सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times
वेसु, सूरत (गुजरात) ,जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को महावीर समवसरण में उपस्थित भक्तिमान जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि कर्म के बंधन में पाप कर्म का बंध भी होता है और पुण्यकर्म का बंध भी होता है। पापकर्म के बंध का मुख्य जिम्मेवार अथवा कारण मोहनीय कर्म होता है। पुण्य कर्म का बंध मोहनीय कर्म के अभाव से होता है। मोहनीय कर्म के अभाव में ही पुण्यकर्म का बंध होता है।
राग और द्वेष को कर्म का बीज कहा गया है। राग-द्वेष समाप्त हो जाएंगे तो बाद में बहुत ही जल्दी कर्म का बंध नाम मात्र का हो जाएगा। जो वीतराग पुरुष होता है, उसमें राग और द्वेष दिखाई नहीं देता। सामान्य आदमी तो कभी राग के भावों में दिखाई देता है तो कभी द्वेष के भाव से आबद्ध दिखाई देता है। मनोज्ञ रूप, रस, गंध, स्वाद आदि प्राप्त हो गए तो आदमी राग भाव से ग्रसित हुआ दिखाई देता है। अमनोज्ञ शब्द, रूप, रस आदि प्राप्त होने पर द्वेष की ओर जा सकता है। जो वीतराग होता है, वह न तो राग की ओर जाता है और न ही द्वेष की ओर जाता है। हालांकि वह उपशांत वीतराग मोह की स्थिति में होता है। क्षीण मोह वीतराग स्थाई होता है।
गृहस्थों को भी राग-द्वेष से जितना संभव हो सके, बचने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ भी अपने जीवन साधनाशीलता रखने का प्रयास करना चाहिए। किसी के प्रति राग-द्वेष और घृणा से बचने का प्रयास करना चाहिए। दूसरे को सुखी देखकर आदमी को दुःखी नहीं बनना चाहिए और दूसरों को दुःखी देखकर हमें सुखी नहीं बनना चाहिए। आदमी अपने भावों को जितना संभव हो सके, मध्यस्थ रखने का प्रयास करना चाहिए। न ज्यादा राग में जाने का प्रयास करना चाहिए और न ही द्वेष के भाव में जाने का प्रयास हो।
आदमी अपने भीतर ऐसे संस्कारों का विकास करे कि वह राग और द्वेष के भावों को उभरने से रोक सके। जगत है, पदार्थ हैं, व्यक्ति हैं, उनका उपयोग हो सकता है, किन्तु राग-द्वेष के भाव के बिना समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। पदार्थों के प्रति भी अनावश्यक मोह और मूर्छा से बचने का प्रयास करना चाहिए। राग-द्वेष से जितना मुक्त रहा जा सकता है, दुःख से भी बचा जा सकता है। इसलिए जितना हो सके, राग-द्वेष के भावों को प्रतनु बनाने का प्रयास करें।
तेरापंथ किशोर मण्डल तथा तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के एक-एक गीत को प्रस्तुति दी। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति ने व्यवस्था में सहयोग करने वाले परिवारों को सम्मानित किया।