13 महीने बाद गुजरात की धरा पर तेरापंथ के महासूर्य महाश्रमण का मंगल पदार्पण
-महाराष्ट्र की जनता व मेघों ने दी विदाई तो गुजरातवासी व मेघों ने पखारे ज्योतिचरण के पांव
-सीमा पर गुजरातवासियों ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन
-14 कि.मी. का विहार, आनंदपुर प्राथमिक शाला में वर्ष 2024 का प्रथम प्रवास स्थल
-चार अवयवों वाला होता है आत्मानुशासन : अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण
06.07.2024, शनिवार, आनंदपुर, तापी (गुजरात) :
वर्ष 2023 में गुजरात में अक्षय तृतीया महोत्सव को सुसम्पन्न कर भारत के महाराष्ट्र राज्य में चतुर्मास व अन्य संघीय महनीय कार्यक्रमों का खजाना लेकर पधारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, महातपस्वी, तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य साधिक तेरह माह के बाद पुनः गुजरात की धरा पर मंगल पदार्पण किया तो गुजरातवासी महासूर्य अभिनंदन को उमड़ पड़े। गरवी गुजरात के लोग महातपस्वी का भावभीना अभिनंदन कर रहे थे। लौह से मजबूत संकल्पों के धनी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की धरा को पावन बना रहे थे। संयोग ऐसा कि एक ओर महाराष्ट्र की जनता से की ओर से बरसते मेघों ने मानवता के मसीहा को अश्रुपूरित विदाई दी तो गुजरातीवासियों के मेघों गुजरात की धरा को पावन बनाने पधारे शांतिदूत के चरण पखारे। इस सुन्दर पल को हजारों नयनों ने अपलक निहारा और थाती की भांति संजो भी लिया।
युगप्रधान आचार्यश्री नवापुर से लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर गुजरात के तापी जिले में स्थित आनंदपुर गांव के प्राथमिक शाला में पधारे। रुक-रुककर मेघों ने झड़ी लगा रखी थी, किन्तु महातपस्वी महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं पर अपनी अमृतमयी वाणी की वर्षा कर जनता को धन्य कर दिया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वर्ष 2024 में प्रथम बार गुजरात की धरा से जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आत्मानुशासन बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। शास्त्र में कहा गया है कि श्रेष्ठ वही है, जो आदमी स्वयं अपनी आत्मा पर अनुशासन कर ले। संयम और तप के द्वारा स्वयं पर शासन करने का प्रयास करना चाहिए। प्रश्न हो सकता है कि आत्मा पर अनुशासन कैसे हो? आत्मा अमूर्त है तो उस पर अनुशासन अथवा अपने पर अनुशासन कैसे हो सकता है? उत्तर देते हुए बताया गया कि आदमी पहले स्वयं की वाणी पर नियंत्रण करे। आदमी के पास बोलने की शक्ति होती है तो वह अच्छा और बुरा भी बोल सकता है। आदमी को अपनी जुबान पर लगाम लगाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को झूठ, कटु व बेमतलब बोलने से बचने का प्रयास होना चाहिए। इसके द्वारा आदमी अपनी वाणी को साध सकता है। आदमी किसी पर झूठा आरोप न लगाए। किसी को दुर्भावना से फंसाने का प्रयास नहीं होना चाहिए। न्यायालय आदि में किसी पर झूठा आरोप लगाने से बचने का प्रयास हो।
जहां तक संभव हो, आदमी को कटु वचन बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। वचन पर अनुशासन है तो आत्मा पर अनुशासन का एक अंग आदमी को प्राप्त हो जाता है। आदमी को अपने शरीर को भी साधने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को कुछ देर अपने शरीर को स्थिर रखने की साधना हो। आदमी अपने शरीर से किसी दूसरे को कष्ट देने से बचने का प्रयास करना चाहिए। किसी जानवर को भी बिना मतलब तकलीफ देने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को मन पर अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने मन में अच्छे मंत्र के जप का प्रयास करे। आदमी सबके कल्याण व भले के विषय में सोच रखे। सभी प्राणी सुखी हों, सभी आत्मिक सुखों को प्राप्त करें। किसी को कष्ट न हो। मन में एकाग्रता बढ़े। इसके लिए आचार्यश्री महाप्रज्ञजी प्रेक्षाध्यान के प्रयोग के अंतर्गत कायोत्सर्ग कराते थे।
आदमी को अपनी इन्द्रियों पर अनुशासन रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी बुरा सुने नहीं, बुरा देखे नहीं, बुरा बोले नहीं और बुरा किसी का करे नहीं। आदमी आर्ष और आगमवाणी को सुनने का प्रयास करे। इस प्रकार वचोनुशासन, कायानुशासन, मनोनुशासन और इन्द्रियानुशासन को साध लेने से आदमी आत्मानुशासन कर सकता है। चार अवयवों वाला आत्मानुशासन होता है। आदमी अपने पर अपना अनुशासन रखे, यह मानव जीवन की अच्छी निष्पत्ति हो सकती है। इस प्रकार आदमी को संयम और तप के द्वारा अपनी आत्मा को साधने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री आगे कहा कि आज गुजरात प्रान्त में प्रवेश हुआ है। साधिक तेरह महीने पहले गुजरात में ही थे और आज वापस गुजरात में आना हो गया। सन् 2003 में सूरत में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने चतुर्मास किया था, गुरुदेव की उसी चतुर्मास भूमि पर हमारा चतुर्मास निर्धारित है। गुजरात का प्रथम पड़ाव यहां हो रहा है, यहां सबकुछ अच्छा रहे। आचार्यश्री के स्वागत में श्रीमती पूनम बुरड़ ने गीत का संगान किया।