पर्वाधिराज पर्युषण का चतुर्थ दिवस वाणी संयम दिवस के रूप में हुआ समायोजित…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , बुधवार को प्रातःकाल से संयम विहार में चतुर्मासरत जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पर्वाधिराज पर्युषण के सभी उपक्रमों का अनवरत समायोजन प्रारम्भ हुआ। अर्हत् वंदना, प्रेक्षाध्यान, तात्त्विक विश्लेषण, आगम वाचन आदि कार्यक्रमों के द्वारा आध्यात्मिक गंगा की विभिन्न धाराएं प्रवाहित होने लगीं। निर्धारित समय पर महावीर समवसरण में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पधारे तो पूरा परिसर जयघोष से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के महामंत्रोच्चार के साथ आज के मुख्य कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। तीर्थ और तीर्थंकर के विषय के संदर्भ में मुनि मार्दवकुमारजी ने भगवान शांतिनाथ के विषय में अपनी प्रस्तुति दी। मुनि गौरवकुमारजी ने भगवान ऋषभ के संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी। लाघव और सत्य धर्म पर आधारित गीत का साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने संगान किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने लाघव व सत्य धर्म की व्याख्या की। कल के सामायिक दिवस के संदर्भ में साध्वी वैराग्यप्रभाजी व साध्वी समत्वप्रभाजी ने गीत का संगान किया। वाणी संयम दिवस पर साध्वी प्रफुल्लप्रभाजी व साध्वी श्रुतविभाजी ने गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता को वाणी संयम दिवस के संदर्भ में उद्बोधन प्रदान किया। तदुपरान्त भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि परम आराध्य भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का प्रसंग है। भगवान महावीर अपने अनंत पूर्व जन्मों में एकबार मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुए, जहां उनका नाम नयसार पड़ा। लकड़ी के प्रयोजन से महाअटवी में जाना हुआ। मार्ग भूल जाने के कारण उस महाअटवी में साधु पधारे और उन साधुओं को नयसार ने अन्न का दान किया तो साधुओं ने उन्हें उपदेश दिया। नयसार के भव में उनकी आत्मा को समयकत्व की प्राप्ति हुई थी। इसलिए ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ का शुभारम्भ इसी भव से किया जाता है। सम्यकत्व से बड़ा रत्न नहीं होता है। चारित्र को सम्यकत्व पर निर्धारित रहना होता है, किन्तु सम्यकत्व को चारित्र की अपेक्षा नहीं होती है। इस कारण सम्यकत्व चारित्र से बड़ा होता है। सम्यकत्व स्वतंत्र भी हो सकता है। नयसार में सम्यकत्व का पालन भी किया। अपने जीवन में धर्म का अभ्यास भी किया। अनाग्रह भाव रखकर तत्व को समझने का प्रयास किया जाए तो नए ज्ञान की प्राप्ति भी हो सकती है। आदमी को अनाग्रह भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। प्रथम देवलोक में नयसार की आत्मा उत्पन्न हुई। वहां के बाद पुनः आत्मा च्युत हुई और पुनः मनुष्य जन्म में पहुंची तो नयसार की आत्मा भगवान ऋषभ के पौत्र और चक्रवर्ती भरत के पुत्र मरिचि के रूप में उत्पन्न हुए। एकबार भगवान ऋषभ की प्रेरणा मरिचि को प्राप्त हुई और उसने साधुत्व का जीवन स्वीकार कर लिया। साधु बनने के बाद परिषहों को सहने में कठिनाई होने लगी और मरिचि ने उस साधुपन को छोड़कर अलग से ढंग से साधना प्रारम्भ की। आचार्यश्री ने वाणी संयम दिवस के संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपनी वाणी का संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। बोलना आवश्यक है, किन्तु वाणी का विवेक होना अतिआवश्यक होता है। विवेकपूर्ण वाणी वाणी संयम का ही एक माध्यम हो सकता है। एक दिवस पूर्व ही आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चतुर्मासरत और तपस्यारत साध्वी धैर्यप्रभाजी का देवलोक गमन हो गया था। इस कारण आज के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान उनकी स्मृतिसभा का भी समायोजन हुआ। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने साध्वी धैर्यप्रभाजी संक्षिप्त जीवन परिचय प्रदान करते हुए उनकी आत्मा के आध्यात्मिक गति करने की कामना की। आचार्यश्री ने उनकी आत्मा की शांति के लिए चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान किया। तदुपरान्त मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीप्रमुखाजी, साध्वीवर्याजी, साध्वी धैर्यप्रभाजी की संसारपक्षीया पुत्री साध्वी सिद्धार्थप्रभाजी, साध्वी सुमतिप्रभाजी, साध्वी जिनप्रभाजी, साध्वी हिमश्रीजी, साध्वी विशालप्रभाजी, साध्वी प्रांजलयशाजी, साध्वी हेमरेखाजी ने अपनी श्रद्धांजलि समर्पित की। श्री ताराचन्द बोहारा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वी तेजस्वीप्रभाजी द्वारा रचित गीत को साध्वीवृंद ने प्रस्तुति दी। साध्वी सिद्धार्थप्रभाजी ने मुनि कौशलकुमारजी के भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। साध्वीवृंद ने उनकी स्मृति में एक गीत का संगान किया। श्रीमती मधु बोहरा व श्री रमेशचन्द बोहरा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। सुश्री सेजल चोरड़िया आदि ने गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में कहा कि पर्युषण पर्व के दौरान साध्वी धैर्यप्रभाजी का प्रयाण हुआ। हमारे धर्मसंघ की एक साध्वी सदस्या अपनी संयम यात्रा को सम्पन्न करते हुए विदा हुई। उनकी आत्मा उत्थान करे और शीघ्र मोक्षश्री का वरण करे।