रम डोलीया में मनाया जाएगा वहीं 31 जनवरी से 16 फरवरी 2025 में भुज में मर्यादा महोत्सव का आयोजन संभावित है। प्रातः जहांगीरपुरा स्थित महावीर संस्कार धाम से आचार्यश्री ने प्रस्थान किया। मार्ग में जगह जगह श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए आचार्य श्री गंतव्य की ओर गतिमान हुए। आज का विहार लगभग 12 किमी का था। ओलपाड के श्रावक समाज में आचार्य श्री के आगमन को लेकर विशेष हर्षोल्लास छाया हुआ था। स्थानीय महादेव शास्त्री विद्यालय में गुरुदेव का प्रवास हुआ। इस मौके पर वन एवं पर्यावरण मंत्री श्री मुकेश पटेल धवल सेना के स्वागत हेतु विशेष रूप से उपस्थित थे। उन्होंने अपने विचारों की भी प्रस्तुति दी।मंगल प्रवचन में आचार्य श्री ने कहा – हमारे पास भाषा की शक्ति प्राप्त है और भाषा के माध्यम से हम अपनी बात दूसरे तक पहुंचा सकते हैं। दुनिया में विविध प्रकार की भाषाएं है, अन्य प्राणियों की भी अपनी एक भाषा होती है। मनुष्य की भाषा सबसे समृद्ध भाषा है। लेकिन व्यक्ति को यह चिंतन रहना चाहिए कि मैं कब बोलूँ व कब न बोलूँ व क्या बोलूँ ? न तो बोलना बड़ी बात होती है और न ही नहीं बोलना बड़ी बात होती है। बड़ी बात है बोलने व न बोलने के बीच विवेक का होना। नुपुर बोलता रहता है अतः उसका स्थान पैरों में व हार बोलता नहीं, अतः उसका स्थान गले में होता है। बोलना भी एक कला है। जो बात संक्षेप में कही जा सके उसे क्यों खिंचा जाए। बात को लम्बाना व निस्सार बोलना ये वाणी के विष हैं और सीमित व सारपूर्ण बोलना वाणी का गुण है।गुरूदेव ने आगे फरमाया कि कटुभाषिता से बचकर मधुर बोलना चाहिए। किन्तु मधुरता के साथ यथार्थता भी हो। मधुर भाषा तो वशीकरण का काम करती है। पहले तोलो फिर बोलो, यह वाणी की कलात्मकता है। गुस्से में व्यक्ति कुछ भी कह देता है। गुस्सा हार है व क्षमा उपहार है। पहले खुद झुको तो दूसरा अपने आप झुकेगा। विनम्रता से व्यक्ति बड़ा बनता है। अहं का भाव नहीं होना चाहिए। बड़ा वह होता है जो बडप्पन रखता है व जिसका स्वभाव बड़ा होता है।इस अवसर पर मुनिश्री कमल कुमार जी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। ओलपाड समाज से श्री भेरूलाल दक, श्री अशोक दक, डॉ मुकेश दक, ओसवाल साजनान संघ के अध्यक्ष श्री बाबूलाल मेहता, विधि मुकेश शाह, क्रिनव बोल्या ने अपने विचार रखे। महिला मंडल एवं कन्या मंडल की बहनों ने प्रस्तुति दी।