सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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भचाऊ, कच्छ (गुजरात) ,कर्मवाद एक सिद्धांत है। दुनिया में अनेक दर्शन हैं, अनेक धर्म हैं। जैनिज्म में आत्मवाद एक सिद्धांत है। जहां आत्मा को शाश्वत माना गया है। आत्मा जन्म-मरण भी करती है, जब तक उसे मोक्ष न प्राप्त हो जाए। आत्मवाद से ही जुड़ा हुआ कर्मवाद का सिद्धांत है, लोकवाद भी एक सिद्धांत है। कर्मवाद एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। कर्मवाद को अति संक्षिप्त कहना हो तो जैसी करनी, वैसी भरनी। जो जैसा करता है, वैसा भरता है। इस सूक्त में मानों कर्मवाद समाविष्ट हो गया है। अच्छे कर्म किए हैं तो अच्छा फल मिलेगा और अशुभ कर्म किए हैं तो अशुभ फल प्राप्त होगा। जैन धर्म में कर्मवाद का काफी सुन्दर वर्णन प्राप्त होता है। जैन धर्म में आठ कर्म बताए गए हैं। इन आठ कर्मों में कर्मवाद की बातें हैं। ज्ञानावरणीय कर्म ज्ञान को आवृत करने वाला है। ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से अनेक-अनेक जीव में ज्ञान का उदय ही नहीं होता है। जिस प्रकार बादल के हटने से सूर्य की तेजस्विता सामने आती है, उसी प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से ज्ञान का प्रकाश दृश्यमान होने लगता है। ज्ञान का आवरण किसी का कम दूर होता है, किसी का ज्यादा हो जाता है। यदि किसी का पूर्ण रूप से आवरण हट जाता है तो मानों ज्ञान का महासूर्य उदय हो जाता है। मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधि ज्ञान और मनः पर्यव ज्ञान सम्पूर्ण ज्ञान के चार किनारे के समान हैं। ज्ञानावरणीय कर्म का बहुत अच्छा क्षयोपशम हो जाता है और सम्पूर्ण ज्ञान आलोक हो जाता है तो ये चारों ज्ञान एक केवलज्ञान में मानों समाविष्ट हो जाते हैं। सामान्यतया देखा जाता है कि कई आदमी या बच्चे बहुत बुद्धिमान होते हैं, उनकी मेधाशक्ति, उनकी सीखने की क्षमता बहुत अच्छी होती है और कई आदमी अथवा बच्चे कम बुद्धि वाले होते हैं, उनकी समझ शक्ति कम होती है, बुद्धि से अविकसीत होते हैं। जो बुद्धिमान है, उसके ज्ञानावरणीय कर्म का अच्छा क्षयोपशम है और जो मंदबुद्धि अथवा बुद्धिहीन है, उसका क्षयोपशम बहुत मंद है। इसमें कर्म का विधान सामने आता है। पिछले जन्म में उस मंदबुद्धि ने ज्ञान प्राप्ति में बाधा डाला होगा, किसी ज्ञानी का विरोध किया होगा, ज्ञान की अवहेलना की होगी, जिसके कारण उसके ज्ञान पर आवरण पड़ गया। कोई ऐसा है जो ज्ञान का सम्मान करता है, दूसरों के ज्ञान प्राप्ति में सहयोग किया हो, उस आदमी का ज्ञानावरणीय कर्म का अच्छा क्षयोपशम हो जाता है तो वह आगे बुद्धिमान हो जाता है। इसी प्रकार शारीरिक शक्ति की बात हो, कोई कमजोर होता है, श्रम नहीं कर सकता, चल नहीं सकता, तो उसे असातवेदनीय का उदय होता है और शरीर से पुष्ट, कार्यकारी, कोई भी कार्य करने में सक्षम होता है, उसके सातवेदनीय का उदय हाता है। ये सभी स्थितियां कर्मों के आधार पर होता है। आदमी जैसा कर्म करता है, वैसा उसे फल प्राप्त होता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में बुरे कार्यों से बचते हुए सत्कार्य करने का प्रयास करें। उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को भचाऊ गांव में स्थित शासकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान एवं श्रमिक कौशल प्रमाणीकरण केन्द्र में समुपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान कीं। इसके पूर्व मंगल को प्रातःकाल की मंगल बेला में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सामखियाली से मंगल प्रस्थान किया। प्रातःकाल के समय वातावरण में व्याप्त शीतलता लोगों को गर्म कपड़े पहनने के लिए मजबूर कर रही थी। आज आचार्यश्री राष्ट्रीय राजमार्ग-41 पर गतिमान थे। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री भचाऊ गांव में स्थित शासकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान एवं श्रमिक कौशल प्रमाणीकरण केन्द्र में पधारे। संस्थान से संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। आचार्यश्री का एकदिवसीय प्रवास यहीं हुआ। आचार्यश्री पूर्व में भी इस गांव में पधार चुके हैं।