
(((( भगवान का पता ))))
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एक बार भगवान दुविधा में पड़ गए..
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कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता तो भगवान के पास भागा भागा आता और उन्हे अपनी अपनी परेशानियां बताता। उनसे कुछ न कुछ मांगने लगता।
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अंततः उन्होंने इस समस्या के निवारण के लिए देवताओं की बैठक बुलाई। और बोले-” देवताओं, मैं मनुष्य की रचना करके कष्ट में पड़ गया हूं, कोई न कोई मनुष्य हर समय मुझसे शिकायत ही करता रहता है।
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कभी भी संतुष्ट नहीं रहता, जबकि मैं उन्हें समय व कर्म अनुसार सब कुछ दे रहा हूं। फिर भी थोड़े से कष्ट आते ही वह मेरे पास भागा भागा आ जाता है।
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जिससे ना तो मैं कहीं शांतिपूर्वक रह सकता हूं, और न ही कुछ कर सकता हूं। आप लोग मुझे कृपया ऐसा स्थान बताएं जहां मनुष्य नाम का प्राणी कदापि न पहुंच सके।
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प्रभु के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने अपने विचार प्रकट किए। किसी ने कोई जगह बताई, किसी ने कोई जगह।
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भगवान ने कहा “यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच में हैं। उसे वहां पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा।
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तब इंद्रदेव ने सलाह दी कि वह किसी महासागर में चले जाएं, बरुण देव बोले कि आप अंतरिक्ष में चले जाए।
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भगवान ने कहा “एक न एक दिन मनुष्य वहां भी अवश्य पहुंच जाएगा। भगवान निराश होने लगे वह मन ही मन सोचने लगे क्या मेरे लिए कोई भी ऐसा गुप्त स्थान नहीं है ? जहां मैं शांतिपूर्वक रह सकूँ।
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अंत में सूर्य देव बोले “कि प्रभु आप ऐसा करें मनुष्य के ह्दय में हीं बैठ जाएं”। मनुष्य अनेक स्थान पर आपको ढूंढने में सदा उलझा रहेगा पर वह यहां आपको तलाश नहीं कर सकेगा।
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ईश्वर को सूर्य देव की बात पसंद आ गई उन्होंने ऐसा ही किया, और वह मनुष्य के ह्दय में जाकर बैठ गए।
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उस दिन से मनुष्य अपना दुख व्यक्त करने के लिए ईश्वर को मंदिरों आकाश जमीन पाताल में ढूंढ रहा है। पर वह नहीं मिल रहे हैं।
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परंतु मनुष्य कभी भी अपने भीतर ह्दयरूपी मंदिर में विराजमान ईश्वर को नहीं देख पाता।
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मोको कहां ढूंढे रे बंदे मै तो तेरे पास में।
ना मैं मंदिर, ना मै मस्जिद, ना काबे कैलाश में।
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फिर भी संत महात्माओं ने दया करके हमें भगवान का पता तो दे ही दिया है।
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अब जिम्मेदारी भी हमारी ही है, कि उसको पाने के लिए सच्चे मन से प्रार्थना करेंगे, उसको कातर भाव पुकारेंगे, तो ही वह मिलेगा और जब भी जिसको मिला है, अपने अंदर ही मिला है।
((((((( जय जय श्री राधे )))))))~~~~~




