शिवकुमार शर्मा, राष्ट्रीय संवाददाता
Key Line Times
वाल्मीकि रामायण मे सुक और सुकी की कथा के अनुसार, सुक (तोता) क्रोध के कारण बना धोबी-जब भगवान श्रीराम अपने धाम को चले उस समय उनके साथ अयोध्या के सभी पशु – पक्षी, पेड़- पोधे मनुष्य भी उनके साथ चल पड़े। उन मनुष्यो में श्री सीता जी की निंदा करने वाला धोबी भी साथ में था। भगवान ने उस धोबी का हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उनको अपने साथ लिए चल रहे थे। जिस – जिस ने भगवान को जाते देखा वे सब भगवान के साथ चल पड़े कहते है की वहां के पर्वत भी उनके साथ चल पड़े। सभी पशु पक्षी पेड़ पोधे पर्वत और मनुष्यों ने जब साकेत धाम में प्रवेश होना चाहा तब साकेत का द्वार खुल गया। पर जैसे ही उस निंदनीय धोबी ने प्रवेश करना चाहा तो द्वार बंद हो गया।साकेत द्वार ने भगवान से कहा महाराज आप भले ही इनका हाथ पकड़ ले पर ये जगत जननी माता श्री सीता जी की निंदा कर चुका है। इसलिए ये इतना बड़ा पापी है की मेरे द्वार से साकेत में प्रवेश नही कर सकता। जिस समय भगवान सब को लेकर साकेत जा रहे थे उस समय सभी देवी – देवता आकाश मार्ग से देख रहे थे,की माता जी की निंदा करने वाले पापी धोबी को भगवान कहा भेजते है।भगवान ने द्वार बन्द होते ही इधर – उधर देखा तो ब्रह्मा जी ने सोचा की कही भगवान इस पापी को मेरे ब्रह्म लोक में न भेज दे, वे हाथ हिला – हिला कर कहने लगे महाराज इस पापी के लिए मेरे ब्रह्म लोक में कोई स्थान नही है।इंद्र ने सोचा की कही मेरे इन्द्र लोक में न भेज दे इंद्र भी घबराये,वे भी हाथ हिला – हिला कर कहने लगे महाराज इस पापी को मेरे इन्द्र लोक में भी कोई जगह नही है। ध्रुव जी ने सोचा की कही इस पापी को मेरे ध्रुव लोक में भेज दिया तो इसका पाप इतना बड़ा है की इसके पाप के बोझ से मेरा ध्रुव लोक गिर कर नीचे आ जायेगा ऐसा विचार कर ध्रुव जी भी हाथ हिला – हिला कर कहने लगे। महाराज आप इस पापी को मेरे पास भी मत भेजिएगा।जिन – जिन देवताओं का एक अपना अलग से लोक बना हुआ था उन सभी देवताओं ने उस निंदनीय पापी धोबी को अपने लोक मे रखने से मना कर दिया।भगवान खड़े – खड़े मुस्कुराते हुए सब का चेहरा देख रहे है पर कुछ बोलते नही। उस देवताओ की भीड़ में यमराज भी खड़े थे,यमराज ने सोचा की ये किसी लोक में जाने का अधिकारी नही है अब इस पापी को भगवान कही मेरे यहाँ न भेज दे और माता की निंदा करने वाले को में अपनी यमपुरी में नई रख सकता वे घबराकर उतावली वाणी से बोले,महाराज ! महाराज ! ये इतना बड़ा पापी है की इसके लिए मेरी यमपुरी में भी कोई जगह नही है।उस समय धोबी को घबराहट होने लगी की मेरी दुर्बुद्धी ने इतना निंदनीय कर्म करवा दिया की यमराज भी मुझे नही रख सकते भगवान ने धोबी की घबराहट देख कर धोबी की और संकेत से कहा तुम घबराओ मत मैं अभी तुम्हारे लिए एक नए साकेत का निर्माण करता हूँ। तब भगवान ने उस धोबी के लिए एक अलग साकेत धाम बनाया।यहाँ एक चोपाई आती है ।
सिय निँदक अघ ओघ नसाए।
लोक बिसोक बनाइ बसाए॥
ऐसा अनुभव होता है की आज भी वो धोबी अकेला ही उस साकेत में पड़ा है जहा न कोई देवी देवता है न भगवान न वो किसी को देख सकता है और न उसको कोई देख सकते है। तात्पर्य यह है की भगवान अथवा किसी भी देवी देवता की निंदा करने वालो के लिए कही कोई स्थान नही है।