आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक विवेकानंद हर पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा-स्रोत हैं। उनके विचार युवा पीढ़ी को विशेष रूप से भाते हैं। इसका कारण है उनकी कथनी और करनी का एका होना। उन्होंने जो अनुभव किया वही कहा। जो कहा वही लिखा। अपने कहने-करने में कभी भेद नहीं किया। समाज के सकारात्मक पक्ष को अपनाया और युवाओं को ऐसा करने की प्रेरणा दी। सही अर्थों में वह आधुनिक भारत के पहले ‘यूथ आइकॉन’ भी थे।
वे केवल सन्त ही नहीं, एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। शायद इसीलिए गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कभी कहा था-“यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।”
इसी सकारात्मक सोच को व्यवहार में लाने हेतु ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज ‘विवेकानंद अध्ययन केन्द्र’ का शुभारंभ कर रहा है। इस अध्ययन केन्द्र का लक्ष्य है युवाओं का सर्वांगीण विकास। उन्हें जीवन और समाज को देखने और समझने के सकारात्मक पक्ष की ओर ले जाना। देश की अनेकों विभूतियां जो अनेकानेक कारणों से इतिहास में हाशिए पर चली गयी उनसे नई पीढ़ी का साक्षत्कार करवाना। अपनी भाषा, संस्कृति, और परम्परा से परिचित करवाकर भारतीय मूल्यों को सही संदर्भों में समझाना।
इस अध्ययन केन्द्र के ‘केन्द्र’ युवा ही हैं। अनायास नहीं कि इस अध्ययन केन्द्र के उद्घाटन के लिए दो युवा प्रतिभाओं- माउंट एवरेस्ट विजेता मीनू कालीरमन और पहलवान संग्राम सिंह- को अतिथि के रूप में बुलाया गया। इन दोनों ने ही अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए संघर्षों का सामना किया।
किसान परिवार में जन्मी मीनू ने परिवार और समाज की रूढ़ियों-बंदिशों को पर करते हुए माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा लहराया। ‘विवेकानंद अध्ययन केन्द्र’ के उद्घाटन अवसर पर बोलते हुए उन्होंने अपनी मातृभाषा हरियाणवी में अपने संघर्षों और सफलताओं को साझा किया। वह बताती हैं कि एवेरेस्ट अभियान पर जाते हुए उनकी माँ ने उन्हें तिरंगा देते हुए कहा था कि या तो इसे वहाँ लहरा कर आना या इसमें लिपट कर आना। मीनू का हठ तिरंगा लहराने का रहा। ‘टॉप ऑफ द वर्ड’ पर पहुँच कर उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को संघर्ष और सफलता का नया संदेश दिया।
पहलवान संग्राम सिंह ने अपनी अथक साधना द्वारा विज्ञान पर प्रकृति की जय की नई गाथा लिखी। चिकित्सकों द्वारा बचपन में ही शारीरिक अक्षमता की घोषणा को चुनौती देते हुए उन्होंने एक सफल पहलवान बनकर उदाहरण पेश किया। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि जीवन के शुरुआती दौर में जहाँ भी असफलता मिली अपने प्रयासों द्वारा उन सभी जगहों पर मैंने सफलता पायी। विवेकानंद के हवाले से उन्होंने कहा कि चरित्र ही किसी व्यक्ति के भविष्य की दिशा को तय करता है। राम चरित्रवान थे इसीलिए वह दुष्चरित्र रावण को पराजित कर सके थे। संग्राम जी का मानना है कि जो खुश है, वही सफल है।
ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज के प्राचार्य प्रो. नरेंद्र सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विवेकानंद के हवाले से कहा कि मानव सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है। समाज और देश की सेवा करके ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
इस अवसर पर ‘विवेकानंद अध्ययन केन्द्र’ के संयोजक डॉ. धीरज कुमार सिंह भी उपस्थित थे। उन्होंने ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज की तरफ से शुरू होने वाले 40 घंटे के सर्टिफिकेट कोर्स – फाउंडेशन ऑफ मशीन लर्निंग’ की घोषणा की।