सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में शनिवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान गत दिनों देवलोकगमन करने वाले संतद्वय मुनिश्री मणिलालजी व मुनिश्री अभयकुमारजी की स्मृति सभा का भी आयोजन किया गया। आचार्यश्री ने दोनों मुनिजी के संक्षिप्त जीवन परिचय प्रदान करने के साथ-साथ उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करते हुए चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान भी कराया।शनिवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जो सभी प्रकार की आसक्ति का परित्याग कर धर्म, वैराग व साधना के प्रति प्रणत हो जाता है, वह महामुनि होता है। जहां परम के प्रति समर्पण हो जाए, वहां कोई शर्त नहीं होता। कठिनाई आए तो आए, कठिनाई आए तो आए, किन्तु परम के प्रति सर्वात्मना समर्पण बना रहे। कामासक्ति व विषयासक्ति का परित्याग करना होता है, शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श से इनके प्रति भी अनासक्ति की भावना रखने वाला महामुनि होता है।सारे संसार में दुःख का कारण आसक्ति है। आसक्ति से ही दुःख की उत्पत्ति होती है। साधु का जीवन तो निर्लेप होना चाहिए। साधु के जीवन में किसी भी प्रपंच का लेप नहीं होना चाहिए और परम की प्राप्ति की ओर गति करने का प्रयास होना चाहिए। साधु को शास्त्रों का भी जानकार होना चाहिए। बाह्य आसक्तियों से मुक्त, साधना में रस लेने वाला और शास्त्रों का ज्ञाता हो तो कितनी अच्छी बात हो सकती है। साधु-साध्वियों को अपने परम के प्रति लगाव रखने का प्रयास करना चाहिए। परम की ओर ले जाने वाले तत्त्वों की आराधना करने का प्रसास होना चाहिए। चतुर्मास के बाद विहार करना भी साधुचर्या के नियमों से जुड़ा हुआ है। साधु-साध्वियों को अपने भीतर महामुनित्व को स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए।आचार्यश्री द्वारा रचित पुस्तक ‘सुखी बनो’ का साध्वी राजुलप्रभाजी द्वारा अंग्रेजी अनुवादित पुरस्तक ‘बी हैप्पी’ जैन विश्व भारती द्वारा आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की गई। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में मंगल प्रेरणा प्रदान की।आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में मुनिश्री मणिलालजी व मुनिश्री अभयकुमारजी के देवलोकगमन के संदर्भ में ‘स्मृति सभा’ का आयोजन किया गया। आचार्यश्री ने सर्वप्रथम मुनिश्री मणिलालजी तथा मुनिश्री अभयकुमारजी का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते हुए दोनों आत्माओं के प्रति मध्यस्थ भाव व्यक्त करते हुए चतुर्विध धर्मसंघ को चार लोगस्स का ध्यान कराया। स्मृति सभा में मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीप्रमुखाजी के भी वक्तव्य हुए। मुनि रजनीशकुमारजी, मुनि अक्षयप्रकाशजी व समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने उनके प्रति अपनी मंगलभावना व्यक्त की। आचार्यश्री ने नवदीक्षित साधु-साध्वियों व समणियों को सेवा की मंगल प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम में साध्वीवर्याजी का भी उद्बोधन हुआ।