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वृंदावन शहर में एक वैध थे, जिनका मकान भी बहुत पुराना था।
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वैध साहब अपनी पत्नी को कहते कि जो तुम्हें चाहिए एक चिठ्ठी में लिख दो..
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दुकान पर आकर पहले वह चिठ्ठी खोलते। सामान के भाव देखते, फिर कान्हा से दुआ करते कि “सांवरे” मैं केवल तेरी इजाजत से तुझे छोड़कर यहाँ दुनिया में आ बैठा हूँ।
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तूँ मेरी आज की व्यवस्था कर देगा। उसी समय यहां से उठ जाऊँगा और फिर कभी सुबह साढ़े नौ, कभी दस बजे वैध जी रोगियों को दवा देकर वापस अपने गांव चले जाते।
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एक दिन वैध जी ने दुकान खोली। फिर चिठ्ठी खोली तो देखते ही रह गए।
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एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आंखों के सामने तारे चमकते हुए नजर आ गए लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने मन पर काबू पा लिया।
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आटे दाल चावल आदि के बाद पत्नि ने लिखा था, बेटी के दहेज का सामान लाना है जी..
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कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की कीमत लिखने के बाद दहेज के सामने लिखा ”यह काम मेरे कान्हा का है, कान्हा ही जाने।”
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एक दो मरीज आए थे। उन्हें वैध जी दवाई दे रहे थे।
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इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दुकान के सामने आकर रुकी
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दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए। वह साहब कार से बाहर निकले और राधे राधे करके बैंच पर बैठ गए।
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वैध जी ने कहा कि अगर आपने अपने लिए दवा लेनी है तो, आपकी नाड़ी देख लूँ
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उस आदमी ने कहा की वैध जी… मुझे लगता है आपने मुझे पहचाना नहीं ? मैं 15-16 साल बाद आप की दुकान पे आया हूँ
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आप को पिछली मुलाकात की बात सुनाता हूँ फिर शायद आपको सारी बात याद आ जाएगी ।
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वैध जी मैं 5, 6 साल से इंग्लैंड में रहता हूँ। इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन अब तक बच्चा नह़ीं हुआ।
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यहां भी इलाज किया और इंग्लैंड में भी करवाया लेकिन हमारी किस्मत में शायद बच्चा नहीं था…
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आपने कहा, मेरे भाई ! अपने भगवान से निराश ना हो .. याद रखो ! उसके खज़ाने में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। औलाद, माल, धन दौलत और खुशी ग़मी जीवन मृत्यु सब कुछ उसी के हाथ में है।
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किसी वैध के हाथ में कुछ भी नहीं है। अगर औलाद होनी है तो मेरे सांवरे के आर्शीवाद से ही होनी है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है।
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मुझे याद है आप बातें करते जा रहे थे और साथ साथ, पुड़ियाँ भी बना रहे थे।
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फिर आपने मुझसे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है ? मैंने बताया कि मेरा नाम सतीश है। आपने एक लिफाफे पर कान्हा और दूसरे पर राधे लिखा। फिर दवा लेने का तरीका बताया।
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लेकिन जब मैंने पूछा कितने पैसे ? आपने कहा बस ठीक है। मैंने जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है।
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मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई।
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आपने बताया… भाई आज के घर खर्च के लिए जितनी रकम वैध ने कान्हा जी से मांगी थी वह सांवरे ने इनको दे दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते।
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मैं बहुत हैरान हुआ और शर्मिंदा भी हुआ कि मेरे कितने घटिया विचार थे और यह वैध कितना महान व्यक्ति है।
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मैंने जब घर जा कर बीवी को दवा दिखाई और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई फरिश्ता है और उसकी दी हुई दवा हमारे मनोकामना ज़रूर पूरी करेगी जी
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वैध जी आज मेरे घर में तीन बच्चे हैं। हम पति पत्नी हर समय आपके लिए दुआयें करते हैं।
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जब भी वृदांवन में छुट्टी में आया। कार उधर रोकी लेकिन दुकान को बंद पाया।
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कल दोपहर भी आया था दुकान बंद थी। एक आदमी पास ही खड़ा हुआ था। उसने कहा कि अगर आपको वैध जी से मिलना है तो सुबह 9 बजे अवश्य पहुंच जाएं वरना उनके मिलने की कोई गारंटी नहीं। इसलिए आज सवेरे सवेरे आपके पास आया हूँ।
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वैध जी हमारा सारा परिवार इंग्लैंड में बस चुका है। केवल एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ वृंदावन में रहती है।
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हमारी भांजी की शादी इस महीने की 21 तारीख को होनी थी। इस भांजी की शादी का सारा खर्च मैं अपने ज़िम्मा लिया था।
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10 दिन पहले इसी कार में उसे मैं पानीपत अपने रिश्तेदारों के पास भेजा कि शादी के लिए जो चीज़ चाहे खरीद ले।
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उसे पानीपत जाते ही बुखार हो गया लेकिन उसने किसी को नहीं बताया। बुखार की दवा खाती रही और बाजारों में फिरती रही।
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बाजार में फिरते फिरते अचानक बेहोश होकर गिरी। उसे अस्पताल ले गए। वह बेचारी इस दुनिया से चली गयी
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इसके मरते ही न जाने क्यों मुझे और मेरी पत्नी को आपकी बेटी का ख्याल आया।
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हम ने और हमारे सभी परिवार ने फैसला किया है कि हम अपनी भांजी के सभी दहेज का साज़-सामान आपके यहां पहुंचा देंगे।
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शादी जल्दी है तो इन्तज़ाम खुद करेंगे और अगर अभी कुछ देर है तो सभी खर्चों के लिए पैसा आप को नकदी पहुंचा देंगे। आप कृपा करके मना मत करना।
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अपना घर दिखा दें ताकि सारा सामान वहाँ पहुंचाया जा सके।
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वैध जी हैरान-परेशान हुए बोले ” सतीश जी आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा, मेरा इतना मन नहीं है।
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मैं तो आज सुबह जब पत्नी के हाथ की लिखी हुई चिठ्ठी यहाँ आकर खोलकर देखा तो मिर्च मसाला के बाद जब मैंने ये शब्द पढ़े ” बेटी के दहेज का सामान ” तो तुम्हें पता है मैं क्या लिखा। आप खुद यह चिठ्ठी जरा देखें।
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सतीश जी यह देखकर हैरान रह गए कि ”बेटी के दहेज” के सामने लिखा हुआ था ”यह काम कान्हा का हे, कान्हा ही जाने।”
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सतीश जी यकीन करो आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि पत्नी ने चिठ्ठी पर बात लिखी हो और मेरे सांवरे ने उसका उसी दिन व्यवस्था न कर दी हो।
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आपकी भांजी की मौत का मुझे सदमा है, अफसोस है लेकिन मैं सावंरे की कुदरत से हैरान हूँ कि वे कैसे अपने काम दिखाता है।
((((((( जय जय श्री राधे )))))))~~~~~





