आर.के.जैन,मुख्य संपादक
Key Line Times
ग़ज़ल
“ कड़वा सच , मीठा झूठ “
आज की दुनिया में,
शब्दों की पहचान कहाँ बाकी है,
मिठास में ज़हर छुपा हो,
वो अब भी अदब कहलाती है।
मीठे अल्फ़ाज़ों से बिकती,
झूठी बातें, झूठी कहानियाँ,
भीड़ में जो छल करे,
वो अपनी जीत मनाती है।
कड़वा सच कहने वाले की,
चुप रह जाती हैं सदा,
सच की मिठास दिखे नहीं,
ये कैसी रीत निभाती है।
मगर सच की अपनी एक ताकत है,
जो हर दिल तक पहुँच जाती है,
वो कड़वी आवाज़ ही कभी,
इंसानियत को बचा पाती है।
तो चलो, कड़वे सच की राह चले,
क़ीमत चाहे जो भी हो,
सतविंदर कौर कहती ,
सच की सूरत में ही आखिर,
दुनिया रोशन हो पाती है।
सतविंदर कौर
जीरकपुर , चंडीगढ़ ।
Note : जैसे
कड़वा बोलने वाले का,
शहद नहीं बिकता
और मीठा बोलने वाला
ज़हर भी बेच देता हैं ।