सुरेन्द्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर,Key Line Times
वेसु, सूरत (गुजरात) ,निरंतर अपनी अमृतवाणी की वर्षा से जन मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आत्मा की दो अवस्थाएं होती हैं- एक है सकर्म अवस्था और दूसरी अकर्म अवस्था। सम्पूर्णतया अकर्म अवस्था वाले सिद्ध भगवान होते हैं। वे आठ कर्मों में पूर्णतया मुक्त होते हैं, इसलिए वे पूर्णतया अकर्मा होते हैं। बाकी शेष आत्माओं में कुछ-कुछ अंशों में अकर्मता होती है।
केवलज्ञानी मनुष्य भी एक सीमा तक अकर्मा तो दूसरी दृष्टि से सकर्मा भी होते हैं। आदमी को पुरुषार्थ करना अच्छी बात है कि, पुरुषार्थ एक रास्ता है, साधु को पुरुषार्थ करते हुए अपुरुषार्थ तक पहुंचने का प्रयास करना चाहिए। चौदहवें गुणस्थान वाले जीव भी अकर्मा होते हैं। इसलिए चौदहवें गुणस्थान का नाम अयोगी केवली भी है। तेरहवें गुणस्थान तक पुरुषार्थ होता है। पुरुषार्थ करना बहुत बढ़िया है, जब तक अपुरुषार्थ रूपी मंजिल न प्राप्त हो।
इसके लिए आदमी को बल, वीर्य, पुरुषार्थ के द्वारा कुछ करने का प्रयास करना चाहिए। आलस्य का परित्याग करने का प्रयास करना चाहिए। कर्म भी दो भागों में होते हैं, सकाम कर्म और निष्काम कर्म। अनासक्ति की भावना के साथ अच्छा पुरुषार्थ करना बहुत अच्छा निष्पत्ति देने वाला हो सकता है।
आचार्यश्री ने समुपस्थित मुमुक्षु व बोधार्थी बाइयों तथा मुमुक्षु भाईयों को अच्छा पुरुषार्थ करने की प्रेरणा प्रदान की। साध्वीवर्याजी ने जनता को उद्बोधित किया। लोंगोवाल युनिवर्सिटि-पंजाब के प्रोफेसर श्री प्रदीप जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-सूरत ने पूज्य सन्निधि में सहयोग प्रदाताओं को सम्मानित करने का भी उपक्रम रहा। इस कार्यक्रम का संचालन चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री नानालाल राठौड़ ने किया।