विलक्षण कार्यक्रम ‘एकाग्रता’ का भव्य आयोजन
मुनि जिनेशकुमार ने प्रस्तुत किया स्मृति विद्या का विलक्षण प्रयोग अवधान
पुर्वांचल कोलकाता
युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेश कुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में स्मृति विकास एवं चंचलता निवारण हेतु विलक्षण कार्यक्रम एकाग्रता’ का, अवधान विद्या एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रणीत प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों के साथ का आयोजन ‘द डिविनिटि पैवेलियन में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा (कलकता पूर्वांचल) ट्रस्ट द्वारा आयोजित किया गया। कार्यक्रम के अतिथि मुख्य वक्ता प्रमोद शाह व प्रेक्षा साधक रणजीत जी दुगड़ थे। एकाग्रता “कार्यक्रम में उपस्थित।
धर्मसभा के समक्ष स्मृति विद्या का विलक्षण प्रयोग – अवधान मुनिश्री जिनेश कुमारजी ने प्रस्तुत किया। मुनिश्री 24 अंको की लम्बी संख्या, संस्कृत श्लोक, बहुभाषी शब्दों को स्मृति प्रकोष्ठ में अंकित कर जब अंत में ज्यों का त्यों सुनाया तो पूरा होल ओम् अहेम, की ध्वनि से गुंजायमान हो उठा। मुनिश्री ने बिना कागज, पेन का उपयोग किये सिर्फ मस्तिष्कय गणना से वार शोधन, सर्वतोभद्र यंत्र, घड़ी का समय बतलाना, माला प्रकाशन,, घनमूल निष्कासन आदि सवालों के जवाब देकर श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया। मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने अवधान विद्या पर प्रकाश डालते हुए कहा – अवधान विद्या चित्त की एकाग्रता और और स्मृति का स्फूर्त चमत्कार है। यह दीर्घकाल से प्रचलित है। अवधान का अर्थ है-ज्ञात अज्ञात किसी भी परिचित बात या वस्तु को एकाग्र मन से अपने स्मृति कक्ष में धारण करना। प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति के सहयोग से इस विधा को आसानी से हासिल किया जा सकता है। अवधान सिद्धि के पश्चात् व्यक्ति को श्रवण मात्र से संस्कृत के श्लोकों एवं लम्बी संख्याओं को याद करने की क्षमता प्राप्त हो जाती है। इसमें जितनी एकाग्रता होगी उतनी ही धारण करने की क्षमता प्राप्त होगी। कम्यूटर, केलकुलेटर, लेपटॉप के युग में इंसान ने अपने मस्तिष्क रूपी सुपर कम्यूटर को उनके हाथों गिरवी रख दिया है। जिसके कारण भूलने की समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। एकाग्रता एवं स्मृति के विकास के लिए आहार संयम, इन्द्रिय संयम, कषाय संयम विचार संयम, वाणी संयम के साथ व्यवस्थित दिनचर्या का पालन करना जरूरी है। प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों में महाप्राण ध्वनी दीर्घश्वास प्रेक्षा, ज्ञानकेन्द्र पर पीले रंग का ध्यान, शशांक आसन आदि के प्रयोग एकाग्रता के विकास में बहुत उपयोगी है। इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रमोद शाह ने क्या संभव है एकाग्रता से सफलता विषय पर विचार प्रकट करते हुए कहा – एकाग्रता एक कला है जिससे सफलता हासिल की जा सकती है। ज्ञान का सार है-एकाग्रता । एकाग्रता धैर्य, त्याग, योग और संयम से प्राप्त होती है।
इस अवसर पर प्रेक्षा साधक रणजीत दुगड़ ने एकाग्रता के विकास हेतु प्रेक्षाध्यान के प्रयोग कराते हुए कहा – किसी भी साधारण और असाधारण तथा किसी भी असफल और सफल व्यक्ति में अंतर है तो वह एकाग्रता का है। चंचलता दुःख का कारण है। मन शांत होगा तो एकाग्रता बढ़ेगी और आंतरिक शक्तियाँ भी बढ़ेगी। प्रेक्षाध्यान के प्रयोग कराये। कार्यक्रम का शुभारंभ बाल मुनिश्री कुणाल कुमार जी के मंगलाचरण से हुआ। स्वागत भाषण जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा पूर्वांचल कलकत्ता – पूर्वांचल ट्रस्ट के अध्यक्ष हनुमानमलजी दुगड़ ने दिया। आभार ज्ञापन मंत्री बालचंद जी दुगड़ ने किया। अतिथियों का सम्मान किया गया । कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री परमानंद जी ने किया। कार्यक्रम में बृहत्तर कोलकाता के श्रद्धालुगण अच्छी संख्या में उपस्थित रहे। कार्यक्रम को सफल बनाने में कार्यकताओं महत्वपूर्ण योगदान रहा। रहा।