






भिक्षु दर्शन प्रशिक्षण कार्यशाला का भव्य आगाज
आचार्य भिक्षु का सैद्धांतिक विश्लेषण है – मुनिश्री जिनेश कुमार जी
राजरहाट कोलकाता
‘युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेश कुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा निर्देशित भिक्षु दर्शन प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन महाश्रमण विहार राजरहाट में तेरापंथ युवक परिषद पूर्वाचल – कोलकाता, साउथ कोलकाता, साउथ हावड़ा, उत्तर हावड़ा, लिलुआ, बेहाला, उत्तर कोलकाता, कोलकाता मेन, उत्तरमध्य कोलकाता, टालीगंज शाखा परिषदों द्वारा आयोजित की गई।
इस अवसर पर अ.भा.ते.यु.प. के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेशजी डागा, महामंत्री अमित जी नाहटा, पूर्व अध्यक्ष रतन दुगड़ आदि विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारी एवं गणमान्य व्यक्ति विशेष रूप से उपस्थित थे।
कार्यशाला में बड़ी संख्या में संभागी एवं गणमान्य व्यक्ति विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यशाला में बड़ी संख्या में संभागी एवं श्रद्धालु गण उपस्थित रहे। कार्यशाला में प्रशिक्षण देते हुए मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने कहा- जैन शासन का धार्मिक संगठन तेरापंथ है। तेरापंथ के प्रथम प्रवर्तक आचार्य भिक्षु हुए है। जिन्होंने धर्म क्रांति का बिगुल बजाया, जिससे तेरापंथ का उदय हुआ। तेरापंथ का उद्भव आचार्य भिक्षु की जागरूकता पाप भीरुता व अभय के कारण हुआ आचार्य भिक्षु अपने युग के विलक्षण, विशिष्ठ क्रांतदर्शी व युग स्रष्टा थे। वे मारवाड़ के मंदार, अलबेले व नैसर्गिक प्रतिभा के धनी थे। उनके जीवन में अनेक कष्ट आए। वे घबराएं नहीं उन्हें सत्य का प्रकाश मिला। निर्भीक होकर उन्होंने उस समय की स्थितियों का खुलकर सैद्धान्तिक विश्लेषण किया। मुनिश्री ने आगे कहा. आचार्य भिक्षु ने दान दया पुण्य की स्वतंत्र उत्पत्ति नमिथ्यात्व की सत् करनी, अल्पहिंसा, बहुनिर्जरा साहय साधन, मिश्र धर्म आदि की सटीक व्याख्या करके विशेष उपकार किया। उनके मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को सफल बनाएं। मुनिश्री ने आगे कहा युवा में शक्ति है जोश है वे होश के साथ अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर शासन की सेवा करे आचार्य भिक्षु के दर्शन को जिसने समझालिया तो मानो वह अपने पथ से भटकेगा नहीं । त्याग धर्म भोग अधर्म, आज्ञाधर्म अनाज्ञधर्म, अहिंसा धर्म, हिंसा अधर्म, हृदय परिवर्तन धर्म, जबरदस्ती अधर्म है। लोकःव्यवहार में पाप और अधर्म को बुरे कार्य के संदर्भ में समझा जाता है किन्तु यहां इन शब्दों का तात्पर्य कर्म बंधन से है उपवास करना, करवाना व अनुमोदन करना धर्म है। पारना करना, कवाना व समर्थन करना अधर्म है। संयमी को दान देना धर्म है। सुपात्र दान देना कर्म निर्जरा का कारण है। किसी को हिंसा आदि असत् प्रवृतियों से बचा लेना ही वास्तविक दया है। जिस दान से संयम और त्याग की वृद्धि हो वह धर्म दान है। अभय दान, ज्ञानदान, संयतिदान धर्म दान के भेद है। मुनिश्री ने आगे कहा. पूर्वांचल परिषद, वृहत्तर कोलकाता की परिषदों ने अपने कर्तव्य का निर्वहन किया।
इस अवसर पर बाल मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत प्रस्तुत किया। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रमेश जी डागा ने कहा – संस्कार आयाम के अन्तर्गत भिक्षु दर्शन प्रशिक्षण कार्यशाला का आगाज आज कोलकाता में मुनिश्री के सान्निध्य में हो रहा है। युवाशक्ति में भिक्षु दर्शन व तेरापंथ की जानकारी बढे यह अपेक्षित है। महामंत्री अमित नाहटा ने विषय प्रवेश करते हुए कहा आ.भ.ते.यु.प. एक महत्त्वपूर्ण संगठन है। आचार्य भिक्षु का दर्शन का अहिंसा का दर्शन है।2023 में भिक्षु दर्शन प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारम् कोलकाता से हो रहा है इसकी सफलता के लिए शुभकामना ।कार्यशाला सहप्रभारी सूर्यप्रकाश डागा ने अपने विचार व्यक्त किये। श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन अ.भा.ते.यु. प. के पूर्व अध्यक्ष श्री रतन जी दुगड़ ने किया । स्वागत वक्तव्य पूर्वाचल कोलकाता ते.यु.प. अध्यक्ष संदीप सेठिया ने व आभार मंत्री सिद्धार्थ दुधेड़िया ने लिया । विजय गीत का संगान कोलकाता की शाखा परिषदों ने पूर्वांचल स्वर लहरी ने किया । इस अवसर पर प्रमाणपत्र वितरण भी किया गया। प्रशिक्षण के क्रम में जिज्ञासा – समाधान का भी सुंदर क्रम रहा। कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री परमानंद ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में कार्यकर्ताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा।





