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SURENDRA MUNOT
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उधना, सूरत (गुजरात),
सद्भावना के संदेश के साथ समाज में नैतिकता एवं नशामुक्ति की अलख जगाते हुए युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी सूरत महानगर में विचरण करा रहे है। इसी क्रम में आज आचार्यश्री का चार दिवसीय प्रवास हेतु उधना में पदार्पण हुआ। मिनी मेवाड़ कहे जाने वाले उधना के श्रद्धालुओं में आराध्य के आगमन से अतिशय हर्षोल्लास छाया हुआ था। प्रातः भेस्तान से गुरुवर ने प्रस्थान किया तो जगह जगह श्रद्धालु जन अपने प्रतिष्ठानों के समक्ष आचार्य श्री ने मंगलपाठ श्रवण करने उपस्थित थे। तेयुप उधना द्वारा संचालित स्थानीय आचार्य तुलसी डायग्नोस्टिक सेंटर को भी आचार्य श्री ने अपने आशीर्वाद से पावन किया। पूर्व में सन् 2023 के प्रवास के दौरान उधना में आचार्यश्री का जन्मोत्सव, पट्टोत्सव सहित विविध कार्यक्रम समायोजित हुए थे। पुनः गुरुवर का सान्निध्य प्राप्त कर श्रावक समाज कृतार्थता की अनुभूति कर रहा था। लगभग 6 किमी विहार कर गुरुदेव का तेरापंथ भवन, उधना में चार दिवसीय प्रवास हेतु पदार्पण हुआ।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा– मनुष्य जन्म का बहुत महत्व है और उसमें भी धर्म के श्रवण का अवसर मिलना, उस पर श्रद्धा होना दुर्लभ होता है और फिर संयम की दिशा में पराक्रम ही हो जाए तो फिर कहना ही क्या ? श्रमण धर्म की जानकारी पाने के लिए बहुश्रुत की उपासना करनी चाहिए। श्रमण धर्म के द्वारा इह-लोक, पर-लोक का कल्याण व पर्युपासना सब सम्मिलित हो जाते है। जिज्ञासा करने से, प्रश्न पूछने से भी ज्ञान का अर्जन होता है। इसलिए प्रश्न करते रहो, पूछते रहो। जिज्ञासा करते करते मोक्ष मार्ग का भी ज्ञान हो सकता है। जिस विद्यार्थी में तर्क शक्ति का अभाव होता है वह, मूक होता है।
गुरुदेव ने आगे कहा कि श्रमण धर्म एक रत्न है, उसकी सुरक्षा करे, उसे खंडित न होने दें व दूषित न होने दें। धर्म का सम्बन्ध भावना व उसके आचरण से ज्यादा होता है। कोई अल्प-श्रुत हो, अल्प ज्ञान वाला हो वो भी अच्छी उपासना कर सकता है। जिसे श्रमण धर्म की अनुपालना का सौभाग्य न मिले वह गृहस्थ धर्म का पालन करे, श्रमणोपासक धर्म का पालन करे। साधु रत्नों की बड़ी माला है तो श्रावक रत्नों की छोटी माला है।साधना के पथ पर प्रयत्न करते करते भावों की ऊंची श्रेणी श्रावक भी प्राप्त कर का वरण कर सकता है।
कार्यक्रम में मुनि अभिजीत कुमार जी, मुनि जागृत कुमार जी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। ज्ञातव्य है कि मुनिद्वय ने गुरु आज्ञा से मध्यान्ह में दिल्ली की ओर विहार किया। वहीं स्वागत के क्रम में श्री निर्मल चपलोत ने अपने विचार रखे। समाज द्वारा सामूहिक गीत का संगान किया गया।