
सुरेंद्र मुनोत, राष्ट्रीय सहायक संपादक
Key Line Times
राजस्थान, शीशोद, डूंगरपुर (राजस्थान) ,धोरों की धरती व वीरों की धरती राजस्थान में आध्यात्म की ज्ञानगंगा को प्रवाहित करते हुए अपनी धवल सेना के साथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी निरंतर गतिमान हैं। राजस्थान में अब सर्दी भी अपना प्रभाव दिखाने लगी है।मंगलवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अगले गंतव्य की ओर प्रस्थित हुए। प्रातःकाल सर्दी के प्रभाव के कारण लोगों के शरीर गर्म कपड़ों से ढंके हुए दिखाई दे रहे थे। मार्ग में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं पर अपने दोनों करकमलों से आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। मार्ग के आसपास कहीं निकट अथवा कही दूर दिखाई देती अरावली की पहाड़ियां मार्ग पथिकों को लुभा रही थीं। हालांकि राष्ट्रीय राजमार्ग काफी सुव्यवस्थित बना हुआ था, किन्तु मार्ग में स्थित आरोह-अवरोह इसे पहाड़ी राजमार्ग के रूप में प्रदर्शित कर रहे थे। लगभग 11 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री शीशोद गांव में स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। विद्यालय से जुड़े हुए लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया।विद्यालय परिसर में आयोजित प्रातःकालीन मुख्य मंगल प्रवचन के दौरान युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में ज्ञान का अपना महत्त्व है। ज्ञान के बाद आदमी त्याग पथ पर आ जाए और श्रमण धर्म को स्वीकार कर ले तो बहुत बड़ी उपलब्धि की बात हो सकती है। श्रमण धर्म के नियम व उससे होने वाले लाभ को जानने के लिए तथा जीवन के कल्याण के लिए अन्य बातों को जानने के लिए आदमी को कहां जाना चाहिए।इस संदर्भ में उत्तर प्रदान करते हुए बताया गया कि श्रमण धर्म जीवनोपयोगी जानकारी प्राप्त करने के लिए मानव को बहुश्रुत की पर्युपासना करनी चाहिए। जिस विषय को जो अच्छा जानकार होता है, उससे अच्छी जानकारी प्राप्त हो सकती है। स्वास्थ्य व दवाई के संदर्भ में जानना है तो डॉक्टर ही उसके लिए उचित हो सकता है। डॉक्टरों में भी अलग-अलग संदर्भों के विशेषज्ञ होते हैं। इसी प्रकार साधुओं में भी जो शास्त्रज्ञ हैं, ज्ञानी हैं, अच्छा अध्ययन-अध्यापन किया है तो उसकी पर्युपासना करने से बहुत कुछ प्राप्त भी किया जा सकता है। मृति, धृति व ज्ञान सम्पन्न साधु से कोई प्रश्न पूछने से अच्छा समाधान प्राप्त हो सकता है। धर्म का जीवन जीने वाले, विशेष रूप से ज्ञानी साधुओं की पर्युपासना से बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है और कभी जीवन की दशा और दिशा भी बदल सकती है।आचार्यश्री ने आगे कहा कि आचार्यश्री भिक्षु के जन्म का तीन सौवां वर्ष चल रहा है। हम उनका स्मरण करें कि उनके बताने का और समझाने का कितना अच्छा तरीका था। इस प्रकार उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए हम सभी के बहुश्रुतता का विकास हो तो दूसरों के लिए जीवन को भी अच्छा बनाने में सहायक बन सकते हैं। आचार्यश्री ने विद्यालय के लोगों को भी मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। विद्यालय की प्रिंसिपल श्रीमती ज्योतिबाला ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

