Surendra munot, associate editor all india
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,धर्मनगरी अहमदाबाद आज ऐतिहासिक पलों का साक्षी बना जब युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने भव्य दीक्षा समारोह में सत्रह मुमुक्षुओं को दीक्षा प्रदान की। अहमदाबाद में यह पहला प्रसंग था जब जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यों द्वारा यहां एक साथ मुनि दीक्षा, साध्वी दीक्षा और समणी दीक्षा के तहत सत्रह दीक्षा प्रदान की गई हो। प्रेक्षा विश्व भारती के मनोरम प्रांगण में हजारों श्रद्धालुओं के जनसमूह के मध्य दस दीक्षार्थी बहनें एवं सात दीक्षार्थी भाई संसार के पथ को छोड़ वैराग्य पथ पर अग्रसर हो गए, भोग का मार्ग छोड़ योग की ओर बढ़ चले। जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी के युग में बच्चे, युवा ऐशो आराम की जिंदगी के आदि बनते जा रहे है ऐसे में भौतिक वस्तुओं का त्याग पर संन्यास जीवन स्वीकारना एक विरल बात होती है। अहमदाबाद में अपना प्रथम चातुर्मास कर रहे युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सानिध्य में भव्य दीक्षा समारोह से यह चातुर्मास और ऐतिहासिकता को प्राप्त हो गया।प्रातः 09 बजे के साथ ही जैन भागवती दीक्षा समारोह का शुभारंभ हो गया। मुमुक्षु रुचिका, मुमुक्षु भावना ने दीक्षार्थियों का परिचय प्रदान किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था के अध्यक्ष श्री बजरंग जैन ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। जिसके बाद दीक्षार्थियों के पिता, भाई आदि पारिवारिक जनों ने गुरूदेव को आज्ञा पत्र समर्पित किया। तत्पश्चात आचार्य प्रवर ने भरी परिषद में दीक्षार्थी भाई बहनों से प्रश्नोत्तर कर परीक्षण किया। गुरूदेव के द्वारा आगम वाणी के उच्चारण के साथ ही कुछ क्षण पहले जो संसारी थे वें मुमुक्षु संन्यास जीवन में प्रविष्ट हो गए। हजारों श्रावकों की परिषद ने मत्थेण वन्दामि के घोष के साथ नवदीक्षित साधु साध्वियों को वंदन किया। तेरापंथ की दीक्षा अपने नियम, विधान के कारण एक अलग पहचान रखती है। देश विदेश से पहुंचे हजारों श्रावक श्राविकाएं इन विरल क्षणों के साक्षी बनें।गुरू के हाथों में शिष्य की चोटी ,शिष्य की चोटी गुरू के हाथों में रहती है इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए आचार्य प्रवर ने दीक्षा संस्कार के अंतर्गत नव दीक्षित मुनियों का आंशिक केश लूंचन किया वही साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी ने गुरू आज्ञा से नवदीक्षित साध्वियों का केश लूंचन किया। इसके पश्चात जैन साधु की पहचान धर्मध्वज ‘रजोहरण’ नूतन दीक्षार्थियों को प्रदान करते हुए गुरूदेव ने आशीष प्रदान किया।दीक्षा पश्चात आध्यात्मिक नामकरण करते हुए गुरुदेव ने नवदीक्षितों को नाम प्रदान किए जो इस प्रकार है – मुमुक्षु विशाल परीख बने मुनि विशाल कुमार, जिगर मेहता बने मुनि जैनम कुमार, कल्प मेहता बने मुनि कल्प कुमार, मनोज संकलेचा बने मुनि मर्यादा कुमार, प्रीत कोठारी बने मुनि प्रीत कुमार, मोहक बेताला बने मुनि मेघ कुमार, अर्हम सिंघी बने मुनि आर्ष कुमार। इसी तहत नव दीक्षित साध्वियों में मुमुक्षु भावना बाफना बनी साध्वी भावनाप्रभा, मनीषा डुंगरवाल बनी साध्वी मंथन प्रभा, राजुल खाटेड़ बनी साध्वी धीर प्रभा, कीर्ति बुच्चा बनी साध्वी कल्याण प्रभा, प्रेक्षा कोचर बनी साध्वी ऋतंभरा प्रभा, रश्मि महनोत बनी साध्वी रहस्य प्रभा। समण श्रेणी में मुमुक्षु वीनू संकलेचा समणी विज्ञ प्रज्ञा, अंजली सिंघवी बनी समणी अपूर्व प्रज्ञा, भाविका नाहटा बनी समणी भावित प्रज्ञा, साधना बांठिया बनी समणी विनम्र प्रज्ञा।समारोह में ऐतिहासिकता का एक मुख्य बिंदु रहा USA में जन्मा 16 वर्षीय दीक्षार्थी मुमुक्षु अर्हम। शिकागो में जन्म एवं बाद के कई वर्षों तक अमेरिका में ही रहने वाले अर्हम ने आचार्य श्री महाश्रमण से दीक्षा स्वीकार कर संन्यास ग्रहण किया। आपने कक्षा दसवीं तक अध्ययन किया है। वर्तमान में कोलकाता में प्रवास करने वाले अर्हम के परिवार से पूर्व में कई तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित है।मंगल उद्बोधन में गुरुदेव ने कहा – सांसारिक सुख क्षणिक सुख होते है। भौतिक वस्तुओं से प्राप्त होने वाला सुख स्थाई नहीं होता। मनुष्य के आयुष्य की भी एक सीमा होती है इसलिए आत्म कल्याण की दिशा में व्यक्ति को बढ़ना चाहिए। आध्यात्मिक सुख स्थाई सुख होता है। वह भाग्यशाली होता है जिसे दीक्षा प्राप्त होती है। संयम की संपदा सबसे बड़ी संपदा है। इसके सामने संसार के सभी हीरे जवाहरात भी फीके है। गुरूदेव ने नवदीक्षितों को प्रेरणा देते हुए कहा कि साधु जीवन में अब हर क्रिया संयमपूर्वक हो। चलने में संयम, भोजन में संयम, बैठने में संयम, उठने, बोलने हर गतिविधि में संयम हो।कार्यक्रम में साध्वी प्रमुखा विश्रुतविभा जी ने दीक्षा के महत्व को व्याख्यायित किया। दीक्षार्थियों ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। मंच संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया।