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Home गुजरात के सुरत मे आचार्य महाश्रमणजी के सानिध्य में सुप्रसिद्ध लेखिका डा.कुसुम लुनिया द्वारा लिखित “सर्वोत्तम जीवनशैली” का हुआ लोकार्पण… आर.के.जैन, मुख्य संपादक, Key Line Times “सर्वोत्तम जीवनशैली” सत्प्रेरणा और सन्मार्ग दर्शक ग्रन्थ सिद्ध हो* *आचार्य महाश्रमण* सुरत , गुजरात भारत के स्वर्णिम वर्तमान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सानिध्य में सुप्रसिद्ध लेखिका डॉ. कुसुम लुनिया द्वारा लिखित जैन विश्व भारती -आदर्श साहित्य संघ विभाग द्वारा प्रकाशित जैन जीवनशैली पर आधारित शौध ग्रन्थ “सर्वोत्तम जीवनशैली “का लोकार्पण सुरत ,गुजरात में हुआ। इस अवसर पर आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना में फरमाया कि “सर्वोत्तम जीवनशैली “ग्रन्थ पुस्तक आज सामने आया है। मनुष्य की जीवनशैली अच्छी रहे ,उसमें त्याग संयम तप स्वाध्याय ये तत्व भी सन्निहित हों। आदमी का रहन-रहन ,खान -पान ,चिन्तन-मनन , सोना – जागना- उठना* सब क्रियाओं में संयम एवं विवेक हो। आध्यात्मिकता -धार्मिकता जीवनशैली के साथ जुडी हुई हो तो जीवनशैली भी सर्वोत्तम बन सकती है*।यह बहुत ही अच्छी बात है।सर्वोत्तम बहुत ऊंचा शब्द है परन्तु यह असम्भव भी नहीं लगता। आपने आशीर्वचन के साथ उदबोधन फरमाया कि *सर्वोत्तम जीवनशैली” पुस्तक पाठक को सत्प्रेरणा और सन्मार्ग दर्शन देने वाला ग्रन्थ सिद्ध हो।*यह ग्रन्थ सफलता को प्राप्त हो*। लेखिका की प्रतिभा का उपयोग लेखन , भाषण, चिन्तन एवं सलाह देने में भी हो सकता है, कर्मजा शक्ति का, पुरूषार्थ शक्ति का उपयोग होता रहे। खूब अच्छा काम चलता रहे।अणुव्रत का भी काम चलता रहे। मुनि श्री दिनेश कुमार जी के कुशल संचालन में, मुनिश्री कीर्ति कुमार जी के आध्यात्मिक पर्यवेक्षण में श्री जैयन्ति लाल सुराना, डॉ धनपत लुनिया, श्री संजय सुराना, श्री संजय भंसाली अवधेश भाई को लोकार्पण हेतु आंमत्रित किया गया।वतन -विशाल लुनिया एवं अंजु सुराणा की विशेष उपस्थिति रही। इस अवसर पर विदुषी लेखिका ने कृतज्ञ भावों से ह्रदय के उदगार व्यक्त किये।जैन तेरापंथ धर्म के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी से भरपूर आशीर्वाद पाकर जैन विश्व भारती एवं लुनिया तथा बोथरा परिवार कृत्य कृत्य हो गया।
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Previous: आचार्य महाश्रमणजी ने अपने प्रवचन मे कहा कि बच्चों के लिए वरदान साबित हो ज्ञानशाला….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 25.08.2024, रविवार, वेसु, सूरत (गुजरात) , युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में डायमण्ड सिटि सूरत में भगवान महावीर युनिवर्सिटि में बने संयम विहार रविवार को ज्ञानशाला दिवस के अवसर पर तेरापंथ ज्ञानशाला के नन्हें ज्ञानार्थियों की विशाल उपस्थिति गुंजायमान हो उठा। विभिन्न वेशों में सजे में नन्हें ज्ञानार्थियों की बटालियन अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावात्मक प्रस्तुति देने को आतुर दिखाई दे रहे थे। भगवान महावीर समवसरण में नित्य की भांति जब युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पावन प्रवचन हेतु उपस्थित हुए तो उपस्थित विशाल जनमेदिनी ने बुलंद जयघोष किया। तदुपरान्त आरम्भ ज्ञानशाला दिवस पर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों की भावपूर्ण प्र्रस्तुति का क्रम। यह इस प्रकार समायोजित था मानों आज महावीर समवसरण भारत का राजपथ बन गया हो। जिस प्रकार 26 जनवरी को भारत की शौर्यगाथा जिस प्रकार भारतीय सेना तथा भारत के लोग प्रस्तुत करते हैं, उसी प्रकार तेरापंथ अनुशास्ता के समक्ष तेरापंथ के वैभवपूर्ण विशालता को ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी प्रस्तुत कर रहे थे। अनेकानेक बटालियन के रूप में अपने आराध्य के समक्ष उपस्थित होते ज्ञानार्थी तेरापंथ धर्मसंघ के विभिन्न संगठनों व संस्थाओं के एक-एक आयाम को बखूबी प्रस्तुत कर रहे थे। ज्ञानार्थियों का उपक्रम जन-जन को मंत्रमुग्ध बनाने वाला था। लगभग एक घंटे चला यह उपक्रम जन-जन को मानों सम्मोहित-सा कर लिया था। एक घंटे की अनवरत मोहक प्रस्तुति के उपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने उपस्थित जनता को अभिप्रेरित करते हुए ज्ञानशाला और ज्ञानार्थियों के प्रति मंगलकामना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि उदितकुमारजी ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इस अवसर पर उपस्थित विशाल जनमेदिनी और ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों को आयारो आगम के आधार पर पावन देशना प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में अहिंसा भी जीवित है तो हिंसा भी विद्यमान है। अहिंसा कभी भी पूर्णतया समाप्त नहीं होती और हिंसा भी पूर्णतया समाप्त हो जाए, यह भी संभव नहीं है। कहीं हिंसा ज्यादा दिखाई दे सकता है तो कहीं अहिंसा व शांति का साम्राज्य भी दिखाई दे सकता है। हिंसा है तो अहिंसा का दीप जलाने का प्रयास हो। अंधकार है तो दीपक से प्रकाश फैलाने का प्रयास किया जा सकता है। आदमी को झटपट निराश नहीं होना चाहिए। कोई व्यक्ति अपने विचार से हिंसा में प्रवृत्त हो सकता है तो कोई भय के कारण हिंसा में संलग्न हो सकता है। अपनी रक्षा के संदर्भ में भी आदमी हिंसा में जा सकता है। बच्चों में अच्छे संस्कार कैसे उजागर हों और गलत संस्कार क्षीण हों, इसका प्रयास करना चाहिए। विद्यालयों के माध्यम से बच्चों में अच्छे संस्कार दिए जा सकते हैं। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी और आचार्यश्री तुलसी द्वारा जीवनविज्ञान की बात बताई गई। विद्या संस्थान विद्यार्थियों व बच्चों में अच्छे संस्कार पुष्पित और पल्लवित करने के लिए सशक्त माध्यम हैं। माता-पिता व परिवार के लोग भी बच्चों को सुन्दर संस्कारों के निर्माण में अच्छे सहायक बनते हैं। दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता व अन्य परिजन बच्चों पर संस्कारों की बरसात करते रहें। जिस प्रकार बरसात से खेत की फसल अच्छी होती है, उसी प्रकार चारों ओर से बच्चों पर संस्कारों की बरसात हो तो बच्चे संस्कारी बन सकते हैं। मीडिया, सोशल मीडिया, अखबार आदि के द्वारा भी अच्छे संस्कार आ सकते हैं तो साधु-साध्वियां व समणियां भी अच्छे संस्कार देने में सहायक बन सकती हैं। ज्ञानशाला एक धर्म-संप्रदाय से जुड़ा हुआ उपक्रम है। गुरुदेव तुलसी के समय से ज्ञानशाला का बीज वपन हुआ था। महासभा के तत्त्वावधान में चलने वाला एक उपक्रम है। इसमें सभा और अन्य संस्थाएं भी सहयोगी के रूप में अपना योगदान देने वाली हो सकती हैं। ज्ञानशाला का उपक्रम बच्चों के लिए बहुत अच्छा विकास किया है। छोटे-छोटे बच्चे भी धार्मिक गतिविधि से जुड़ते हैं, ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों के द्वारा अनेक प्रस्तुतियां होती हैं, अपने प्रदर्शनी आदि के द्वारा अपने अनेक ज्ञानों को प्रदर्शित करते हैं। बच्चे उसकी व्याख्या भी करते हैं। भाद्रव महीने का पहला रविवार ज्ञानशाला दिवस के रूप में 6आज का यह कार्यक्रम हो रहा है। धार्मिक ज्ञान इन्हें मिलता रहे तो बच्चे बुराइयों से बच सकते हैं। ज्ञानशाला एक सुंदर कार्यक्रम है, जिसके माध्यम से कितने-कितने बच्चों को धर्म से जुड़ने का अवसर मिल रहा है। पहले बच्चों को स्कूल व बाद में ज्ञानशाला के उपक्रम का अध्ययन करना भी बहुत अच्छी बात है। ज्ञानशाला में सेवा देने वाली प्रशिक्षिकाएं भी अपना कितना अच्छा योगदान देती हैं। बच्चे समाज व देश का भविष्य होते हैं। बच्चों में अच्छे संस्कार मजबूती से आ जाएं और उनका अच्छा विकास हो जाए तो वे आगे जाकर समाज की अच्छी सेवा कर सकते हैं और देश की अच्छी सेवा भी कर सकते हैं और उनमें अच्छी धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा भी कर सकते हैं। ये संकल्प बच्चों का अच्छा निर्माण करने में योगदायी बन सकते हैं। गुरुदेव तुलसी के समय इसका क्रम प्रारम्भ हुआ, बाद में इसने अपना बहुत अच्छा विकास किया। एक-एक ज्ञानशाला में कितने-कितने प्रशिक्षण देने वाले और कितने-कितने व्यवस्थातंत्र में अपनी सेवा देने वाले होते हैं। अभिभावकों का भी योगदान होता है और कई चीजें मिलती हैं, तब यह ज्ञानशाला का सुन्दर रूप सामने आता है। माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने का प्रयास करते रहें। ज्ञानशाला के बच्चे संस्थाओं के अध्यक्ष बनें या अथवा न बनें, कोई पद अथवा न पाएं, किन्तु तेरापंथ समाज के अच्छे श्रावक-श्राविका अथवा साधु, साध्वी समण-समणियां अवश्य बनें। हमारे अनेक ज्ञानशाला से जुड़े लोग धर्मसंघ में चारित्रात्माओं के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सूरत जैसे शहर की ज्ञानशाला और ज्ञानशाला के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक भी सूरत में हैं तो फिर कहना ही क्या। ज्ञानशाला के बच्चों का अच्छा रूप सामने आया है। प्रशिक्षण देने वाले अपनी सेवा देते रहें, व्यवस्थातंत्र के लिए तेरापंथी सभाएं ध्यान देती हैं, नियोजन करती रहें, ज्ञानार्थियों की संख्या भी बढ़ती रहे। ज्ञानशाला खूब अच्छा विकास करती रहे और बच्चों के लिए वरदान साबित हो, मंगलकामना। ज्ञानशाला के गुजरात के आंचलिक संयोजक श्री प्रवीण मेड़तवाल, महासभा के ज्ञानशाला प्रकोष्ठ के संयोजक श्री सोहनराज चौपड़ा तथा चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में शासनपक्ष नेता श्रीमती शशिबेन त्रिपाठी, सूरत के डिप्युटी मेयर श्री नरेन्द्र भाई पाटिल, चेयरमेन श्री विक्रम भाई पटेल, जितो के जेटीएफ के प्रेसिडेंट श्री विनोद दुगड़, श्रमण आरोग्यम् के प्रेसिडेंट श्री प्रकाश संघवी, जितो एपेक्स के वाइस चेयरमेन श्री राजेन्द्र जैन ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किए।Next: आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि गृहस्थ हो या साधु, जीवन में रखे समता….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 26.08.2024, सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) ,सूरत शहर के वेसु क्षेत्र में स्थित भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में बने भव्य संयम विहार में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2024 का चतुर्मास कर रहे हैं। सोमवार को अध्यात्म जगत के पुरोधा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम के एक सूक्त में समता धर्म का समाचरण करने का संदेश दिया गया है। मनुष्य अपने जीवन में हर्षान्वित हो जाते हैं तो कभी आक्रोश और गुस्से में भी आ जाते हैं। अनुकूल स्थिति होता है तो आदमी प्रसन्न हो जाता है और प्रतिकूल परिस्थिति आ जाए तो आदमी दुःखी हो जाता है, कष्ट की अनुभूति करने लगता है। इसलिए यह बताया गया कि यह जीवन अनेक बार उच्च गोत्र वाला भी बन गया और अनेक बार नीच गोत्र वाला भी बन गया। कोई हीन नहीं और कोई अतिरिक्त नहीं होता। सामान्य व्यवहार में बड़ा और छोटा, हीन और अतिरिक्त, उच्चता और नीचता की बात हो सकती है। कोई उम्र में बहुत ज्यादा तो कोई बहुत उम्र वाला हो सकता है। कोई राजनीति में बहुत ऊंचे पद पर होता है तो कोई नीचे पद भी होता है। कोई धन-धान्य से बहुत उच्च होता है तो कोई धनहीन होता है। यह उच्चता और नीचता इस जीवनकाल की बातें हैं। मनुष्य अपनी आत्मा पर ध्यान दे कि आज कोई धनहीन है वो कभी किसी जन्म में बहुत उच्च कोटि का धनवान हो सकता है। कभी कोई बहुत ज्ञानवान रहा हो सकता है तो कभी कोई अल्पज्ञानी भी रहा हो सकता है। सिद्धों की दृष्टि से देखा जाए तो कोई हीन और कोई अतिरिक्त नहीं होता। इसलिए आयारो में बताया गया कि आत्मा के संदर्भ में कोई हीन नहीं और कोई अतिरिक्त नहीं होता। इसलिए कोई ऊंच और नीच की बात नहीं है। संसारी अवस्था में देखें तो भी जो इस जन्म में पिता है, वह अगले जन्म में अपने पुत्र का पुत्र हो जाए। इसलिए आयारो आगम में यह प्रेरणा दी गई कि कभी जीवन में उच्चता की स्थिति आ जाए अथवा कभी मंदता और नीचता की स्थिति आ जाए तो भी मानव हर्ष और विषाद में जाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। जिन्दगी में भौतिक अनुकूलता मिले तो ज्यादा खुशी नहीं मनाना और कभी भौतिक प्रतिकूलता प्राप्त होने से लगी तो बहुत ज्यादा दुःखी नहीं बनना चाहिए। जहां तक संभव हो दोनों ही परिस्थितियों में समता में रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु के लिए बताया गया कि साधु को भोजन मिले तो भी ठीक और नहीं मिले तो भी ठीक कहा गया है। अगर भोजन नहीं मिला तो साधु यह सोचे कि मुझे तपस्या का मौका मिल गया और मिल गया तो शरीर को पोषण मिल सकेगा। इस प्रकार का चिंतन कर साधु को समता में रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु को तो समता मूर्ति तो होना ही चाहिए, गृहस्थों को भी जहां तक संभव हो सके, समता में रहने का प्रयास करना चाहिए। परिवार में कभी कोई कटु बोल दे तो भी समता और शांति रखने का प्रयास रखना चाहिए। परिवार में कलह की स्थिति न बने, ऐसा प्रयास करना चाहिए। समता रखने वाला बड़ा होता है। इसलिए साधु हो अथवा गृहस्थ उसे अपने जीवन में समता रखने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने गजसुकुमाल मुनि के आख्यान क्रम का वाचन किया। तदुपरान्त आचार्यश्री श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुआ कि आज भाद्रव कृष्णा अष्टमी का प्रसंग है। मैंने आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की आज्ञा से श्रीमद्भगवद्गीता व जैन आगम पर कई भाषण दिए थे। श्रीमद्भगवद्गीता में 18 अध्यायों में श्रीकृष्ण व अर्जुन का संवाद है। इन ग्रंथों से अच्छी बातें अपनाकर आगे बढ़ते रहने का प्रयास करें। तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत तथा तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने पुरानी ढाल को प्रस्तुति दी।