








🌸 ज्योतिचरण का परस पाकर पावन हुआ दादर 🌸
-दादरवासियों ने अपने आध्यात्मिक गुरु का किया भावभीना स्वागत
-दो दिवसीय प्रवास को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण पहुंचे आर.ए. रेसिडेन्सी
-थोड़े लाभ के लिए ज्यादा नुक्सान उठाना है मूर्खता : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
-दादरवासियों ने अपने आराध्य की अभिवंदना में दी भावनाओं की अभिव्यक्ति
14.12.2023, गुरुवार, दादर (पूर्व), मुम्बई (महाराष्ट्र) : अड़सठ वर्षों बाद मायानगरी में पंचमासिक चतुर्मास करने के उपरान्त मुम्बई के विभिन्न उपनगरों को अपने सुपावन चरणों से पावन बनाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें पट्टधर, अणुव्रत यात्रा के प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गुरुवार को प्रातःकाल बान्द्रा पूर्व से गतिमान हुए। आसमान में जगत को आलोकित करने वाला सूर्य गतिमान था तो धरती पर अध्यात्म जगत के महासूर्य मायानगरी के पथों पर गति करते हुए जन-जन के मानस को आध्यात्मिक आलोक से भर रहे थे। स्थान-स्थान लोग जैन और जैनेतर लोग भी आचार्यश्री के आशीर्वाद से लाभान्वित हो रहे थे। विहार के दौरान आचार्यश्री पूरी दुनिया में अपनी घनी आबादी के मशहूर धारावी एरिया से होकर पधारे। इस दौरान आचार्यश्री ने वहां के लोगांे को एक स्थान पर उपस्थित होकर मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया। स्वागत जुलूस के साथ दादर पूर्व में स्थित आर.ए. रेसिडेन्सी में पधारे। श्री साउण्ड सिने स्टूडियो के स्थान में बने वर्धमान समवसरण में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी एक चिन्तनशील प्राणी है। हालांकि सभी के चिन्तन में समानता नहीं हो सकती, किन्तु सभी मानव कुछ न कुछ चिन्तन अवश्य करते हैं। शास्त्रकार ने एक मार्गदर्शन प्रदान किया आदमी को थोड़े लाभ के लिए ज्यादा नुक्सान हो, ऐसे कार्य से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी जो भी कार्य करता है, उसमें अत्यधिक लाभ की प्राप्ति चाहता है अथवा अल्प से अल्प हानि हो। जीवन में कई ऐसे भी प्रसंग आ सकते हैं, जहां अल्प लाभ और ज्यादा नुक्सान हो जाता है। ठगी, बेइमानी, चोरी आदि के द्वारा आदमी को थोड़ा लाभ प्राप्त हो सकता है, ऐसे कार्यों से आदमी की आत्मा पापों से भारी हो जाती है, दूसरी ओर व्यावहारिक दृष्टि से भी उस आदमी के ऊपर से विश्वास समाप्त हो जाता है, एक बार आया हुआ ग्राहक कभी वहां नहीं आता है और छवि खराब हो जाती है। इस प्रकार ठगी, चोरी, बेइमानी करने वाला आदमी ज्यादा नुक्सान उठा लेता है। दूसरी ओर ईमानदारी, नैतिकता से किए हुए कार्य से आत्मा पापों से बच जाती है और उस आदमी का व्यवहार भी काफी अच्छा होता है तो उसे आगे भी लाभ प्राप्त होता है। आदमी को भौतिक कमाई के साथ-साथ धार्मिक कमाई भी करने का प्रयास करना चाहिए। चौबीस घंटे में कुछ समय धर्म-अध्यात्म की साधना, अपने भगवान की उपासना और अपनी आत्मा के कल्याण में भी लगाने का प्रयास करना चाहिए। भौतिक धन, दौलत, रुपया-पैसा सब यही रह जाता है, आत्मा के साथ आगे केवल उसकी धार्मिक पूंजी ही साथ जाती है। कमाई, धंधा, व्यापार जीवन चलाने का साधन है, मूल लक्ष्य अपनी आत्मा के कल्याण हो। तेरापंथी लोग कमाई के साथ-साथ सामायिक भी करने का प्रयास करें तो धार्मिक लाभ भी प्राप्त हो सकता है। पचास वर्ष की अवस्था को पार कर चुके लोगों का तो प्रयास होना चाहिए कि कम से एक सामायिक अवश्य हो। क्योंकि धार्मिक कमाई ही मानव जीवन के लिए कल्याणकारी हो सकती है। आचार्यश्री ने कहा कि आज दादर में आना हुआ है। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की विहार भूमि में हमारा भी आना हो गया। दादर की जनता में खूब धार्मिक भावना बनी रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। श्री तुलसी मानस स्कूल एवं जूनियर कॉलेज के उपस्थित विद्यार्थियों को आचार्यश्री ने एक वर्ष के लिए ड्रग्स सेवन न करने का संकल्प कराया। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री गणपतलाल मारू व स्वागताध्यक्ष श्री नवरतनमल कोठारी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया।
एशिया का सबसे बड़ा स्लम धारावी भी ज्योतिचरण के चरणरज से हुआ पावन बान्द्रा से दादर में प्रवास से पूर्व विहार के दौरान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता मायानगरी मुम्बई की विशाल व गगनचुम्बी इमारतों के मध्य स्थित ऐशिया के सबसे बड़े स्लम और दुनिया में सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध धारावी में भी पधारे। ज्योतिचरण का स्पर्श पाकर यह प्रसिद्ध क्षेत्र पावनता को प्राप्त हुआ। यहां के लोगों पर विशेष कृपा करते हुए आचार्यश्री ने वहां संक्षिप्त कार्यक्रम में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध भी प्रदान किया।
दो आध्यात्मिक गुरुओं का स्नेहिल मिलन दोपहर में आचार्यश्री महाश्रमणजी के पास दिगम्बर जैन समाज के आचार्य प्रमाणसागरजी उपस्थित हुए। जैन धर्म के दो आचार्यों के आध्यात्मिक मिलन से आर.ए. रेसिडेन्सी का परिसर भी धन्य हो गया। दोनों आध्यात्मिक गुरुओं के मध्य कुछ समय तक वार्तालाप का भी क्रम रहा। यह स्नेहिल मिलन जनता को आह्लादित करने वाला रहा।





