Surendra munot, associate editor all india
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात),गुजरात राज्य की धरा पर लगातार दूसरा चतुर्मास प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी गुजरात की राजधानी अहमदाबाद के कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में विराजमान हैं। जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं प्रत्यक्ष की रूप से उनकी कल्याणीवाणी का श्रवण कर अपने जीवन का कल्याण कर रहे हैं। इसके अलावा समय-समय पर अनेक राजनेता, अभिनेता व समाज के वरिष्ठ लोग भी उपस्थित होकर आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। मंगलवार की देर रात आचार्यश्री की पावन सन्निधि में अभिनेता श्री विवेक ओबेराय भी पहुंचे। वे आचार्यश्री के दर्शन कर करबद्ध पट्ट के समीप ही बैठ गए। आचार्यश्री से मंगल मार्गदर्शन व आशीष प्राप्त कर वे पुनः प्रस्थान कर गए।बुधवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से मंगल देशना प्रदान करते हुए कहा कि अज्ञानी आदमी अपने जीवन में आने वाली बाधाओं का पार नहीं पा सकता है। जीवन में संघर्ष, कठिनाइयां, समस्याएं, बाधाएं, विघ्न आ सकते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं, वे विघ्न-बाधाओं के भय के कारण कोई अच्छा कार्य प्रारम्भ ही नहीं करते। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो कार्य जो प्रारम्भ कर देते हैं, किन्तु बाद में बाधाओं के कारण कार्य को बीच में ही छोड़ देते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कार्य का प्रारम्भ करते हैं, बाधाओं और समस्याओं के आने पर उनका मुकाबला करते हैं, उसके समाधान का प्रयास करते रहते हैं और अपने कार्य को निष्ठा तक पहुंचा देते हैं और लक्षित मंजिल को प्राप्त कर लेते हैं।कोई आदमी अध्ययन प्रारम्भ करता है तो उसके बीच में अनेक बाधाएं आ सकती हैं। ज्ञान तो अनंत है। कितनी-कितनी भाषाएं और कितने-कितने ग्रंथ हैं, जिनको अपने स्वल्पकालिक जीवन में नहीं पढ़ा जा सकते। इसलिए आदमी को अपने जीवन में ज्ञान का विकास करने के लिए सारभूत ज्ञान को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। खास बातों का ज्ञान ग्रहण करने से आदमी का कार्य अच्छा चल सकता है। साधु के जीवन में भी कठिनाइयां आ सकती हैं। सामान्य आदमी के जीवन में अनेकानेक प्रकार की कठिनाइयां व बाधाएं आती रहती हैं। आदमी को अपने भीतर कठिनाइयों को सहन करने की क्षमता का विकास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में धर्म की साधना करने वाले आदमी को कठिनाइयों को सहन करने और उससे पार पाने का प्रयास करना चाहिए।अपने देव, गुरु और धर्म के आस्थावान रहने का प्रयास होना चाहिए। कठिनाई आने पर भी आस्था अडोल होनी चाहिए। अपने देव, गुरु और धर्म को कभी छोड़ना नहीं चाहिए। निष्ठा बनी रहती है तो आदमी कठिनाइयों से भी कभी पार पा सकता है। आदमी के पास पैसा रहे अथवा न रहे, मकान भी रहे अथवा न रहे, लेकिन धर्म से जुड़ाव रहता है तो मानों उसका जीवन अच्छा हो सकता है।अपने जीवन में अच्छे नियमों को पालने के प्रति जागरूकता रखना चाहिए। धर्म के क्षेत्र में भी बाधाएं आ सकती हैं, इसलिए आदमी को अपने धर्म में दृढ़ रहने का प्रयास करना चाहिए। कठिनाइयों को सहन करने का प्रयास होना चाहिए, किन्तु कठिनाइयों के भय से धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए। आदमी को अपनी आस्था को दृढ़ रखने का प्रयास करना चाहिए। धर्म के प्रति आस्था दृढ़ होती है तो आदमी भवसागर से पार हो सकता है। ऐसा मनोबल और साहस आदमी के भीतर जागृत हो जाए तो वह कठिनाइयों और बाधाओं का पार भी सकता है।आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त श्री तनसुखलाल बैद ने स्वरचित पुस्तक नश्वर भाव, गीत धारा और आपना बड़ेरा को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।