






🌸 ज्ञान और दर्शन आत्मा के गुण : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को ज्ञान का विकास करने को अभिप्रेरित
-पूज्य कालूगणी द्वारा संतों को दी गई विशेष शिक्षा को आचार्यश्री ने किया वर्णित
25.08.2023, शुक्रवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : जन-जन में सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की अलख जगाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, शांतिदूत, आचार्यश्री महाश्रमणजी नन्दनवन परिसर से नित्य नवीन प्रेरणाएं प्रदान कर रहे हैं। भगवती सूत्र जैसे विशाल आगम के माध्यम से जन-जन को सरल रूप में सारगर्भित ज्ञान प्रदान करने वाले महासंत की सन्निधि में हर कोई उपस्थित हो रहा है। शुक्रवार को तीर्थंकर समवसरण में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि कल आठ प्रकार की आत्माओं के संदर्भ में बात बताई गई। इनमें तीन प्रकार की आत्माएं सभी जीवों में होती हैं। चाहे वह सिद्ध हो अथवा संसारी तीन आत्माएं सभी में होती ही हैं। द्रव्य आत्मा, दर्शन आत्मा और उपयोग आत्मा सभी जीवों में सामान्य रूप से होती है। बाकी पांच आत्माएं किसी में कोई आत्मा तो किसी में कोई आत्मा होती है अथवा नहीं होती है। तीन आत्माएं हर जीव में मानों सहचर के रूप में रहने वाली हैं। जीव चाहे जहां जाए, वे उसके साथ जाती हैं। दुनिया में चारित्र आत्मा वाले जीव सबसे कम होते हैं। भगवती सूत्र में आत्मा और ज्ञान के संदर्भ में पूछा गया कि आत्मा ही ज्ञान है अथवा ज्ञान भिन्न है। इस संदर्भ में उत्तर प्रदान किया गया कि ज्ञान नियमतः आत्मा में ही होता है। ज्ञान जब भी होगा तो आत्मा में ही होगा। हालांकि ग्रंथों, आगमों आदि की आशातना न हो जाए, किन्तु मूल रूप से ज्ञान आत्मा में ही होता है। ज्ञान और दर्शन तो आत्मा के गुण होते हैं। गुण और गुणी में परस्पर सम्बन्ध भी होता है। आत्मा में ज्ञान है तो वह आत्मा का गुण है। ज्ञान के अनेक रूप हो सकते हैं। आगमों के माध्यम से ज्ञान की प्राप्ति की जाती है। ज्ञान प्राप्ति के लिए भाषा आदि की जानकारी के साथ-साथ विभिन्न विषयों का अध्ययन भी आवश्यक होता है। हालांकि भाषा तो माध्यम बनता है, ज्ञान प्राप्ति का मूल तत्त्व विषय होता है। अध्यात्म विद्या का ज्ञान होता है तो लौकिक विषयों का भी ज्ञान होता है। धार्मिकता से जुड़े लोगों को धार्मिंक ग्रन्थों व शास्त्रों का ज्ञान हो सकता है तो चिकित्सा से जुड़े डॉक्टरों के पास चिकित्सकीय ज्ञान हो सकता है। कानून से जुड़े लोगों को कानून की जानकारी और उसका ज्ञान हो सकता है। आदमी को निरंतर ज्ञान का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूयशोविलास का वाचन किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा टी.पी.एफ. गौरव अलंकरण समारोह का कार्यक्रम हुआ। इसमें टी.पी.एफ. के राष्ट्रीय महामंत्री श्री विमल शाह ने वर्ष 2023 का टी.पी.एफ. गौरव अलंकरण श्री जयचंद मालू को प्रदान करने की घोषणा की। टीपीएफ के मुख्य न्यासी श्री चन्द्रेश जैन ने उनका परिचय प्रस्तुत किया। तदुपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में टीपीएफ के पदाधिकारियों द्वारा श्री मालू को स्मृतिचिन्ह आदि प्रदान किया गया। सम्मान प्राप्त करने के उपरान्त श्री जयचंद मालू ने अपनी अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में गुणरूप विशेषताएं होती हैं, तो जीवन सुशोभित हो जाता है। अपने जीवन में सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना का प्रयास होना चाहिए।




