क्षमा वीरस्य भूषणम् : समता साधक आचार्यश्री महाश्रमण
-15 कि.मी. से अधिक प्रलम्ब विहार के बाद भी पेणवासियों पर शांतिदूत ने बरसाई कृपा
-पेण गांव का लिटिल एंजल्स स्कूल पूज्यचरणों से बना पावन
-गुस्सा, अहंकार, माया और लोभ रूपी कषायों से बचने को किया अभिप्रेरित
29.02.2024, गुरुवार, पेण, रायगड (महाराष्ट्र) : मानवता के कल्याण के यात्रायित जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को अपनी धवल सेना के संग प्रातःकाल तारा में स्थित युसुफ मेहरअली सेण्टर से मंगल प्रस्थान किया। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से ही क्रमशः धूप की तीव्रता बढ़ती जा रही है। पक्के राजमार्ग सूर्य की किरणों से मानों तप्त बन रहा है। उसकी तपन आम लोगों को परेशान कर रही थी, किन्तु समता के साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी समता भाव से गतिमान थे। तीव्र धूप और प्रखर आतप में लगभग 15 किलोमीटर का प्रलम्ब विहार के उपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे ही पेण गांव की सीमा में पधारे तो वहां निवासित जैन समाज के श्रद्धालुओं ने आचार्यश्री का स्वागत कर जैन मंदिर भी पधारने की प्रार्थना कर दी। ऐसे में जनकल्याण करने वाले आचार्यश्री ने कुछ और अतिरिक्त दूरी तय करना स्वीकार किया और श्रद्धालुओं को शुभाशीष प्रदान कर दिया ऐसे में कुल लगभग सोलह किलोमीटर का प्रलम्ब विहार कर आचार्यश्री पेण गांव में स्थित लिटिल एंजल्स स्कूल में पधारे। विद्यालय के हॉल में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल सम्बोध प्रदान करते हुए कहा कि जैन वाङ्मय में कषाय शब्द का प्रयोग किया गया है। गुस्सा, मान, माया व लोभ- ये कषाय हैं। इन्हीं कषायों के कारण ही पाप कर्मों का बंध होता है। यदि कषाय न हों तो आदमी की आत्मा निर्मल बनी रह सकती है और मोक्ष को भी प्राप्त कर सकती है। आत्मा को पाप कर्मों से भारी बनाने में कषायों की मुख्य भूमिका होती है। इन चार कषायों में पहला कषाय है- गुस्सा। गुस्सा प्रीति का नाश करने वाला होता है। परिवार हो या समाज गुस्सा कहीं काम के लायक नहीं है। गुस्सा व्यवहार की दृष्टि और आत्मा की दृष्टि से भी बुरा होता है। गुस्से में आदमी कुछ बोलने लगे, हाथ उठा ले अथवा मारने का भी प्रयास करता है तो इससे व्यवहार तो बिगड़ ही जाता है, साथ ही आत्मा का भी नुक्सान हो जाता है। गुस्सा एक वृत्ति है, जो सभी में विद्यमान होती है। किसी-किसी को तीव्र रूप में गुस्सा आता है। आदमी को धैर्य, शांति और क्षमा का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। कहा भी गया है- ‘क्षमा वीरस्य भूषणम्’। आदमी को क्षमाशील होने का प्रयास करना चाहिए। गुस्से से प्रीति का नाश, अहंकार से विनय का नाश, माया से मित्रता का नाश और लोभ से सबकुछ का नाश हो जाता है। इसलिए आदमी को जहां तक संभव हो, इन कषायों से बचने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त अणुव्रत गीत का आंशिक संगान किया। आचार्यश्री ने कहा कि आज पेण गांव में आना हुआ है। यहां के लोगों में भी धर्म की भावना का विकास होता रहे।
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