सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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वाव (गुजरात) ,युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का नौ दिवसीय प्रवास वाव वासियों के लिए ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मन मस्तिष्क में अंकित हो गया। प्रवास के ये नौ दिवस श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक उत्साह उमंग में पलक झपकते मानों सुसंपन्न हो गए। आराध्य की कृपा, वात्सल्य की अनहद वर्षा वाव वासियों को सदा के लिए अभिस्नात कर गई। क्षेत्र में वर्षों बाद गुरुदेव का पदार्पण और फिर प्रवास के दौरान विविध कार्यक्रम आदि का जैन ही नहीं अपितु जैनेतर समाज ने भी भरपूर लाभ उठाया। आज मुख्य प्रवचन कार्यक्रम पश्चात गुरुदेव वाव राणा गजेन्द्र सिंह चौहान के आवास पर भी पधारे एवं पावन आशीर्वाद प्रदान किया। नौ दिवसीय मुख्य प्रवचन स्थल वर्धमान समवसरण आप के ही स्थान पर होने का इन्होंने लाभ प्राप्त किया। आगामी यात्रा अब डीसा, पालनपुर की ओर गुरुदेव की निर्धारित है। वाव प्रवास संपन्न कर कल आचार्यश्री का थराद में प्रवास संभावित है।अमृत देशना देते हुए आचार्य प्रवर ने कहा – हमारे जीवन में भक्ति तथा समर्पण का बहुत महत्व है। यह प्रश्न हो सकता है कि भक्ति किसके प्रति हो ? जैन शासन में नवकार महामंत्र का महत्वपूर्ण वर्णन है। प्रथम पद में अरिहंत प्रभु को उसमें नमस्कार है। भरत क्षेत्र में अनेक अर्हत एवं उन्होंने धर्म का प्रवर्तन किया। चार घनघाति कर्मों को क्षय करने वाले अर्हतों के प्रति भक्ति हो। राग-द्वेष व आठों कर्मों को क्षय करने वाले कर्म रहित व अमूर्त सिद्धों को हमारा बार बार नमस्कार है। तीसरे पद में आचार्यों को नमस्कार किया गया है। आचार्य धर्मसंघ के सारथी होते हैं ऐसे परम उपकारी आचार्यों को बार बार नमस्कार। चौथे पद में विमल, कमल की तरह निर्लेप व विशिष्ट ज्ञान से सम्पन्न उपध्यायों को नमस्कार है, उपाध्याय ज्ञान प्रदान करने वाले होते है। पांचवें पद में पंच महाव्रतों का पालन करने वाले लोक के समस्त साधु साधुओं को नमस्कार किया गया। गृहस्थ भी भावों में साधुपन आने से साधुत्व प्राप्त कर सकता है।गुरुदेव ने आगे फरमाया कि एक भक्ति व्यक्ति के प्रति होती है और एक भक्ति सिद्धांत के प्रति होती है। सिद्धांत हो गया हमारा धर्म, हमारा सम्यकत्व। चाहे जैसी परिस्थिति आजाएं किंतु धर्म के प्रति हमारी निष्ठा बनी रहे। दृढ़ धर्मी अर्हणक श्रावक का वर्णन आता है। देवता ने कह दिया कि धर्म छोड़ दो नहीं तो जहाज को डूबा दूंगा किन्तु वह दृढ़ रहा और अपने धर्म को नहीं छोड़ा। देह चली जाएं किंतु धर्म ना जाएं। धर्म कोई वस्त्र नहीं है कि पहना और उतार दिया धर्म तो हमारी आत्मा से जुदा हुआ है। धर्म स्थान में रहे तो भी धर्म और कर्मस्थान पर रहे तो भी धर्म। एक धर्म की कमाई ही है जो आगे भी हमारे साथ जाती है।वाव प्रवास के संदर्भ में कहते हुए गुरुदेव ने कहा कि पूर्व में छापर प्रवास के समय वाव में सात दिवस प्रवास का कहा था। आज नौवां दिन आ गया है। वाव के अन्य समाज के लोगों ने भी प्रवचन आदि का लाभ लिया। सभी में धर्म के प्रति आस्था, श्रद्धा बनी रहे। बाहर जगह जगह से वाव के लोग यहां आएं। हमारे श्रद्धालु श्रावक श्राविकाओं में धर्म के अच्छे संस्कार बने रहे।व्यवस्था समिति संयोजक विनीतभाई संघवी, श्रीकेश भाई मेहता, प्रवीणभाई, चंपक भाई मेहता, वीर परिख, शिल्पा मेहता, विरल संघवी, अर्हता मेहता, मीना बेन ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी।संघ समर्पण गाथा के अंतर्गत सवाचंद भाई, मोती चंद दोषी, परषोत्तम भाई, शाखल चंद भाई दोषी परिवार एवं वाव पथक भजन मंडली, महिला मंडल की बहनों ने पृथक रूप ने गीतों की प्रस्तुति दी।