गुजरात के सुरत मे मंगलवार को आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि सबसे निष्पक्ष होता है कर्म ….. सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात), नौ दिनों के आध्यात्मिक अनुष्ठान के उपरान्त महावीर समवसरण से जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पुनः आयारो आगम के माध्यम से अपनी अमृतवाणी की वृष्टि प्रारम्भ की। इस अमृतवाणी का रसपान कर श्रद्धालु अपने जीवन को धर्म से भावित बना रहे हैं। मंगलवार को प्रातःकालीन मुख्य प्रवचन में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुःख और सुख प्रत्येक का अपना-अपना होता है। कर्मवाद का सिद्धांत सुख-दुःख की प्राप्ति के संदर्भ में लाने के लायक है। हम सभी दुनिया में देखते हैं कि प्राणी दुःख भी भोगता है तो सुख भी भोगता है। दुःख और सुख दोनों के जिम्मेदार हम स्वयं अर्थात् हमारी स्वयं की आत्मा होती है। जैन धर्म में आठ कर्म बताए गए हैं। उन कर्मों के आलोक में जीवन की व्याख्या भी की जा सकती है। कोई बालक मंदबुद्धि होता है तो कोई तीव्र बुद्धि वाला होता है। कोई रटने के बाद भी याद नहीं कर पाता तो कोई मात्र पढ लेने से ही याद कर लेता है। इससे यह मानना चाहिए कि जो प्रखर बुद्धि वाला है, उसके ज्ञानावरणीय कर्म का अच्छा क्षयोपशम है। कोई बीमार रहता है तो कोई शरीर से बलिष्ट होता है। इससे यह पता किया जा सकता है उसके सातवेदनीय कर्म का उदय चल रहा है। माया, छलना और झूठ बोलने वाले के ऊपर मोहनीय कर्म का बहुत ज्यादा प्रभाव होता है। कुछ लोग बहुत शांत होते हैं, संतोष और सरलता का जीवन है तो मानना चाहिए कि उनके मोहनीय कर्म का अच्छा क्षयोपशम होता है। कोई अल्प आयुष्य वाले अथवा दीर्घ आयुष्य वाले भी होते हैं। इसी प्रकार जाति कुल, उच्च गोत्र, वीर्यवत्ता आदि-आदि के संदर्भ में भी अलग-अलग कर्मों का उदय अथवा क्षयोपशम होता है। इसके माध्यम से किसी के भी जीवन का समस्त विश्लेषण किया जा सकता है। इस प्रकार आदमी को यह जानने का प्रयास करना चाहिए आदमी को स्वयं द्वारा किए गए कर्मों को स्वयं ही भोगना होता है। अर्थ का अर्जन करने और काम के अर्जन में जो कर्मफल बंधता है, वह हर प्राणी का अपना होता है। कोई किसी के दूसरे कर्म को नहीं भोगता और कोई किसी के सुख-दुःख को बांट नहीं सकता। कर्म बड़ा बलवान होता है, यह किसी को नहीं छोड़ता। कर्म सबसे निष्पक्ष होता है। उसके यहां कोई बड़ा-छोटा, धनवान-गरीब, ज्ञानी-अज्ञानी होना मायने नहीं रखता है। पूर्वार्जित कर्मों का फल भी जीवन में भोगना पड़ता है। इतना जानना के बाद आदमी को यह ध्यान रखना चाहिए कि आदमी को अनासक्ति की चेतना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। धन, दौलत, पदार्थों के सेवन में बहुत ज्यादा आसक्ति नहीं रखना चाहिए। आदमी को आसक्ति से बचने का प्रयास करना चाहिए। कर्मवाद को जानने के बाद आदमी को बुरे कर्मों के बंधन से बचने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक संभव हो सके, अनुकूलता में समता और प्रतिकूलता में भी समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत ने चौबीसी के एक गीत का संगान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने भी चौबीसी के एक गीत को प्रस्तुति दी। सूरत के सामायिक साधना परिवार के सदस्यों ने अपनी डायरेक्ट्री को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित किया। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। उनकी ओर से श्री कमलकुमार रामपुरिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्रीमती सरोज बांठिया ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।