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Home नगर शाहपुर में हुआ नवनिर्वाचित बजरंग सेना के सदस्यों का स्वागत। नगर शाहपुर में हाल ही में बजरंग सेना के सदस्यों को प्रदेश सहित जिले भर का दायित्व सोपा गया है जिसे लेकर समाजसेवी द्वारा सभी निर्वाचित सदस्यों का स्वागत किया गया जिसमें ऑल इंडिया मुस्लिम वक्त बोर्ड के नवनिर्वाचित जिला अध्यक्ष शकील खान को भी फूलों की माला पहनकर पुष्प भेंट किए गए जिसमें नगर के समाजसेवी शामिल थे बजरंग सेना में1. मनीष महाजन (महाराष्ट्र राज्य पत्रकार संघ के मध्य प्रदेश राज्य के संपर्क प्रमुख ) 3.शकील खान (ऑल इंडिया मुस्लिम वक्फ संपत्ति संरक्षण बोर्ड के जिलाध्यक्ष ) 3. अनिल महाजन (बजरंग सेना के नवनियुक्त जिला संरक्षक) 5.मनोज भागवतकर (बजरंग सेना के प्रदेशप्रवक्ता) उपरोक्त साथियों को जिले के साथ-साथ प्रदेश स्तरीय पदों पर नियुक्त किया गया है । इस उपलक्ष में पत्रकार साथियों का सम्मान करने का आयोजन न्यू रघुराज कृषि केंद्र शाहपुर में रखा गया था जिसमे किशोर देशमुख(कांग्रेस पार्षद दल नेता),प्रकाश कोचुरकर(मराठा समाज अध्यक्ष),विनोद महाजन(माली समाज अध्यक्ष), कैलाश असेरकर(पार्षद),हंसराज पाटिल(ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष),मुरलीधर महाजन(समाज सेवी),डॉ. प्रवीण टेभुरने(नगर काँग्रेस अध्यक्ष),नितिन इंगले(ग्रामीण कांग्रेस जिला प्रवक्ता),पंकज राऊत(पार्षद), शैलेंद्र इंगले(पूर्व पार्षद),गणेश गहलोत,गोकुल अंजन,शुभम महाजन ,सुनील बारी आदि समस्त गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। बुरहानपुर से अनिल महाजन की खबर
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Previous: 🌸 *स्वयं अभय रहते हुए दूसरों को अभयदान देने का प्रयास करे मानव : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸 *-अभय रहने को आचार्यश्री ने आयारो आगम के माध्यम से दी पावन प्रेरणा* *-जनता को लगभग एक घंटे तक आध्यात्मिक सिंचन प्रदान करते रहे युगप्रधान आचार्यश्री* *-*आध्यात्मिकता से फलते-फूलते रहें बेटी व दामाद : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण* *-कच्छ-भुज की बेटियों ने दी अपने गीत को प्रस्तुति* *04.08.2024, रविवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* महावीर समवसरण के विशाल व भव्य प्रवचन पण्डाल रविवार होने के कारण उपस्थित श्रद्धालुओं से जनाकीर्ण नजर आ रहा था। जनोद्धार के लिए निरंतर ज्ञानगंगा प्रवाहित करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी नित्य की अपेक्षा समय से पूर्व ही प्रवचन पण्डाल में पधार गए। आचार्यश्री के पधारते ही पूरा प्रवचन पण्डाल जयनिंनादों से गुंजायमान हो उठा। उपस्थित जनता को सर्वप्रथम साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उद्बोधित किया। तदुपरान्त अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से मंगल मंत्र प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जीवन जीता है। सामान्यतया आदमी में अभय रहने की भावना अथवा आकांक्षा रहती है। प्रश्न हो सकता है कि आदमी को भय किस चीज का लगता है? इसका उत्तर दिया गया कि आदमी के भय का मूल कारण दुःख होता है। आदमी स्वयं के लिए कष्ट नहीं चाहता। बीमारी, अपमान, चोरी, डकैती और कभी अपनी जान की रक्षा को लेकर भयभीत होता है। आदमी मुख्य रूप से दुःख से डरता है। आगम में बताया गया कि जीवों को अभय की कामना होती है तो आदमी को प्रयास करना चाहिए कि वह स्वयं न किसी से डरे और किसी दूसरे को डराने का प्रयास करें। अहिंसा की अनुपालना के लिए आदमी न स्वयं डरे और दूसरों को डराए। कोई भी स्थिति आ जाए, आदमी को डरे नहीं तो वह बहुत बड़ी बात होती है। जिनेश्वर भगवान भय को जीतकर अभय में रहने वाले होते हैं। दुनिया का वह सबसे सुखी आदमी होता है, जिसने भय को जीत लिया हो। आदमी यह प्रयास करे कि ना वह स्वयं डरे और न ही किसी दूसरे को डराए। उत्पीड़न कार्य करने वाला प्राणी असातवेदनीय कर्म का बंध कर लेता है। इसलिए आदमी को सभी प्रकार के प्राणियों को अभय प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी स्वयं में मनोबल, समता और शांति का भाव रखें ताकि आदमी स्वयं भी किसी से न डरे। बीमारी, कष्ट अथवा कभी मृत्यु की स्थिति सामने आए तो आदमी को समता और शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। प्राणियों को अभय का दान दे देना धर्मदान का एक प्रकार है। आगम में बताया गया कि सभी जीव अभय चाहते हैं तो आदमी को किसी भी प्रकार के प्राणियों की हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा के साधक को भी किसी नहीं डरना चाहिए, यह बहुत ऊंची बात होती है। सात्विक भय और न्यायपालिका भय तो मानों आदमी को सही रास्ते पर चलने को प्रेरित किया जा सकता है। आचार्यश्री ने ‘परस्परोपग्रहोजीवानाम्’ को विवेचित करते हुए कहा कि सामुदायिक जीवन का महत्त्वपूर्ण सूत्र बन सकता है। आदमी को परस्पर सहयोग करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को परस्पर सहयोग की भावना के जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। ‘बेटी तेरापंथ की’ के द्वितीय सम्मेलन के दूसरे दिन आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि कुमारश्रमणजी ने दुःख की घड़ी से सुख को निकालने की प्रेरणा प्रदान की। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि विश्रुतकुमारजी ने ‘बेटी तेरापंथ की’ प्रकल्प के संदर्भ में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित संभागियों को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि चतुर्मास के दौरान अनेक संस्थाओं के सम्मेलन होते हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के द्वारा ‘बेटी तेरापंथ की’ का यह नया उन्मेष आया है। जैसा कि मैंने बताया कि बेटियों के साथ दामाद भी आए हैं, यह और भी अच्छी बात है। बेटी के दामाद और फिर दोयता व दोयती भी जुड़े होते हैं। इस सम्मेलन का दूसरा और अंतिम दिन है। बेटी व दामाद धार्मिक दृष्टि से फलते-फूलते रहें, सुखी रहें। आध्यात्मिक सुख और शांति का भाव बना रहे। जहां कहीं रहें, धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा देने का प्रयास हो, परिवारों में शांति रहे, किसी प्रकार के कलह को अवसर न मिले, नशामुक्तता रहे। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत व तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत ने चौबीसी के पृथक्-पृथक् गीतों को प्रस्तुति दी। ‘बेटी तेरापंथ की’ सम्मेलन में कच्छ-भुज से संभागी बनी बेटियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपने गीत को प्रस्तुति दी।Next: 🌸 *वनस्पति जनित पदार्थों के प्रति भी अप्रमत्त रहे मानव : मानवता के मसीहा महाश्रमण* 🌸 *-आज्ञा और अनाज्ञा को आगम के सूत्र के माध्यम से किया व्याख्यायित* *-आख्यान क्रम को भी युगप्रधान आचार्यश्री ने बढ़ाया आगे* *-साध्वीवर्याजी ने भी जनता को किया उद्बोधित* *06.08.2024, मंगलवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* जन-जन का कल्याण करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2024 का चतुर्मास भारत के पश्चिम भाग में स्थित गुजरात राज्य के सूरत शहर में कर रहे हैं। सूरत शहर का यह चतुर्मास सूरत शहर की जनता के लिए ही नहीं, अपितु देश व विदेश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले श्रद्धालुओं को लाभान्वित बना रहा है। चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में विभिन्न हिस्सों से लोग यहां उपस्थित होकर चतुर्मास का लाभ उठा रहे हैं। मंगलवार को प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में महावीर समवसरण से मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के द्वारा पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा और हिंसा की बात है। जीवों को मारना प्रमत्त योग से प्राणातिपात है। हिंसा न करना अहिंसा है। हिंसा के साथ भीतर का राग-द्वेष का भाव, प्रमाद मूल कारण बनता है। प्राणी का मरना भी हिंसा है, लेकिन पापकर्म के बंध का कारण आदमी के भीतर राग-द्वेष के भाव कारण होता है। हिंसा भी दो रूप में होती है-द्रव्यतः हिंसा और भाव हिंसा। जिस प्रकार किसी प्राणी के पैर के नीचे दबकर मर जाने पर यदि वह आदमी अप्रमत्त है, आत्मलीन है तो प्राणी की हिंसा होने पर कर्म का बंध नहीं होता। कर्म का बंध भाव हिंसा से ही होता है। कही केवल द्रव्य हिंसा तो कही केवल भाव हिंसा और कहीं द्रव्य और भाव दोनों प्रकार की हिंसा होती है। जीव अपने आयुष्य से जी रहे हैं तो इसमें आदमी कोई दया नहीं है। कितने जीव संसार में मरते भी हैं तो वह भी उनका आयुष्य है, हमारी ओर से किसी प्रकार की हिंसा की बात उसमें नहीं होती है। कोई जानबूझकर मारे तो वह हिंसा की बात और जो नहीं मारने का संकल्प ले लेता है, उसके उतनी सीमा तक अहिंसा होती है। कोरी द्रव्य हिंसा, कोरी भाव हिंसा और उभय हिंसा। वनस्पतिकाय का जगत है। इतने पेड़-पौधे, काई आदि भी होते हैं। वनस्पतिकाय के प्रति जो अगुप्त वह अनाज्ञा ही है। राग-द्वेष के भाव से युक्त प्राणी अगुप्त होता है। आगम में सूक्ष्म तत्त्वों का अवबोध को आज्ञा बताया गया है। आगम अपने आप में आज्ञा है। जो वनस्पति से बनी जीवों में अगुप्त होता है, वह अनाज्ञा में होता है। आदमी को छह प्रकार के जीवों को जानकर उनकी हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। हमारे यहां यह प्रेरणा दी गयी है, मुमुक्षुओं को पहले नव तत्त्व की जानकारी प्रदान करने और उसका परीक्षण होने के बाद ही दीक्षा होनी चाहिए। आदमी को वनपस्ति जनित पदार्थों के प्रति भी समता, अनासक्ति और अप्रमत्तता का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित पुस्तक ‘चन्दन की चुटकी भली’ के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। कार्यक्रम में साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी का भी उद्बोधन हुआ।