Surendra Munot, Associate editor all india
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात),गुजरात राज्य पर अपनी विशेष कृपा बरसाते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपना लगातार दूसरा चतुर्मास गुजरात की धरा पर ही निर्धारित किया और उस निर्णयानुसार वर्तमान में तेरापंथ के ग्यारहवें अनुशास्ता गुजरात की राजधानी गांधीनगर के पास स्थित कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में वर्ष 2025 का चतुर्मास सुसम्पन्न कर रहे हैं। पर्युषण पर्वाधिराज का भव्य आध्यात्मिक आयोजन की सम्पन्नता के उपरान्त शनिवार से आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा ‘तेरापंथ टास्क फोर्स’ के द्विदिवसीय सम्मेलन का शुभारमभ हुआ, जिसमें देश भर करीब 150 से अधिक युवा संभागी बने। आचार्यश्री ने मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम के दौरान संभागियों को पावन प्रेरणा प्रदान की।‘वीर भिक्षु समवसरण’ से नित्य की भांति शनिवार को तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आगम में आदमी को अपनी आत्मा से युद्ध करने की बात बताई गई है। आत्मयुद्ध के द्वारा आत्मा से चिपके हुए कर्मों को क्षीण करने, उन्हें नष्ट करने का प्रयास करना चाहिए। पच्चीस बोल का सोलहवां बोल है कि आठ प्रकार की आत्माएं होती हैं- द्रव्य, कषाय, योग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य आत्मा। इन आठ आत्माओं में एक है कषाय आत्मा है। योग आत्मा में अशुभ योग आत्मा, दर्शन आत्मा में मिथ्या दर्शन आत्मा भी होती है। आत्मयुद्ध के दौरान कषाय आत्मा, अशुभ योग आत्मा और मिथ्या दर्शन आत्मा को नष्ट करने का प्रयास किया जाता है।कषाय, अशुभ योग और मिथ्या दर्शन को नष्ट करना है तो उसका तरीका है कि आदमी को शुभ योग आत्मा का उपयोग, संयम दर्शन आत्मा को पुष्ट करना है और चारित्र आत्मा के विकास का प्रयास करना होगा। शुभ योग आत्मा को पुष्ट करें और संयम दर्शन आत्मा को पुष्ट करें तो इनके द्वारा कषाय आत्मा नष्ट हो सकेगी। सम्यक् दर्शन आत्मा का वर्चस्व इतना बढ़ जाता है, इस आत्मा का हमेशा के लिए सत्ता प्राप्त कर लेती है, मात्र चौथे गुणस्थान में। कषाय आत्मा का अस्तित्व दसवें गुणस्थान तक बना रहता है। बारहवें गुणस्थान पर पहुंचने में कषाय आत्मा पूर्णतया समाप्त हो जाती है। इसलिए शास्त्र में कहा गया है कि आदमी को अपने कार्मण शरीर से युद्ध करने का प्रयास करना चाहिए। इस युद्ध के लिए चारित्र आत्मा, शुभ योग आत्मा, सम्यक् दर्शन आत्मा का सहयोग लेना होता है। आत्मयुद्ध मानों अहिंसा से युक्त है।क्रोध, अहंकार, माया और लोभ रूपी कषाय का विनाश करने के लिए आदमी को उपशम की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। अहंकार को जितने के लिए मार्दव की अनुप्रेक्षा करने का प्रयास हो। माया-छलना को जीतने के लिए आर्जव का प्रयोग और प्रयास करना चाहिए। लोभ को जीतने के लिए संतोष की अनुप्रेक्षा, आराधना, साधना करने का प्रयास करना चाहिए। इन चारों कषायों पर विजय प्राप्त करने वाला मानों आत्मा पर विजय प्राप्त कर लेता है। यह युद्ध आत्मयुद्ध अथवा धर्मयुद्ध होता है। आदमी का लक्ष्य बन जाए कि मुझे इस चीज पर नियंत्रण करना है तो फिर आदमी उस दिशा में अच्छा पुरुषार्थ कर आगे भी बढ़ सकता है। आदमी को अपने जीवन में अच्छा लक्ष्य बनाने का प्रयास करना चाहिए।आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा द्विदिवसीय ‘तेरापंथ टास्क फोर्स’ के दूसरे सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें करीब 150 से अधिक तेरापंथ के युवा उपस्थित थे। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रमेश डागा, महामंत्री श्री अमित नाहटा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ टास्क फोर्स से जुड़े युवाओं ने अपने कार्यों की प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने उपस्थित संभागियों को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के पास जो सामर्थ्य होता है, उसका क्या प्रयोग करता है, यह महत्त्वपूर्ण बात होती है। आदमी में जो शक्ति होती है, उसका सदुपयोग भी किया जा सकता है और दुरुपयोग भी किया जा सकता है। आदमी के भीतर यह संकल्प होना चाहिए कि मैं अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करूंगा। इसलिए सेवा के उपक्रम के साथ जुड़कर आदमी को शक्ति का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।