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Home सूरत के होमगार्ड्सों को शांतिदूत ने कराई संकल्पत्रयी…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में रविवार को श्रद्धालु जनता के अलावा सूरत शहर के होमगार्ड्स के जवान भी काफी संख्या में उपस्थित थे। इसके बेंगलुरु से समागत ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी भी उपस्थित थे। महावीर समवसरण में आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वीवर्याजी ने जनता को किया सम्बोधित किया। नित्य की भांति युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित विशाल जनमेदिनी को आध्यात्मिक अनुष्ठान के अंतर्गत मंत्र जप का प्रयोग कराया। तदुपरान्त सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को ‘आयारो’ आगम के दूसरे अध्ययन के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में धनवान व्यक्ति भी मिलते हैं और गरीब व्यक्ति भी मिलते हैं। कहीं विशाल अट्टालिकाएं होती हैं, कहीं झुग्गी-झोपड़ी तो कहीं कोई फुटपाथ पर भी सोने वाले देख सकते हैं। धनवत्ता व दरिद्रता एक दूसरे से विपरीत होती हैं। सधनता और निर्धनता सांसारिक संदर्भ में होती है। शास्त्रकार ने बताया है कि कौन दरिद्र होता होता और कौन धनवान होता है। साधु को तपोधन कहा गया है। साधु के लिए तप, योग, उपशम आदि साधु का धन होता है। निर्धन साधु वह होता है, जो आज्ञा में नहीं चलता है। तीर्थंकर की आज्ञा में नहीं चलने वाला साधु दरिद्र होता है। साधु के लिए आज्ञा है कि शब्द, कष्ट आदि सहन करो, निर्जरा करो, आहार का संयम हो। इस आज्ञा में चलने वाला साधु सधन साधु है और आज्ञा से दूर होने वाला साधु निर्धन और दरिद्र साधु हो जाता है। आदमी को अपने जीवन में स्वयं पर अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी स्वयं को अनुशासित बनाएं। मन, वाणी और इन्द्रियों पर संयम है तो कल्याण की बात हो सकती है। संयम और तप से स्वयं को भावित बनाने वाला स्वयं का कल्याण कर सकता है। साधु की अकिंचनता ही उसका धन है। तपस्या साधु का धन होता है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के छठवा दिन अनुशासन दिवस के रूप में समायोजित था। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अनुशासन सभी के जीवन के लिए आवश्यक होती है। आदमी को स्वयं पर अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए, फिर दूसरों पर भी अनुशासन की बात हो सकती है। विद्यार्थियों के साथ कोई छोटा हो या बड़ा, सभी में अनुशासन होना चाहिए। निज पर शासन, फिर अनुशासन के सूत्र को आत्मसात करने का प्रयास होना चाहिए। अनुशासन को अपने जीवन में समुचित महत्त्व देने का प्रयास करना चाहिए। उपस्थित जनता को साध्वीप्रमुखाजी ने उद्बोधित किया। आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में सूरत के होमगार्ड्स काफी संख्या में पहुंचे हुए थे। होमगार्ड्स के आफिसर श्री सी.बी. बोहरा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। श्री संजय बोथरा ने कार्यक्रम की जानकारी दी। आचार्यश्री ने उपस्थित होमगार्ड्स के जवानों को सद्भावना, नैतिकता की प्रेरणा देते हुए इनके संकल्प स्वीकार कराए। सौराष्ट्र से आए लोगों ने आचार्यश्री के दर्शन किए तो आचार्यश्री ने राजकोट में वर्धमान महोत्सव करने की घोषणा की। बेंगलुरु से समागत श्री माणकचंद संचेती ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। बेंगलुरु ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी तथा ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
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Previous: शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे भारत सरकार के कानून एवं न्याय राज्यमंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , डायमण्ड सिटि व सिल्क सिटि सूरत को आध्यात्मिक नगरी के रूप में स्थापित कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु की भारी भीड़ उमड़ रही है तो दूसरी ओर आए दिन कोई न कोई विशिष्ट व्यक्तित्व भी आचार्यश्री के दर्शनार्थ उपस्थित होते हैं। गुजरात के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, शिक्षामंत्री, भारत के जलशक्ति मंत्री आदि-आदि अनेक विशिष्ट लोगों के साथ अनेक संप्रदायों के सर्वोच्च गुुरु भी उपस्थित हो रहे हैं। इनकी उपस्थिति इस चतुर्मास प्रवास को और अधिक वैशिष्ट्य प्रदान कर रही है। नवरात्र के आध्यात्मिक अनुष्ठान व अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के दौरान शनिवार को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में भारत सरकार के कानून एवं न्याय तथा संसदीय कार्य राज्यमंत्री तथा जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री अर्जुनराम मेघवाल भी उपस्थित हुए। उन्होंने आचार्यश्री के दर्शन किया। साथ आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज एनसीसी के सैंकड़ों कैडेट भी अपने मेजर के साथ उपस्थित हुए और आचार्यश्री से नशामुक्ति का संकल्प स्वीकार किया। नित्य की भांति शनिवार को महावीर समवसरण में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल पदार्पण हुआ। आचार्यश्री ने चतुर्विध धर्मसंघ को आध्यात्मिक अनुष्ठान के अंतर्गत मंत्रों का जप कराया। लगभग आधे घंटे के इस क्रम में मानों पूरा महावीर समवसरण एक तपोस्थली की भांति प्रतीत हो रही थी। उपस्थित जनता को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में भोजन का भी महत्त्व होता है। शरीर को टिकाए रखने के लिए हवा, पानी और भोजन भी चाहिए। यह जीवन की प्रथम कोटि की आवश्यकताएं हैं। इन तीनों में पहला स्थान हवा का है, दूसरा स्थान जल का और तीसरा स्थान भोजन का है। भोजन किए बिना तो कितने तपस्वी महीने-दो महीने से भी अधिक समय तक रह जाते हैं तो उनका जीवन चलता रहता है। आहार के बिना तो कई महीनों तक मानव जिंदा रह सकता है। जल मानों मानव जीवन के लिए ज्यादा जरूरी है। पानी के बिना ज्यादा लम्बे समय तक जीवित रहना कठिन है। पानी से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हवा होती है। हवा न हो तो आदमी श्वास नहीं ले तो कुछ ही मिनट में मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। प्रथम कोटि की आवश्यकताओं में हवा उत्कृष्ट, पानी मध्यम और भोजन जघन्य रूप की आवश्यकता होती है। दूसरे कोटि की आवश्यकताओं में देखें तो तन ढकने के कपड़ा और रहने के लिए मकान की आवश्यकता होती है। कितने दिगम्बर मुनि और अन्य परंपराओं के कितने मुनि बिना वस्त्रों के जीवन जीते हैं। मकान नहीं होता है तो भी फुटपाथ और वृक्षों के नीचे रहकर भी जीवन चलाया जा सकता है। तीसरे कोटि की आवश्यकता में शिक्षा और चिकित्सा होती है। इस प्रकार जीवन की इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव कई बार चिंतित हो सकता है और दुःखी भी हो सकते हैं। आयारो में बताया गया कि जो वीर होते हैं, वो रूखा-सुखा खाकर भी जीवित रह जाते हैं। आदमी को भोजन चाहिए, सात्विक भोजन की आवश्कता है, किन्तु कई बार आदमी ऐसी चीजों को खा लेता है, जो जीवन को नुक्सान पहुंचाने वाली होती हैं। जैसे मानव जीवन के लिए जल कितना आवश्यक है, लेकिन आदमी शराब पीने लग जाता है। शराब, गुटखा, सिगरेट, बीड़ी आदि जो शरीर के लिए अहितकर होती है, उसका आसेवन करने लगता है। शाकाहार से काम चलता है तो फिर भोजन मासांहार क्यों शामिल किया जाए। जैन परंपरा में नॉनवेज को निषेध किया गया है। जीवन में नशामुक्ति की बात भी है। अणुव्रत आन्दोलन का एक सूत्र है नशामुक्ति। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का शुभारम्भ किया था। आज अर्जुनरामजी मेघवाल जी आए हैं। भारत सरकार के मंत्री हैं, अणुव्रत से भी जुड़े हुए हैं और हमारे जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं। ये इतने बार आ चुके हैं, मानों हमारे बहुत अच्छे परिचित हैं। मानों परिवार के सदस्य की भांति हैं। गुरुदेव तुलसी के समय ये विद्यार्थी के रूप में थे, तब से इनका लगाव रहा है। प्राकृत भाषा को क्लासिकल भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। हमारे शास्त्रों की भाषा प्राकृत, अर्धमागधि में है। संस्कृत, प्राकृत आदि में निर्मित ग्रंथों में इतने गूढ़ रहस्य हैं कि विज्ञान के लिए भी काम आ जाते हैं। ग्रंथों और पंथों का लाभ जनता को मिले। राजनीति भी सेवा बहुत बड़ा माध्यम है। अणुव्रत की अनेक संस्थाएं हैं, इनमें अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी अणुव्रत के कार्यों के लिए जिम्मेवार संस्था है। अभी अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह भी चल रहा है। आज पांचवा दिन है। अणुव्रत का जितना प्रचार-प्रसार हो सके, इसका प्रयास हो। आचार्यश्री ने समुपस्थित एन.सी.सी. के कैडेटों को प्रेरणा देते हुए ड्रग्स और ड्रिंकिंग न करने प्रतिज्ञा करने का आह्वान किया तो एन.सी.सी. के कैडेटों ने सहर्ष संकल्प स्वीकार किया। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का पांचवा दिन नशामुक्ति दिवस के रूप में समायोजित हुआ। श्री राजेश सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। एन.सी.सी. की मेजर अरुधंति शाह ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि आज के अवसर पर मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी को प्रणाम करती हूं। नशामुक्ति आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है। जैन धर्म को वैज्ञानिक धर्म माना गया है। यहां पर मानव जीवन के विभिन्न समस्याओं का समाधान हो सकता है। आज दुनिया डेटा में फंस गयी है तो उसे सप्ताह में एक दिन डेटा का भी उपवास करे, ऐसा प्रयास होना चाहिए। एलिवेट के कार्य से जुड़े मुनि अभिजितकुमारजी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री विमल लोढ़ा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। उपस्थित जनता को आज के अवसर पर साध्वीप्रमुखाजी ने भी उद्बोधित किया। भारत सरकार के कानून एवं न्याय तथा संसदीय कार्य राज्यमंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे और आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी को प्रणाम करता हूं। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत नशामुक्ति दिवस है, उस संदर्भ में कहना चाहूंगा कि नशामुक्ति के लिए अणुव्रत एक्सप्रेस में कार्य किया जा सकता है। एन.सी.सी. जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व होता है। आचार्यश्री तुलसी ने अपने से अपना अनुशासन करने की प्रेरणा दी। नॉनवेज छोड़कर सात्विक हो जाएं तो विचारों में कितनी उन्नति हो जाएगी। आचार्यश्री जो आशीर्वाद बरसाया, मेरे लिए बहुत ही प्रेरणास्पद रही है। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-सूरत की ओर से चतुर्मास के लिए स्थान प्रदान करने वाले वालों को सम्मानित करने का उपक्रम रहा, जिसमें भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिवार, श्री विट्ठलभाई परेवियार परिवार, श्री राजेश-तनसुख आहिर परिवार, श्री किरणभाई पटेल परिवार, श्री मोहनभाई छिवंका भाई पटेल परिवार, श्री जयप्रकाश खानचंदजी आसवानी परिवार, श्री शंकरलाल मारवाड़ी परिवार, श्री जीवन केवलभाई पटेल परिवार, श्री रविन्द्रभाई पटेल परिवार, श्री मनीष, महेन्द्र, मुकुल देसाई परिवार, श्री मोहनभाई मोंजानी परिवार, श्री संजयभाई पटेल परिवार, श्री विनीत रणजीतसिंह सुराणा, श्री हिरणभाई देसाई परिवार, श्री अमितभाई देसाई परिवार, श्री दिवेश, मनहर परमार परिवार, चीफ फायर आफिसर श्री बसंतभाई पारिख, जोन आफिसर अठवा जोन श्रीमती मिताबेन गांधी परिवार, भाजपा-सूरत के महामंत्री श्री किशोर बिंदल को सम्मानित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। इस कार्यक्रम का संचालन चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री श्री नानालाल राठौड़ ने किया।Next: अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का अंतिम दिन जीवन विज्ञान दिवस के रूप में समायोजित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , गुजरात राज्य के औद्योगिक शहर सूरत में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का चतुर्मास अब भले ही पूर्णता की ओर अग्रसर हो रहा है, किन्तु सूरतवासियों की भक्तिभावना और मानों प्रबलता को प्राप्त हो रही है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु सूर्योदय से पूर्व ही अपने आराध्य की निकट सन्निधि में उपस्थित होकर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करते हैं, जो क्रम देर रात तक चलता रहता है। साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों से संघबद्ध रूप में अभी भी दर्शनार्थियों के आने का तांता लगा हुआ है। वर्तमान में पूरे विश्व में शक्ति की आराधना का महापर्व नवरात्र प्रारम्भ तो आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम गतिमान है। इस क्रम में सोमवार को भी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी महावीर समवरण में उपस्थित भक्तिमान श्रद्धालु जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराने से पूर्व आध्यात्मिक अनुष्ठान से जोड़ा, जो क्रम लगभग आधे घंटे तक चला। तदुपरान्त अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि तुच्छ कौन होता है? जो नीच, हल्का अथवा जिसमें कमी होती है, वह तुच्छ होता है। जिस गृहस्थ के पास धन का अभाव होता है, वह तुच्छ हो सकता है तो दूसरी ओर जिस साधु में साधना की कमी होती है, वह तुच्छ हो सकता है। जो तुच्छ होता है, वह बोलने में भी ग्लानि का अनुभव करता है। तीर्थंकरों की आज्ञा का पालन नहीं करने वाला साधु तुच्छता की श्रेणी में आ जाता है। आचार का पालन करने वाले साधु की वाणी में भी मानों साधना मुखर होती है। ज्ञानी और साधक होना बहुत अच्छी बात होती है। इसके लिए यहां प्रेरणा दी गयी कि जीवन में सम्यक् ज्ञान के साथ सम्यक् आचार भी हो तो विशेष बात हो सकती है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप रूपी चतुरंगी मार्ग है, जिसे तीर्थंकरों ने प्राप्त किया है। ज्ञान से जानता है, दर्शन से श्रद्धा करता है, चारित्र से कर्मों का निग्रह करता है और तप से विशोधि करता है। सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र मोक्ष का मार्ग है। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतिम दिन उपस्थित जनता को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारे गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का शुभारम्भ किया था। उसका पचहत्तरवां वर्ष भी मना लिया गया है। आज अंतिम दिन जीवन विज्ञान दिवस के समायोजित है। यह शिक्षा जगत के लिए है। शिक्षा में ज्ञान बढे तो यह तो अच्छी बात होती ही है, इसके शिक्षा संस्कारों से युक्त हो तो बहुत ही सुन्दर बात हो सकती है। जीवन कैसे जीना, श्वास कैसे लेना, चलना, बोलना, बैठना, व्यवहार करना आदि सभी में कलात्मक रूप में हो। विद्यार्थियों में भाव और विचार अच्छे हों, इसका प्रयास हो। जीवन सादगी और संयम से युक्त हो। सद्विचार और सदाचार जीवन में आ गया तो जीवन का विज्ञान जीवन में आ सकता है। आचार्यश्री ने समुपस्थित विद्यार्थियों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा देते हुए इनके संकल्प भी स्वीकार कराई। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को महाप्राण ध्वनि का प्रयोग कराया। आचार्यश्री ने समुपस्थित मुनि भव्यकीर्तिसागरजी को साधना का अच्छा क्रम चलाने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चल रहे प्रेक्षाध्यान शिविर के समापन कार्यक्रम भी समायोजित हुआ। इसमें श्री सुनील गुलगुलिया, श्रीमती श्वेता पीपाड़ा व श्रीमती रेणु नाहटा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। जीवन विज्ञान दिवस के संदर्भ में उपस्थित विद्यार्थियों जीवन विज्ञान गीत का संगान किया। श्री संजय बोथरा ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के सातदिवसीय कार्यक्रम की संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत किया। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री विमल लोढ़ा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। भगवान महावीर इण्टरनेशनल स्कूल के विद्यार्थियों ने अपनी विभिन्न प्रस्तुतियां दीं। भगवान महावीर युनिवर्सिटि के प्रेसिडेंट श्री संजय जैन तथा अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।