

नगर परिषद जैसलमेर ने जैसलमेर की जनता के साथ किया खूबसूरत धोखा।
जैसलमेर,जैसलमेर की नगरपरिषद ने जैसलमेर की भोली भाली जनता से पैसे ऐंठने के लिए एक खूबसूरत धोखा किया हैं। जिसमें नगरपरिषद का तो खजाना भर गया जिससे नगरपरिषद के अधिकारियों और कर्मचारियों ने तो खूब मलाई काटी मगर अब जिले की जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता हैं।
मामला हैं नगरपरिषद द्वारा 2013-14 में काटी गई “जवाहरलाल नेहरू आवासीय कॉलोनी”का, जो कि काटी जानी थी शहर के खसरा संख्या 28, 29, 34, 35 और 37 में मगर तत्कालीन अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से काटी गई डेडानसर तालाब के गैर मुमकिन आगोर के खसरा संख्या 36 और 45 में, इस कालोनी के सर्वाधिक प्लॉट भी इन्हीं दो खसरों में हैं जो कि इस कालोनी के कॉलोनी के ब्लॉक A, B और C को कवर करते हैं। जो कि डेडानसर तालाब से लेकर नए बस स्टैंड की उत्तरी दीवार तक का हिस्सा हो सकता हैं। जिसके लिए तत्कालीन अधिकारियों और कर्मचारियों ने जैसलमेर की जनता के साथ ही मुख्य नगर नियोजक को भी गुमराह किया।
चूंकि मामला गैर मुमकिन आगोर का हैं जिसको बचाने के लिए भारत का सर्वोच्च न्यायालय और राजस्थान का उच्च न्यायालय पहले से ही सख्त हैं जो अपने फैसलों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में निर्णायक फैसले दे चुका हैं। “माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने प्रकरण संख्या CIVIL APPEAL NO.1132 /2011 @ SLP(C) No.3109/2011 “जगपाल सिंह बनाम पंजाब सरकार” में दिनांक 28/01/2011 को दिए निर्णय में स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि नदी, नाला, तालाब, आगोर, जोहड़, पायतन, ओरण और गोचर में यदि कोई आवंटन अथवा नियमन किया गया हैं तो वो अवैध हैं और उसे खारिज किया जाना चाहिए।” और इसी प्रकार राजस्थान उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका प्रकरण संख्या D.B. CIVIL WRIT PETITION NO. 1536/2003 (जनहित याचिका) अब्दुल रहमान बनाम राजस्थान सरकार में दिनांक 02/08/2004 को दिए निर्णय में स्पष्ट कर चुका हैं कि राजस्व रिकार्ड में दर्ज नदी, नाला, तालाब, नाडी, आगोर, जोहड़, पायतन, ओरण और गोचर में यदि कोई आवंटन और निर्माण हुआ हैं तो उस स्थान पर आए निर्माण आदि को हटाकर उक्त स्थानों को स्थिति 15 अगस्त 1947 के जैसी होनी चाहिए। इन लैंडमार्क निर्णयों के आधार पर राजस्थान उच्च न्यायालय ने “D.B. Civil Writ Petition No. 14473/2018 रोशन व्यास बनाम राजस्थान सरकार में दिए निर्णय के आधार पर 2017-18 में नगरपालिका फलोदी द्वारा गैर मुमकिन भूमि पर काटी गई कॉलोनी “विवेकानंद नगर” को अवैध मानते हुए प्लॉट आवंटित होने और कुछ निर्माण कार्य होने के बावजूद भी खारिज कर दिया और निर्मित मकान हटाने की कार्यवाही की गई।”
भारत के संविधान का आर्टिकल 48 और आर्टिकल 51 भारत की सभी सरकारों और आम नागरिकों को संवैधानिक निर्देश देता हैं कि “राज्य सरकार को प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण दिशा निर्देश देते हैं वहीं दूसरी ओर सहायता के लिए प्रत्येक नागरिक को भी प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण करने के निर्देश भी देते हैं।” जिसके आधार पर डेडानसर तालाब के कैचमेंट को बचाने के लिए माननीय उच्च न्यायालय शरण लेने की आवश्यक कार्यवाही की जा रही हैं जिसके लिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों से जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित “पब्लिक लैंड प्रोटेक्शन कमेटी” को भी प्रकरण दिया जा चुका हैं। जहां से इस आगोर भुमि को खाली करवाने के आदेश होने की पूरी संभावना हैं।
जवाहर लाल नेहरु आवासीय कॉलोनी में डेडानसर तालाब से लेकर उत्तर में बस स्टैंड की उत्तरी दीवार के मध्य जो भूखंड हैं उसे क्रय करने और उस पर निर्माण करने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल करें क्योंकि नगर परिषद के कर्मचारी और अधिकारी अपनी चांदी कूटने के चक्कर में आम जन का नुकसान करवाने में कतई पीछे नहीं हटेंगे। यदि मामले में माननीय न्यायालय या विभागीय स्तर पर रोक या खारिज के आदेश होते हैं तो इसमें नुकसान आम जनता का होगा। इसलिए सतर्क रहें सावधान रहें।


