आसक्ति, चिंता, दुःख
एक कौवे ने माँस का टुकड़ा देखा और उसे लेकर उड़ा..
तभी कई पक्षियों ने उसका पीछा किया.. कौवा बहुत डर गया। उनसे बचने के लिये वह और ऊँचा उड़ने लगा, लेकिन बेचारा कौवा उन ताकतवर पक्षियों से पीछा नहीं छुड़ा पाया..
जब गरुड़ जी ने कौवे की दुर्दशा देखी तो करीब से उड़ते हुए पूछा, “क्या हुआ, भ्राता? बहुत परेशान लग रहे हो?”
कौवा बोला, “ये सब पक्षि मुझे मारना चाहते हैं..
गरुड़ हँसते हुए बोले, वे तुम्हें मारने के लिए नहीं बल्कि इस माँस के टुकड़े के पीछे हैं.. जिसे तुम अपनी चोंच में कसकर दबाए हुए हो, इसे छोड़ दो और देखो फिर क्या होता है।
कौवे ने गरुड़ की बात मान ली और माँस के टुकड़े को गिरा दिया, फौरन सारे पक्षी उस माँस के टुकड़े के पीछे लग गये..
कौवे ने राहत की साँस ली, गरुड़ ने उसे समझाया “दुख दर्द केवल तब तक रहते हैं जब तक हम उन्हें पकड़कर रखते हैं।
कारण जानकर उस वस्तु से, उस रिश्ते से अपना मोह त्यागने पर हमारे सारे दुख, हमारी सारी पीड़ा, समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।
कौवा नतमस्तक होकर बोला, आपकी बुद्धिमानी भरी सलाह के लिए बहुत आभार।
हम रिश्तों को, या कीमती वस्तुओं को अपना समझते हैं और हमेशा इनका बोझा ढोते रहते हैं..
संतजन समझाते हैं, हम ख़ाली हाथ आये थे और बिल्कुल ख़ाली हाथ ही जायेंगे।
जिस शरीर से आज हमें इतना लगाव है, हमारी मौत के बाद, कुछ लोग तो अपने अँगों का दान कर देते हैं, कुछ दफना देते हैं और बाकी अग्नि के हवाले कर दाह संस्कार कर देते हैं।
भगवान के रचे हुए ड्रामा में, हमें जो भी अभिनय दिया गया है, उसे बड़ी बखूबी से निभाना चाहिए.. सँसार की किसी भी वस्तु पर या किसी रिश्ते पर अपना हक नहीं जताना चाहिए.. हमारी सोच कुछ ऐसी बन जाये, यह प्रार्थना है भगवान श्री हरि के चरणों में।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे